खराब कैंपेन, कमजोर संगठन… झारखंड में हेमंत सोरेन के लिए कैसे मुसीबत बनी कांग्रेस?

खराब कैंपेन, कमजोर संगठन… झारखंड में हेमंत सोरेन के लिए कैसे मुसीबत बनी कांग्रेस?

झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ढुलमुल रवैये से उसके सहयोगी दल भी चिंता में पड़ गए हैं. कहा जा रहा है कि राज्य की 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस की ओर से अभी तक खुलकर बैटिंग नहीं हुई है. पहले चरण के चुनाव के बाद भी जनता के बीच में कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी बाकी दलों की तुलना में बहुत कम देखने को मिल रही है.

झारखंड में कांग्रेस 30 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसके कमजोर कैंपेन की वजह से इंडिया गठबंधन को झटका लग सकता है. बीजेपी कैंप भी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को कमजोर कड़ी मान रहा है. इसकी वजहें भी हैं. पहले चरण के चुनाव तक कांग्रेस के दो दिग्गज नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने मिलकर कुल 11 रैलियां की हैं. इससे साफ पता चलता है कि कांग्रेस कैंपेन में वो जान नहीं डाल रही है जो उसे डालना चाहिए. इसलिए इंडिया गठबंधन में ही कांग्रेस के लचीले रवैये के चलते डर का माहौल है कि 30 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस कहीं हेमंत सोरेन की सरकार बनने में फिसड्डी ने साबित हो जाए.

झारखंड में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति को देखते बिहार में 2020 की कहानी झारखंड में दोहराने को लेकर भी चर्चा चल रही है. साल 2020 में तेजस्वी यादव सरकार बनाने से चूक गए थे. वजह थी कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत से कहीं ज्यादा सीटें आवंटित करना. तेजस्वी महज बारह हजार वोटों से पिछड़े थे और कांग्रेस पचास से ज्यादा सीटों पर लड़ कर भी 17 सीट पर सिमट गई थी. झारखंड में भी यही डर इंडिया ब्लॉक को सता रहा है. राहुल गांधी पहले चरण तक सात और खरगे चार सभाएं कर चुके हैं. आदिवासियों के बीच कम मौजूदगी और पांच साल तक सत्ता में रहने के बावजूद जमीन पर कमजोर कार्यकर्ताओं की मौजूदगी चिंता का सबब बना हुआ है.

प्रियंका की अनुपस्थिति ने बढ़ाई टेंशन

कहा जा रहा है कि कांग्रेस का कमजोर कैंपेन हेमंत सोरेन के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. कांग्रेस को उम्मीद थी कि प्रियंका गांधी झारखंड में ताबड़तोड़ प्रचार करेंगी, लेकिन वायनाड में प्रियंका खुद उम्मीदवार हैं. इसलिए उनकी अनुपस्थिति सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे इंडिया ब्लॉक के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना की सभा में पुरजोर भीड़ आ रही है, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशियों की सभा में लोगों की कम उपस्थिति चिंता पैदा कर रही है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कम संख्या में कार्यकर्ता भी हेमंत सोरेन पर आश्रित दिख रहे हैं. इसलिए जमीन पर जो मेहनत कार्यकर्ताओं द्वारा की जानी चाहिए उसमें भी भारी कमी है.

पहले चरण के चुनाव से एक दिन पहले जारी हुआ मेनिफेस्टो

झारखंड चुनाव को कांग्रेस कितनी गंभीरता से लड़ रही है ये इस बात से पता चलता है कि पहले चरण के चुनाव से ठीक एक दिन पहले कांग्रेस अपना मैनिफेस्टो जारी करती है. पहला चरण का चुनाव 13 मई को था और कांग्रेस 12 मई को अपना मेनिफेस्टो ज़ारी कर जनता को कांग्रेस को वोट देने की अपील करते देखी गई है. बीजेपी ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर करते हुए इसे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ बताया है और चुनाव आयोग में इसकी पुरजोर शिकायत भी की है. पहले चरण में 38 सीटों पर चुनाव की तारीख से ठीक एक दिन पहले मेनिफेस्टो जारी कर कांग्रेस अपनी बातें जनता तक सही तरीके से पहुंचा सकी होगी या नहीं ये भी अपने आप में एक सवाल है.

कांग्रेस पहले चरण में 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी और कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में 1932 के खतियान के मुताबिक डोमिसाइल देने के अलावा सरना धार्मिक कोड लागू करने की बात कही है. इतना ही नहीं झारखंड की जनता से 250 यूनिट बिजली फ्री के अलावा जातीय जनगणना कराने का दावा भी कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में किया है. जाहिर है मैनिफेस्टो कमेटी के चेयरपर्सन बंधु तिर्की मैनिफेस्टो को लेकर अपने तर्क दें, लेकिन पहले चरण के चुनाव से एक दिन पहले मेनिफेस्टो रिलीज करना कांग्रेस के भीतर कॉर्डिनेशन की कमी की गंभीर समस्याओं को बखूबी बयां करता है.

संगठन के स्तर पर भी कांग्रेस दिख रही है बेहद कमजोर!

