Jagannath Rath Yatra: पुरी की जिस रथ यात्रा में शामिल होते हैं दुनिया भर के लोग, जानें उससे जुड़ी 5 बड़ी बातें
भगवान श्री जगन्नाथ की यात्रा का बहुत अधिक धार्मिक महत्व माना गया है. प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा होती है. आइए जानते हैं इस यात्रा से जुड़ी बड़ी बातें.
Jagannath Rath Yatra 2023: हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ की यात्रा को अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है. पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है. इस बार यह यात्रा 20 जून 2023, दिन मंगलवार को निकाली जाएगी. इस यात्रा में न सिर्फ भगवान जगन्नाथ बल्कि उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की भी रथयात्रा निकाली जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार जो भी साधक इस यात्रा में शामिल होता है उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है. आइए जानते हैं इस यात्रा से जुड़ी कुछ बाड़ी बातें.
- धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ विष्णु जी का अवतार माना जाता है. प्रत्येक साल निकाले जाने वाली इस रथ यात्रा को श्री जगन्नाथ पुरी, पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्री क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. इस यात्रा में जुड़ने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं.
- पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान श्री जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहिर की. जिसके बाद जगन्नाथ भगवान ने अपने भाई बलभद्र के साथ उन्हें रथ पर बैठाकर, पूरे नगर के लिए निकल पड़े. माना जाता है कि तब से इस रथ यात्रा को निकालने की परंपरा चली आ रही है.
- रथ के निर्माण में नीम के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. इस विशेष लकड़ी को दारु कहा जाता है. इस लकड़ी के चयन के लिए खास समिति का गठन किया जाता है जो वृक्षों का चयन करती है और फिर उसे रथ निर्माण के लिए भेजती है.
- धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार भगवान जगन्नाथ को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर 108 घड़ों से स्नान करवाया जाता है. सबसे खास बात यह है कि स्नान के लिए जिस कुएं से जल निकाला जाता, वह साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है. तभी इस यात्रा को स्नान यात्रा भी कहा जाता है. इस यात्रा के बाद भगवान 15 दिन के एकांतवास पर चले जाते हैं.
- अपने मंदिर से निकले के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी नजर का भ्रमण करने के बाद गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं. माना जाता है कि यह उनकी मौसी का घर है. यहां पहुंचने के बाद भगवान अपनी मौसी के हाथ से बनी पूडपीठा ग्रहण करते हैं. इसका बाद वे इसी मंदिर में सात दिनों तक विश्राम करते हैं.
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(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)