मैंने जो मां पर लिखा है, वही काफी होगा… नौजवानों की नस्ल को मां का मतलब समझा गए मुनव्वर राणा

मैंने जो मां पर लिखा है, वही काफी होगा… नौजवानों की नस्ल को मां का मतलब समझा गए मुनव्वर राणा

मुनव्वर राणा साहब अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे, वह कहते थे कि शायर की जो महबूबा होती है उसका तसब्बुर भी अलग होता है, गजल का मतलब है महबूब से बातें करना, यही मैंने सीखा है और यही मुझे सिखाया गया है... मगर मेरी महबूब मेरी मां है...

‘चलती फिरती हुई आंखों से अज़ा देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है…’ दिल को छू लेने वाला ये नायाब शेर लिखने वाले मशहूर शायर मुनव्वर राणा अब इस दुनिया में नहीं रहे. लंबी बीमारी के बाद वह दुनिया-ए-फानी से कूच कर गए. वह पिछले कई दिनों से बीमार थे, रविवार देर रात दिल का दौरा पड़ने से उनका इंतकाल हो गया.

मशहूर शायर मुनव्वर राणा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मां पर लिखे उनके दिल को छू लेने वाले नायाब शेर दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे. मां पर लिखे अपने बेहतरीन अशआर ने न सिर्फ उन्होंने नौजवान नस्ल को मां का मतलब समझाया, बल्कि ये भी बताया कि जीवन में मां की क्या अहमियत है. अपनी मां के इंतकाल पर उन्होंने लिखा था.

”मेरी ख्वाहिश है कि फिर से मैं फरिश्ता हो जाऊं, मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं… कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर, ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं…”

अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए मुनव्वर राणा फरिश्ता बन मां से लिपटने के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए. रविवार देर रात तकरीबन 11.30 बजे उनके बेटे ने उनके इंतकाल की पुष्टि की. दिल को छू लेने वाले नायब शेरों से शायरी जगत को रोशन करने वाली यह शख्सीयत दिल का दौरा पड़ने से ही रुखसत हुई. मगर दिलों में मां के नाम का जो चिराग राणा साहब ने जलाया वह ताउम्र दिलों में जलता रहेगा. वह खुद ऐसा कहते भी थे. एक शेर उन्होंने लिखा था-

‘दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम, ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा. नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी, मैंने जो मां पर लिखा है, वही काफी होगा…”

गजल का मतलब महबूब, मेरी महबूब मेरी मां…

मुनव्वर राणा साहब अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे, वह कहते थे कि शायर की जो महबूबा होती है उसका तसब्बुर भी अलग होता है, गजल का मतलब है महबूब से बातें करना, यही मैंने सीखा है और यही मुझे सिखाया गया है… मगर रायबरेली की मिट्टी का एतिजाज का असर और उस पर बंगाल की बगावतजदा मिट्टी का असर, मैंने सोचा कि आखिर मेरी मां मेरी महबूब क्यों नहीं हो सकती. वो मां जिसने मेरी पैदाइश में खुदा का हाथ बंटाया. उन्होंने लिखा-

‘लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती’

और

‘मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना…’

जब तुलसी के महबूब राम, तो मेरी मां क्यों नहीं?

मुनव्वर राणा साहब से जब कोई ये कहता कि गजल के मायने तो महबूबा से ही होते हैं वह कहते थे, कि जब तुलसीदास के महबूब राम हो सकते हैं, तो मेरी महबूत मेरी मां क्यों नहीं हो सकतीं? उन्होंने लिखा है-

‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई’

और

‘इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है’

मेरी कोशिश बस यही कि ओल्ड एज होम की एक ईंट दरक जाए..

मुनव्वर राणा साहब कहते थे कि मेरी कोशिश हमेशा ये रही कि हिंदुस्तानी होने की हैसियत से हम जिस मुल्क में रहते हैं उसमें गंगा को मां कहते हैं, यमुना को मां कहते हैं, गाय को मां कहते हैं, लेकिन अब हम मां को भी गाय समझते हैं, हमारे समाज में गिरावट आई है… वह कहते थे कि अगर हम ओल्ड एज होम की एक ईंट भी हिला दें तो हम मां के दूध का कर्ज उतार सकते हैं.. उन्होंने लिखा-

‘ ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया, मां ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया…’

और

‘बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ, उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ’

तू कहां से बूढ़ा होगा…

मुनव्वर राणा एक दिलचस्प किस्सा सुनाते थे, वह बताते थे कि एक दिन वह अपनी मां के पास गए और कहा- ‘अम्मा तबीयत ठीक नहीं रहती, अब लगता है चल चलाव का वक्त आ गया है’. इस पर मां हंसी और बोली की जब मां जिंदा है तो तू कहां से बूढ़ा हो जाएगा. इस पर भी उन्होंने एक शेर लिखा था-

‘कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में, ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है’

वह हमेशा मां को केंद्र में रखकर ही शायरी करते रहे और नौजवानों को ये अहसास कराते रहे कि मां का दर्जा सबसे ऊपर है.. ऐसे ही मुनव्वर राणा साहब के मां पर लिखे कुछ चुनिंदा शेर…

1- ‘जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा, मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा’

2- ‘हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे’

3- ‘खुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे, मां तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे’

4- ‘जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई, देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई’

5- अभी जिन्हा है मां मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है’

6- ‘कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी, मुझे माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी’

7- ‘बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर, माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है’

8- ‘मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं, सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया’

9- ‘मां के आगे यूं कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती’

10- ‘ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है’