मायावती ने आकाश को दिया था पद का आनंद, फिर 5 महीने में ऐसा क्या हुआ कि धरती पर उतारा
बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन अब उन्होंने कड़ा एक्शन लेते हुए पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया और उत्तराधिकारी बनाने के फैसले को भी वापस ले लिया. सवाल उठ रहा है कि उन्होंने ऐसी कार्रवाई क्यों की है, जिसकी कई वजह हो सकती हैं.
लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार देर रात बड़ा फैसला ले लिया. मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटाने के साथ-साथ उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला भी वापस ले लिया. बसपा प्रमुख ने ट्वीट करते हुए कहा है कि पार्टी और उसके मूवमेंट के व्यापक हित को देखते हुए पूर्ण परिपक्वता आने तक आकाश आनंद को दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा रहा है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आकाश आनंद के पिता आनंद कुमार पार्टी और मूवमेंट में अपनी जिम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे.
पिछले साल 10 दिसंबर 2023 को मायावती ने बसपा की बैठक में अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था. उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर पार्टी की निगाह में कमजोर राज्यों में आकाश आनंद काम करेंगे. मायावती ने आकाश को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी. ऐसे में चुनाव ऐलान के साथ आकाश आनंद ने ताबड़तोड़ रैलियां शुरू कर दीं और आक्रामक तेवर के साथ प्रचार कर बसपा के पक्ष में राजनीतिक माहौल बनाने के लिए मशक्कत कर रहे थे, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ और क्या वजह थी कि मायावती को पांच महीने में ही आकाश आनंद में अपरिपक्वता दिखने लगी और उन्हें सारी जिम्मेदारियों से मुक्त करना पड़ा?
आकाश पर एफआईआर बनी वजह?
2024 के लोकसभा चुनाव ऐलान के साथ ही पश्चिमी यूपी के नगीना से लेकर पूर्वांचल के बनारस तक आकाश आनंद ने करीब दो दर्जन से ज्यादा रैलियों को संबोधित करने का काम किया. इस दौरान आकाश आनंद ने आक्रामक तेवर अख्तियार कर रखा था. उन्होंने सीतापुर के राजा कॉलेज में एक जनसभा को संबोधित किया था, जहां पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में आकाश आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी. आकाश आनंद जिस भाषा शैली और तेवर में रैलियों को संबोधित कर रहे थे, क्या उसके चलते मायावती को उन्हें हटाना पड़ा है?
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यूपी में ज्यादा सक्रिय होना पड़ा महंगा
बसपा प्रमुख मायावती ने पांच महीने पहले आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी और नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी थी, तो उस वक्त ही ये साफ कर दिया था कि आकाश आनंद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर उन राज्यों में काम करेंगे, जहां पार्टी कमजोर स्थिति में है. एक तरह से आकाश आनंद को हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों की कमान दी गई थी, लेकिन आकाश आनंद ने अपना फोकस यूपी पर केंद्रित रखा. आकाश की ज्यादातर रैलियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं. ऐसे में यूपी की सियासत में सक्रिय होना कहीं आकाश आनंद को तो महंगा नहीं पड़ा, क्योंकि यूपी में बसपा के जिन नेताओं के हाथों में कमान है, उसमें कई नेता ऐसे हैं जिनका आकाश आनंद से छत्तीस का आंकड़ा है.
बसपा की कार्यशैली से अलग चल रहे
बसपा की अपनी एक कार्यशाली है, उस लाइन पर पूरी पार्टी चलती है. बसपा में सिर्फ मायावती ही अपनी बात रखती हैं, उनके सिवा किसी भी नेता को कोई लाइन लेने का अधिकार नहीं है. इतना ही नहीं, बसपा में प्रवक्ता पद का चलन नहीं है. बसपा के नजरिए की भी कोई बात रखनी होती है तो मायावती ही अपना बयान जारी करती हैं. मायावती मीडिया को भी इंटरव्यू नहीं देती हैं, जबकि आकाश आनंद ने हाल ही में कई मीडिया हाउस को इंटरव्यू दिए और बसपा का पक्ष भी खुलकर रखा. बीजेपी पर बसपा का क्या सियासी स्टैंड है और कभी बीजेपी के साथ गठबंधन करने के सवाल पर आकाश आनंद ने स्पष्ट जवाब दिया था. इतना ही नहीं, आकाश आनंद सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर सक्रिय नजर आ रहे थे. आकाश आनंद बसपा को मॉर्डन रूप में स्थापित करने में लगे थे.
बीजेपी पर निशाना साधना महंगा पड़ा
आकाश आनंद अपनी चुनावी रैलियों में लगातार बीजेपी और मोदी-योगी सरकार को सीधे निशाने पर ले रहे थे. वहीं, मायावती जब भी बीजेपी को हमला करती हैं तो साथ में कांग्रेस पर भी सवाल खड़ी करती हैं. आकाश आनंद अपनी जनसभाओं में सपा और कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के खिलाफ मुखर हो गए थे. इस तरह आकाश आनंद बीजेपी की बी टीम वाले नैरेटिव को तोड़ते हुए नजर आ रहे थे. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आकाश आनंद जिस तरह से आक्रामक तेवर और शैली में भाषण दे रहे थे उससे बीजेपी को नुकसान और सपा को फायदा होता दिख रहा था. शायद यही वजह थी कि मायावती ने आकाश आनंद को हटाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है.
BSP नेताओं के साथ नहीं बना संतुलन?
मायावती की उंगली पकड़कर राजनीति की एबीसीडी सीखने वाले आकाश आनंद अपनी अलग सियासी लकीर खींचना चाहते थे. सूत्रों की मानें तो मायावती के उत्तराधिकारी घोषित होने के बाद से आकाश आनंद बसपा को एक नए अवतार में ले जाना चाहते थे, उनकी कार्यशैली से पार्टी के कई कोऑर्डिनेटर असहज महसूस कर रहे थे. मायावती ने जिन बसपा नेताओं के साथ आकाश आनंद को काम करने के लिए लगाया था, उनके साथ ही नहीं पटी. पिछले साल राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी दिखा था कि आकाश आनंद बीच चुनाव में खुद किनारा कर लिए थे, क्योंकि एक भी नेशनल कोऑर्डिनेटर उनकी सलाह को मानने के लिए तैयार नहीं था. बसपा में इस वक्त जो भी कोऑर्डिनेटर हैं उनके साथ आकाश आनंद के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं है. इसकी वजह जनरेशन गैप है और जो उनकी सियासी राह में बाधा बन गई. माना जाता है कि बसपा में फिलहाल एक टीम ऐसी है, जो मायावती के करीबी हैं. उनके साथ बिगड़े आकाश आनंद के रिश्ते महंगे पड़े हैं.