चुनाव से कुछ महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष को बदलकर कांग्रेस ने एक और बड़ा रिस्क लिया है. आलम यह है कि प्रदेश कमेटी को डिजॉल्व किया जा चुका है, लेकिन नई कमेटी बना पाने में कांग्रेस पूरी तरह विफल रही है. कांग्रेस के लिए पुरानी कमेटी के लोग पूरी ताकत से काम कर रहे हैं. ऐसा दावा किया जा रहा है, लेकिन बिना अकाउंटेबिलिटी के कोई नेता और कार्यकर्ता कितनी मेहनत कर सकता है इसका जवाब कांग्रेस के बड़े नेता दे नहीं पाते हैं.

कुल मिलाकर कहें तो हरियाणा में हार और जम्मू-कश्मीर में 29 में से सिर्फ 6 सीटों पर कांग्रेस की जीत कांग्रेस पार्टी की असली कहानी खुद ब खुद बयां कर रही है. कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस की लताड़ लगाई थी. इसलिए राजेश ठाकुर को हटा कर केशव महतो को कुछ महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना कांग्रेस के भीतर भी लोगों के गले नहीं उतर रहा है.

प्रभारी गुलाम अहमद मीर के बयान से बढ़ीं मुश्किलें

कांग्रेस के झारखंड के प्रभारी गुलाम अहमद मीर का बयान कांग्रेस के लिए गले की फांस बन गया है. गुलाम मीर ने 450 रुपए का सिलेंडर झारखंड के स्थानीय निवासी के अलावा घुसपैठिए को भी देने की बात कह दी है. जाहिर है गुलाम अहमद का ये बयान पूरे इंडिया ब्लॉक के लिए डिफेंड करना कठिन हो रहा है. इसलिए कांग्रेस के केंद्रीय नेता गुलाम अहमद मीर का निजी बयान बताकर बचने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन बात जुबान से और तीर कमान से निकल जाने के बाद वापस नहीं हो सकती. इसलिए कांग्रेस को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है.

झारखंड बीजेपी के प्रभारी शिवराज सिंह चौहान इसे बड़ा मुद्दा बनाकर सोनिया गांधी समेत, राहुल गांधी और खरगे पर शब्दों के बाण चलाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी नॉर्थ ईस्ट के राज्यों की तरह झारखंड में भी घुसपैठ का मुद्दा उठाकर आदिवासियों को साधने में जुटी है. इस कड़ी में आदिवासियों के लिए रोटी-बेटी और माटी का मुद्दा उठाकर बीजेपी संथाल परगना और अन्य इलाकों में आदिवासियों को साधने में जुटी हुई है. ऐसे में कैंपेन के मध्य में कांग्रेस प्रभारी द्वारा घुसपैठियों को सस्ते दामों में सिलेंडर देने की बात कहना अपने ही गोल पोस्ट में गोल करने जैसा है.

कांग्रेस-जेएमएम के लिए क्या बोझ बन गई है कांग्रेस?

कांग्रेस जेएमएम के लिए बोझ बनती दिख रही है. पांच सालों में पार्टी सांगठनिक स्तर पर भी मजबूत नहीं हो पाई है ये साफ दिख रहा है. कांग्रेस के कार्यकर्ता भी बड़े नेताओं की तरह जमीन पर उतरने से परहेज करते दिख रहे हैं. हेमंत सोरेन भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए थे, लेकिन कई राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि हेमंत का जेल जाना उनको सियासी मजबूती दे सकता है.

राजनीतिक विश्लेषक श्याम किशोर चौबे के मुताबिक हेमंत और कल्पना सोरेन झारखंड में हीरो बनकर उभरे हैं. लेकिन कांग्रेस एक घटक दल के तौर संगठन और नेता के अभाव में कमजोर कड़ी साबित होगी ये आसनी से देखा जा सकता है. जाहिर है आलमगीर आलम के ऊपर 30 करोड़ रुपए की बरामदगी का आरोप हो या धीरज साहू के घर साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए बरामद होने की खबर, कांग्रेस इसकी काट ढ़ूंढ़ नहीं पाई है.

‘साथी कम और बोझ ज्यादा दिखने लगी है’

पिछले पांच सालों में कांग्रेस के भीतर मंत्री बनने की लड़ाई कांग्रेस को और खोखली करती दिखी है. यही वजह है कि हेमंत सोरेन चंपई के पार्टी से निकलने के बावजूद आदिवासियों में मजबूत पकड़ बनाए रखने में कामयाब दिख रहे हैं, लेकिन कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी छू पाएगी इसको लेकर इंडिया ब्लॉक में ही कानाफूसी तेज है. मजबूत नेतृत्व और लचर सांगठनिक व्यवस्था की वजह से कांग्रेस अब जेएमएम की साथी कम और बोझ ज्यादा दिखने लगी है. यही वजह है कि कई राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के चलते झारखंड चुनाव परिणाम में बड़े उलटफेर की आशंका जता रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि 81 में 30 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है जबकि इसका कैंपेन औसत से भी नीचे है. अकेले हेमंत बीजेपी के सामने कांग्रेस की भी नैया पार करा लेंगे इसकी संभावना बहुत कम है.