नगालैंड में बीजेपी के लिए मुसीबत, आखिर क्यों बैप्टिस्ट चर्चों ने जताई ‘ईसाई विरोधी ताकतों’ पर चिंता
नगालैंड में बैप्टिस्ट चर्चों के लिए एनबीसीसी का संदेश एक विवाद के बीच आया है. इस विवाद का संबंध बीजेपी द्वारा चुनाव प्रचार के लिए ईसाई प्रतीकवाद के उपयोग से है. इस विवाद में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जॉन बारला शामिल हैं.
चुनावी राज्य नगालैंड में बैपटिस्ट चर्चों के शीर्ष संस्था, द नगालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) ने अपने अनुयायियों से अपील की है कि वे “प्रार्थना करें कि भारत में ईसाइयों के खिलाफ काम करने वाली सांप्रदायिक ताकतों को न्याय के कटघरे में लाया जाए.” एनबीसीसी ने राज्य भर में इससे संबद्ध सभी 1,708 चर्चों के साथ यह संदेश साझा किया.
कोहिमा में रविवार की सुबह सिटी चर्च में एक मण्डली का नेतृत्व करते हुए, रेवरेंड केदो पेडेसिये ने दो विशेष प्रार्थना को पढ़ा. इनका संबंध 27 फरवरी को राज्य विधानसभा चुनावों में मतदान और “भारत में सताए गए चर्च और ईसाइयों” से था.वैसे तो चर्चों में साझा किया गया संदेश अपेक्षाकृत नरम रहा लेकिन एनबीसीसी के महासचिव रेवरेंड जेल्हो कीहो राज्य में बीजेपी की लगातार बढ़ती ताकत पर अपनी चिंता के बारे में मुखर रहे हैं.
इस बार मुश्किल में BJP
ऐसा लगता है कि चर्च का संदेश नेशनल डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (एनडीपीपी) और बीजेपी के नेतृत्व वाले नागालैंड के सत्तारूढ़ गठबंधन को लेकर था. यह संदेश वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ईसाई-बहुसंख्यक आबादी की चिंता और बेचैनी को रेखांकित करता है.
बीजेपी नगालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आई. इस बार बीजेपी ने 20 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनमें से 11 ने 2018 के चुनाव में जीत हासिल की थी. पार्टी ने 2018 के चुनावों में 60 में से 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 60 फीसदी के स्ट्राइक रेट के साथ 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, इस बार बीजेपी नागालैंड में अपनी हिंदुत्व विचारधारा और चुनावी वास्तविकताओं के बीच खुद को मुश्किल में पा रही है. ध्यान रहे कि नागालैंड में 87 प्रतिशत आबादी ईसाई है.
बहुसंख्यक आबादी को मनाने में असमर्थ रही BJP
दो ईसाई राज्यों, नागालैंड और मेघालय में अपने हिंदुत्व के एजेंडे को हल्का करने के बावजूद यह भगवा पार्टी बहुसंख्यक आबादी को मनाने में असमर्थ रही है.उदाहरण के लिए, बीजेपी के नेतृत्व वाली असम सरकार ने हाल ही में विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) द्वारा जारी आदेश से खुद को दूर करते हुए अपने धर्मांतरण विरोधी अभियान से यू-टर्न ले लिया. एसपी ने राज्य में धर्म परिवर्तन और चर्चों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी थी.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने आदेश पर विवाद के मद्देनजर समाचार पत्रों को बताया, मैं एसपी द्वारा जारी पत्र से खुद को पूरी तरह से अलग करता हूं. यह (आदेश) अनुचित था.बीजेपी ने खुद को कांग्रेस के इस आरोप से भी अलग कर लिया है कि आरएसएस समर्थित जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच (जेडीएसएसएम) उत्तर पूर्व में आदिवासी ईसाइयों को एसटी सूची से हटाने की मांग कर रहा है. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री जॉन बारला ने कहा कि बीजेपी को ऐसे किसी संगठन के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही इससे कोई लेना-देना है.
नगालैंड के उपमुख्यमंत्री पैटन ने कहा कि देश भर में ईसाइयों को परेशान करने का कोई सवाल ही नहीं है, यह विपक्षी दलों द्वारा फैलाया गया दुष्प्रचार और अफवाह है. नगालैंड बीजेपी के सदस्य यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी “ईसाई विरोधी नहीं” है. नागालैंड बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता कुपुतो शोहे ने कहा, “हमारे लगभग सभी उम्मीदवार ईसाई हैं.”
यह इतना अहम क्यों है?
बीजेपी का धर्मांतरण विरोधी मुद्दा इसे चुनावी राज्य कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में कुछ राजनीतिक लाभ दिला सकता है, लेकिन नगालैंड में यह कदम घातक साबित हो रहा है. दूसरे राज्यों में चर्चों और ईसाई समुदाय के खिलाफ हमलों की खबरों ने नगालैंड और मेघालय में बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है, जहां 27 फरवरी को मतदान होने हैं.
