कांग्रेस की हार में क्यों दिखती है नीतीश-अखिलेश-केजरीवाल को जीत, विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारने के पीछे क्या है मंशा?

कांग्रेस की हार में क्यों दिखती है नीतीश-अखिलेश-केजरीवाल को जीत, विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारने के पीछे क्या है मंशा?

विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर इंडिया अलायंस में रार साफ नजर आ रही है. खास तौर से नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, अरविंंद केजरीवाल और ममता बनर्जी गठबंधन में कांग्रेस के प्रति पहले से सशंकित हैं. अब राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सामने उम्मीदवार उतारकर इन नेताओं ने ये साफ कर दिया है कि गठबंधन में सब कुछ सही नहीं है.

अरविन्द केजरीवाल पहले से ही एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ आग उगल रहे थे. हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी और जेडीयू के रवैये ने इंडिया गठबंधन के भीतर की रार को सार्वजनिक कर दिया है. इतना ही नहीं इन तीनों नेताओं की मंशा क्षेत्रीय दल होने के नाते कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में हराकर घुटने पर लाने की तो नहीं है इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

दरअसल केजरीवाल, अखिलेश, नीतीश सहित ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन के भीतर कांग्रेस के रवैये को लेकर शुरू से ही सशंकित रहे हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विरोध में उम्मीदवार उतारकर इंडिया गंठबंधन के कई घटक दलों ने गठबंधन की कलई सबके सामने खोल दी है.

गठबंधन राज्य स्तर पर है या राष्ट्रीय स्तर पर?

28 दलों में कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस से लोकसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लेकर पहले ही साफगोई से बात करना चाह रहे थे. नीतीश, ममता, अखिलेश और अरविन्द केजरीवाल उन नेताओं में गिने जाते हैं जो कांग्रेस के प्रति सशंकित होने की वजहों से पांच राज्यों में होने वाले चुनाव की घोषणा से पहले ही सीट शेयरिंग को लेकर खुलकर बात करने के पक्षधर थे. कांग्रेस कर्नाटक में चुनाव जीतने के बाद अपने पैंतरे बदलने लगी थी. कांग्रेस को यकीन है कि पांच में से दो राज्यों में भी कांग्रेस अगर सरकार बनाने में कामयाब होती है तो सीट शेयरिंग में कांग्रेस का दबदबा रहेगा और क्षेत्रीय दल कांग्रेस की बात मानने को बाध्य होंगे. जाहिर है कांग्रेस इसी रणनीति के तहत सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को टालती रही और दो दिन पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पांच राज्यों में चुनाव के बाद सीट शेयरिंग को लेकर बात करने की बात कबूली है.

तालमेल न कर साफ कर दिए इरादे

जाहिर है पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में जेडीयू, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग को लेकर बात करने की पक्षधर थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी राज्य के चुनाव में एक भी सीट पर तालमेल न कर अपने इरादे साफ कर दिए. ऐसे में नीतीश, अखिलेश और केजरीवाल ने अपने उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस को राज्य के चुनाव में झटका देने की तैयारी कर ली है. जाहिर है तीनों दल अपनी मौजूदगी का अहसास कराकर कांग्रेस को घुटने पर लाना चाहते हैं, जिससे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सीट शेयरिंग के दरमियान मनमानी करने से पहले हजार बार सोचने को बाध्य हो.

कांग्रेस के साथ रार चरम पर क्यों है ?

पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के एक नेता और विधायक को ड्रग्स के मामले में जेल भी भेज दिया है. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे से भिंड़ने को तैयार बैठी हैं. वहीं दिल्ली की सारी सीटों पर कांग्रेस की तैयारी को लेकर अलका लांबा के बयान ने आम आदमी पार्टी के मन में संशय भर दिया है. इसलिए आम आदमी पार्टी एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ चलाए जा रहे कैंपेन में कांग्रेस के नेताओं के विरोध में खूब जहर उगल रहे हैं. आलम ये है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सीएम को भ्रष्ट बताकर अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस के नेताओं को भी तोड़ने में जुटे हैं.

अखिलेश यादव ने खड़े किए सवाल

यही हाल एमपी में हैं. सपा से बातचीत के बाद एक भी सीट कांग्रेस द्वारा नहीं दिए जाने के बाद अखिलेश यादव ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर सवाल खड़े कर दिए थे. लोकसभा चुनाव में वही ट्रीटमेंट देने की धमकी भी दे दी थी जो अखिलेश की समाजवादी पार्टी को कांग्रेस ने एमपी में दी है. जाहिर है कमलनाथ द्वारा अखिलेश वखिलेश जैसे शब्दों ने मामले को खराब कर दिया था, लेकिन लालू की मध्यस्थता के बाद बातों की तल्खी नरम होती दिखी है. कांग्रेस की नजर यूपी में मुसलमान वोटों पर टिक गई है. कांग्रेस मुसलमानों से पुराने घर में लौटने की अपील करने लगी है. इतना ही नहीं यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय द्वारा आजम से मुलाकात की घोषणा ने कांग्रेस की असली मंशा बाहर कर दी जिसके बाद अखिलेश यादव ने आजम खां के साथ होने वाले वर्ताव के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है.

नीतीश कुमार का भी यही हाल

यही हाल नीतीश कुमार का भी है. आज यानि गुरुवार को सदाकत आश्रम से नीतीश कुमार ने दूरी बना ली जहां पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह की जयंती मनाने लालू यादव तैयारी के साथ पहुंचे थे. नीतीश एक तरफ कांग्रेस की इस सभा से पटना में दूरी बनाते देखे गए वहीं एमपी में जेडीयू के पांच उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाते दिख रहे हैं. जाहिर है नीतीश सरीखे नेता इस बात को समझते हैं कि कांग्रेस की मजबूती क्षेत्रीय दलों की बेहतर परिस्थितियों के लिए अच्छी नहीं है. इसलिए पांच राज्यों में कांग्रेस को घेरने की तैयारी इन नेताओं ने अलग अलग राज्यों में कर दी है.

क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस की मजबूती परेशानी का सबब क्यों है ?

कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार पहली दफा गठबंधन कर बनवाई थी और उसके बाद कांग्रेस दिल्ली में अपनी वजूद की लड़ाई लड़ नहीं पा रही है. यही हाल कांग्रेस का यूपी में है जहां मुसलमान मतदाताओं के लिए विकल्प के तौर पर कांग्रेस अपने को पेश करने में जुट गई है, लेकिन अखिलेश कांग्रेस को यूपी में सियासी जमीन देने की पक्षधर नहीं हैं. जाहिर है यही वजह है कि मुलायम सिंह साल 2017 में कांग्रेस के साथ सपा के गठबंधन के पुरजोर विरोधी थे, लेकिन अखिलेश ने बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. यही हाल बंगाल में ममता बनर्जी का है जो लेफ्ट और कांग्रेस के लिए ज्यादा स्पेस देने की पक्षधर नहीं है. ज़ाहिर है नीतीश भी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की मजबूत स्थितियों के पक्षधर नहीं हैं क्योंकि फिर उनकी राष्ट्रीय फलक पर उतर कर राजनीति करने की मंशा धरी की धरी रह जाएगी.

जाहिर है यही वजह है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल फिलहाल गठबंधन में कांग्रेस के खिलाफ ही मोर्चाबंदी में जुटे हुए हैं. ऐसे में पांच राज्यों के परिणाम के बाद स्थितियां साफ हो पाएंगी कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लेकर चल पाने में कहां तक अपने हितों को छोड़ने के लिए तैयार खड़ी होगी, जबकि क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस की कमजोर स्थितियां ही उनकी मजबूती की गारंटी है.