Mahashivratri 2023: महादेव का वो पावन धाम जहां पर ‘हरि’ और ‘हर’ दोनों का बना हुआ है वास
आस्था का वो पावन धाम जहां पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) दोनों का होता है संगम और जहां गैर हिंदुओ के प्रवेश पर मनाही है, उसके बारे में विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर अपनी बेहतरीन वास्तुकला, जटिल नक्काशी और खूबसूरत मूर्तियों के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि भुवनेश्वर शहर का नाम भी भगवान त्रिभुवनेश्वर यानि शिव के नाम पर ही रखा गया है. यह मंदिर शहर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. मान्यता है कि इस मंदिर का निमर्ण 11वीं सदी में ययाति केशरी ने करवाया था. लिंगराज मंदिर के इतिहास को दखें तो यह कई बार टूटा और कई बार इसका जीर्णोद्धार हुआ. आइए लिंगराज मंदिर की वास्तुकला और इसके धार्मिक महत्व को विस्तार से जानते हैं.
लिंगराज मंदिर की वास्तुकला
हिंदुओं की आस्था से जुड़ा यह पावन धाम न सिर्फ भगवान शिव बल्कि भगवान श्री विष्णु की साधना आराधना का प्रमुख केंद्र है. लिंगराज मंदिर में महादेव 8 फीट लंबे शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. लिंगराज मंदिर के भीतर स्थापित शिवलिंग ग्रेनाइट के पत्थर से बना हुआ है. लिंगराज मंदिर का प्रांगण तकरीबन 150 मीटर वर्गाकार है, जिसके 40 मीटर की ऊंचाई पर कलश लगा है. मंदिर में भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु की मूर्तियाँ भी विराजित हैं. मंदिर के प्रमुख भाग यानि गर्भगृह को देवुल कहते हैं, जबकि उससे जुड़ा दूसरा भाग जगमोहन कहलाता है. मंदिर के दूसरे भाग के सामने नृत्य मंडप और भोगमंडप हैं. लिंगराज मंदिर के परिसर में भगवान श्री गणेश, भगवान कार्तिकेय तथा देवी गौरी के भी मंदिर बने हुए हुए हैं. बेहद अनोखी बनावट वाला यह मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से बना है, जिसके पूरे परिसर को विमान, यज्ञशाला, भोग मंडप और नाट्यशाला समेत चार भागों में विभाजित किया गया है. इस मंदिर के भीतर 100 से अधिक छोटे-छोटे मंदिर हैं.
लिंगराज मंदिर का धार्मिक महत्व
लिंगराज मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर पूजे जाने वाले शिवलिंग को किसी ने स्थापित नहीं किया बल्कि भगवान भुवनेश्वर स्वयंभू हैं. मान्यता यह भी है कि इस पावन शिवलिंग में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अंश समाहित हैं. लिंगराज मंदिर शैव और वैष्णव परंपरा का संगम माना जाता है, जहां पर दोनों ही संप्रदायों के लोग साधना-आराधना करने के लिए आते हैं. देश के चुनिंदा मंदिरों की तरह इस मंदिर में भी गैर हिंदुओं के प्रवेश की सख्त मनाही है.
लिंगराज मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच चल रही बातचीत में भुवनेश्वर शहर का प्रसंग आया. जिसके बाद माता पार्वती ने इस शहर का पता लगाने का निश्चय किया और गाय का रूप धारण करके उसे खोजने निकल पड़ीं. मान्यता है कि उन्हें रास्ते में कृति और वासा नाम के राक्षस उनके पीछे पड़ गए और उन पर विवाह का दबाव बनाने लगे. जब बहुत समझाने पर वे दोनों राक्षस नहीं माने तो माता पार्वती ने क्रोधित करके उन दोनों का वध कर दिया. युद्ध के बाद जब माता पार्वती को बहुत ज्यादा प्यास लगी तो महादेव ने उसी स्थान पर कूप रूप धारण करके अवतरित हुए और उन्होंने सभी नदियों को उसमें आकर माता पार्वती की प्यास बुझाने को कहा. मान्यता है कि तभी से भगवान शिव इस स्थान पर कीर्तिवास रूप में पूजे जाने लगे.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं,इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)