चर्चों और विपक्षी दलों के अलावा, बीजेपी अपने कथित धर्मांतरण विरोधी अभियान के लिए अपने राजनीतिक सहयोगियों के भी निशाने पर आ गई है. इसकी वजह से उसे उत्तर पूर्व में कुछ सुलह के संकेत देने के लिए मजबूर होना पड़ा. धर्मांतरण के नाम पर भगवा ब्रिगेड के ईसाई विरोधी अत्याचारों ने बीजेपी के लिए इस क्षेत्र के ईसाई बहुल राज्यों में अपने अभियान विस्तार करना मुश्किल बना दिया है.
घटनाक्रम पर जताई नाखुशी
नगालैंड की सत्ताधारी पार्टी और बीजेपी की सहयोगी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने भी ईसाई समुदाय से जुड़े हालिया घटनाक्रम पर नाखुशी जताई है. नगालैंड में अपनी मूल विचारधारा के विरोध को भांपते हुए, बीजेपी ने विकास और एकीकरण जैसे अधिक व्यावहारिक मुद्दों का समर्थन किया है.
मुख्य पहलुओं में से एक, जहां रणनीति में ऐसा बदलाव काफी हद तक दिखाई दे रहा है, वह मांसाहारी भोजन के प्रति बीजेपी का रवैया है. बीजेपी शासित राज्यों (हरियाणा इसका ताजा उदाहरण है, जहां दो मुस्लिम युवकों को कथित तौर पर गौरक्षक समूहों द्वारा जला दिया गया) में पशु तस्करी और गोमांस खाने के संदेह में लिंचिंग असामान्य नहीं है, जबकि उत्तर पूर्व में कहानी अलग है. राज्य में बीजेपी को बीफ खाने वाले लोगों को लेकर कोई शिकायत नहीं है.
2018 से, बीजेपी उत्तर पूर्व में विकास को चुनावी मुद्दा बनाकर अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव और सह-संयोजक (उत्तर पूर्व) ऋतुराज सिन्हा का कहना है कि पार्टी एनडीपीपी के साथ गठबंधन धर्म के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और “ईसाई-विरोधी” या “चर्च-विरोधी” होने के टैग को खारिज करती है.
विवाद के बीच आया एनबीसीसी का संदेश
नागालैंड में बैपटिस्ट चर्चों के लिए एनबीसीसी का संदेश एक विवाद के बीच आया है. इस विवाद का संबंध बीजेपी द्वारा चुनाव प्रचार के लिए ईसाई प्रतीकवाद के उपयोग से है. इस विवाद में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जॉन बारला शामिल हैं. 16 फरवरी को नागालैंड के बीजेपी अध्यक्ष तेमजेन इम्ना अलोंग के लिए चुनाव अभियान का एक वीडियो उन्हें चिल्लाते हुए दिखाता है, प्रभु की स्तुति करो! हेलेलुजाह!
वीडियो के वायरल होने के बाद, चर्च समूहों ने उन पर राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का इस्तेमाल करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया. एक प्रेस विज्ञप्ति में, एनबीसीसी ने कहा, “राजनीतिक मंचों में ‘हैलेलूजाह’ और ‘प्रभु की स्तुति’ का उपयोग करना ईसाई बहुसंख्यक समाज को विभाजित करने की चाल के अलावा कुछ नहीं है.”
हालांकि, बीजेपी ने इस विवाद से खुद को दूर कर लिया, यह कहते हुए कि यह बरला की “व्यक्तिगत पसंद” थी. नगालैंड बीजेपी के महासचिव खेविशे सेमा ने कहा, ‘हम ईश्वर के नाम पर वोट नहीं मांग रहे हैं. इसमें कोई राजनीति नहीं है.”
BJP कर रही प्रयास
इस विवाद के बाद से बीजेपी अपनी “ईसाई-विरोधी” छवि को छोड़ने की कोशिश कर रही है, यहां तक कि सुलह का संदेश देने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर रही है. पार्टी को आगामी चुनावों में 15-18 सीटें हासिल करने की उम्मीद है और इसके लिए बैपटिस्ट चर्च का समर्थन महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
जॉन बारला ने दावा किया है कि नागालैंड के लोगों ने बीजेपी को “स्वीकार” कर लिया है. बरला, जो एक पादरी थे और प्रति माह 5,000 रुपये कमाता थे, को बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट दिया था और केंद्र सरकार में मंत्री बनाया था.
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. इस लेख में दिए गए विचार और तथ्य TV9 के स्टैंड का प्रतिनिधित्व नहीं करते.)