अब सब खत्म हो गया…सिर पर मौत देख डर से कांप गए थे मजदूर… चमोली हादसे की दर्दभरी कहानी

अब सब खत्म हो गया…सिर पर मौत देख डर से कांप गए थे मजदूर… चमोली हादसे की दर्दभरी कहानी

चमोली में सामने आए भयानक बर्फ के तूफान में कई लोग फंस गए थे. 50 से 55 लोगों को रेस्क्यू किया गया है और अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. तूफान में फंसे लोगों ने अपनी दर्दभरी कहानी सुनाई है. विपन कुमार ने कहा, मैंने बर्फ के तूफान के आने की तेज आवाज सुनी, इससे पहले की मैं कुछ कह पाता, खुद को बचाने के लिए सोचता, मेरे चारों तरफ अंधेरा छा गया. मुझे लगा यह ही मौत है, मैंने सामने मौत को खड़ा देखा.

अब सब खत्म हो गया… हर तरफ अंधेरा छा गया था…

यह वो अल्फाज और डर है जो उस वक्त उन लोगों ने महसूस किया जो चमोली में बर्फ के तूफान में फंस गए थे. उन्हें मौत सामने खड़ी दिखाई दी. 24 घंटे तक खाना नहीं खाया, बर्फ के तूफान में नंगे पैर चले और अब उस वक्त का जिक्र करते हुए भी वो कांप रहे हैं.

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव इलाके में हाल ही में भयानक हादसा सामने आया. बीआरओ कैंप पर ग्लेशियर टूटने से चार मजदूरों की मौत हो गईं, जबकि राहत और बचाव कार्य का काम किया जा रहा है. रविवार सुबह 4 गायब हुए मजदूरों को ढूंढने के लिए एक बार फिर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया है. यह चार मजदूर पिछले 48 घंटों से बर्फ के तूफान में फंसे हुए हैं. इन 4 लापता श्रमिकों की पहचान हिमाचल प्रदेश के हरमेश चंद, उत्तर प्रदेश के अशोक और उत्तराखंड के अनिल कुमार और अरविंद सिंह के रूप में की गई है.

रेस्क्यू ऑपरेशन जारी

इस तूफान के बाद सेना की टीमों ने 55 में से 50 मजदूरों को रेस्क्यू किया है. इन लोगों ने बताया है कि जिस समय यह सब लोग इस तूफान में फंसे थे उन्होंने किन हालातों का सामना किया, वो क्या महसूस कर रहे थे, मौत कितने करीब दिख रही थी. दहशत और डर की वजह से उनका क्या हाल था और बर्फ के तूफान में वो जम गए थे.

“हाथ और पैर कांप गए थे”

40 साल के मनोज भंडारी ने उस खतरनाक वक्त के बारे में बताया, उन्होंने कहा वो बीआरओ कैंपसाइट पर 8 कंटेनरों में से एक में आराम कर रहे थे. उसी समय जब बर्फ का तूफान आया तो वो सभी हैरान रह गए. कैंप में वो और उनके दो साथी बर्फ के तूफान में नंगे पैर, बिना ज्यादा मोटे कपड़े पहने फंसे हुए थे और ठंड से कांप रहे थे. उन्हें इसी हालत में घंटों तक तूफान में फंसा रहना पड़ा.

उन्होंने बताया, तूफान आने के बाद कंटेनर सैकड़ों मीटर तक तूफान के साथ लुढ़कता हुआ चला गया. हिमस्खलन ने कंटेनर को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. कंटेनर के दरवाजे, छत और खिड़कियां टूट गईं. उन्होंने आगे कहा, मैं और मेरे दो साथी घायल हालत में बर्फ के तूफान के नीचे अस्त-व्यस्त होकर पड़े हुए थे. हमारे फोन, बैग और अन्य सामान कंटेनर के साथ बह गए.

उन्होंने कहा, खुद को बचाने के लिए वो नंगे पैर आर्मी गेस्ट हाउस में चले गए. उनके पैर ठंड से सुन्न हो गए थे. जब तक वो गेस्ट रूम तक पहुंचे उन में ताकत नहीं बची थी. साथ ही उन्होंने कहा शनिवार को जब तक उन्हें रेस्क्यू किया गया उन्हें 24 घंटे बिना खाए-पिये रहना पड़ा.

“हर तरफ अंधेरा छा गया था”

नरेश सिंह बिष्ट और दीक्षित सिंह बिष्ट दोनों चचेरे भाई ने भी इन भयानक हालातों का सामना किया. उन्हें लंबे समय तक अंधेरे में रहना पड़ा. नरेश सिंह के पिता ने बताया जब हम ने शुक्रवार दोपहर 1 बजे के आसपास हिमस्खलन के बारे में सुना, तो हम काफी परेशान हो गए, हमें बच्चों की चिंता होने लगी, वो सुरक्षि हैं या नहीं, उनको लगातार फोन किए, लेकिन उनका फोन बंद जा रहा था. फिर हमने हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया, तब हमें पता चला कि वो सुरक्षित है. तब हम ने सुकून की सांस ली.

“अब सब खत्म हो गया”

चमोली जिले के नारायणबगड़ के गोपाल जोशी ने इस खतरनाक हिमस्खलन के बाद उनकी जान बचाने के लिए भगवान बद्रीनाथ को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, जैसे ही हम कंटेनर हाउस से बाहर आए, हमने गड़गड़ाहट सुनी और जैसे ही पीछे देखा बर्फ का सैलाब हमारी तरफ बढ़ रहा था. मैं अपने साथियों को इस के बारे में बताने के लिए जोर से चिल्लाया और फिर मैंने खुद को बचाने के लिए तेजी से भागना शुरू किया. बर्फ इतनी ज्यादा थी कि मैं तेजी से भाग नहीं पा रहा था. पूरे 2 घंटे के बाद हमें रेस्क्यू कर लिया गया.

विपन कुमार ने कहा, मैंने बर्फ के तूफान के आने की तेज आवाज सुनी, इससे पहले की मैं कुछ कह पाता, खुद को बचाने के लिए सोचता, मेरे चारों तरफ अंधेरा छा गया. कुमार ने कहा, मुझे लगा यह ही मौत है, मैंने सामने मौत को खड़ा देखा, मैं हिल नहीं पा रहा था और मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. इसी के बाद लगातार कोशिशों के बाद उन्होंने खुद को बचा लिया. कई मजदूरों को गंभीर चोट आई हैं. वहीं, 4 की मौत हो गई हैं.