लादेन की तस्वीरें, ISIS के झंडे मिलना काफी नहीं…HC ने UAPA केस के आरोपी को दी जमानत
दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए फैसला सुनाया कि ज्यादा से ज्यादा, रहमान को एक अत्यधिक कट्टरपंथी व्यक्ति कहा जा सकता है जो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ISIS की विचारधारा में विश्वास करता था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने आईएसआईएस के केरल मॉड्यूल के मामले में आरोपी को जमानत दे दी है. हाईकोर्ट ने UAPA के मामले में जमानत देते हुए सोमवार को कहा कि सिर्फ इसलिए कि आरोपी के मोबाइल में आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें, जिहाद प्रचार और ISIS के झंडे जैसी आपत्तिजनक सामग्री पाई गई थी और वह कट्टरपंथी या मुस्लिम प्रचारकों के उपदेश सुनता था. कोर्ट ने कहा कि यह सारी बातें उसे ISIS जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का सदस्य करार देने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.
जस्टिस सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री वर्ल्ड वाइड वेब पर आसानी से उपलब्ध है और केवल इसे एक्सेस करना और डाउनलोड करना यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि आरोपी ने खुद को ISIS से जोड़ा है.
जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा कि कोई भी जिज्ञासु व्यक्ति ऐसी सामग्री तक पहुंच सकता है और उसे डाउनलोड भी कर सकता है. हमें लगता है कि यह कृत्य अपने आप में कोई अपराध नहीं है. कोर्ट ने अमर अब्दुल रहमान को ज़मानत देते हुए ये टिप्पणियां की, जिसे अगस्त 2021 में NIA ने गिरफ़्तार किया था. उमर पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 120बी के साथ UAPA की धारा 2(ओ), 13, 38 और 39 के तहत आरोप लगाए गए थे.
आरोपों के मुताबिक अब्दुल रहमान ISIS के प्रति कट्टरपंथी था. उसने ISIS के ज्ञात और अज्ञात सदस्यों के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर और उसके नियंत्रण वाले अन्य क्षेत्रों में हिजरा करने के लिए आपराधिक साजिश रची थी. ताकि वह खिलाफत की स्थापना के लिए ISIS में शामिल हो सके और भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे सके.
NIA ने आरोप लगाया कि रहमान के मोबाइल फोन की जांच से पता चला कि उसने स्क्रीन रिकॉर्डर का इस्तेमाल करके इंस्टाग्राम से ISIS और क्रूर हत्याओं से संबंधित वीडियो डाउनलोड किए थे. एजेंसी ने आगे आरोप लगाया कि मोबाइल में ओसामा-बिन-लादेन, जिहाद प्रचार, ISIS के झंडे आदि की तस्वीरें भी थीं, जिससे उसकी कट्टरपंथी मानसिकता और ISIS से जुड़ाव की पुष्टि होती है.
कोर्ट के सामने सवाल यह था कि क्या महज़ यह तथ्य कि रहमान के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में उसकी कट्टरपंथी मानसिकता को दर्शाने वाली सामग्री थी, अपने आप में यह मानने के लिए पर्याप्त होगा कि वह न केवल ISIS से जुड़ा था, बल्कि उसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में भी लगा था?
कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए फैसला सुनाया कि ज्यादा से ज्यादा, रहमान को एक अत्यधिक कट्टरपंथी व्यक्ति कहा जा सकता है जो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ISIS की विचारधारा में विश्वास करता था. हालांकि, कोर्ट यह भी कहा कि ISIS के प्रति उसके आकर्षण को इस तरह नहीं कहा जा सकता कि वह ISIS से जुड़ा था और इसके उद्देश्य को आगे बढ़ा रहा था.
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा कोई अन्य तथ्य या परिस्थिति नहीं है जो साजिश के तत्व को इंगित कर सके और केवल इसलिए कि रहमान ने मोबाइल सफारी या टेलीग्राम जैसे कुछ सॉफ्टवेयर डाउनलोड किए थे, इसका कोई ठोस मतलब नहीं होगा क्योंकि वे सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं.
कोर्ट ने कहा कि केवल इस तथ्य के आधार पर कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि ऐसी सामग्री रहमान के मोबाइल में डाउनलोड की गई थी. ज्यादा से ज्यादा, अपीलकर्ता अत्यधिक कट्टरपंथी था और उसने ISIS समर्थक सामग्री डाउनलोड की थी और मुस्लिम कट्टरपंथियों के उपदेशों तक पहुंच रहा था, लेकिन यह UAPA की धारा 38 और धारा 39 को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भले ही, एक पल के लिए, हम यह मान लें कि अपीलकर्ता ISIS से जुड़ा हुआ है या वह ऐसे संगठन का समर्थन कर रहा था, अभियोजन पक्ष के लिए यह अनिवार्य है कि वह मेन्स रीया के सबसे महत्वपूर्ण तत्व को और स्थापित करे. यानी ऐसे आतंकवादी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के इरादे से काम करना. धारा 38 और धारा 39 के इस महत्वपूर्ण अंतर्निहित तत्व को कल्पना के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ वीडियो और फाइलें आपत्तिजनक प्रकृति की थीं, जो सवाल उठाने वाली थीं, लेकिन अब्दुल रहमान केवल उनकी सामग्री को डाउनलोड कर रहा था और अपने मोबाइल पर संग्रहीत कर रहा था तथा रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है. जिससे संकेत मिले कि उसने किसी को भी सामग्री प्रसारित या प्रेषित करने की कोई कोशिश की हो.
याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि संबंधित विशेष अदालत द्वारा उचित समझे जाने वाले नियमों और शर्तों पर रहमान को जमानत पर रिहा किया जाए. हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऊपर की गई टिप्पणियां अस्थायी प्रकृति की हैं और केवल जमानत तय करने के उद्देश्य से हैं. ट्रायल कोर्ट ऊपर की गई किसी भी टिप्पणी से सहमत नहीं होगा, जो स्पष्ट रूप से मामले के गुण-दोष के बारे में अंतिम अभिव्यक्ति नहीं है.