Papmochani Ekadashi 2023:पापमोचनी एकादशी कब है, जानें इस व्रत की पूजा विधि और जरूरी नियम
Papmochani Ekadashi 2023: चैत्र मास के कृष्णपक्ष में पड़ने वाली पापमोचिनी एकादशी तिथि का क्या महत्व है और यह मार्च के महीने में कब पड़ेगी? श्री हरि की कृपा बरसाने वाली इस पावन तिथि पर रखे जाने वाले व्रत की विधि और महत्व जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
Papmochani Ekadashi 2023: जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान श्री विष्णु की साधना-आराधना के लिए एकादशी तिथि बहुत ज्यादा शुभ एवं फलदायी मानी गई है. इसका महत्व तब और भी ज्यादा बढ़ जाता है, जब यह चैत्र मास के कृष्णपक्ष में पड़ती है और पापमोचिनी एकादशी कहलाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार इस एकादशी तिथि पर भगवान श्री विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को पूर्व जन्म एवं वर्तमान में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक पर श्री हरि की पूरी कृपा बरसती है और वह सुखी जीवन जीता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है. आइए पापमोचिनी एकादशी तिथि की पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और नियम के बारे में विस्तार से जानते हैं.
पापमोचिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भगवान श्री विष्णु की कृपा बरसाने वाला पापमोचिनी एकादशी व्रत इस साल 18 मार्च 2023 को रखा जाएगा. पंचांग के अनुसार चैत्र मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 17 मार्च 2023 को दोपहर 02:06 बजे से प्रारंभ होकर 18 मार्च 2023 को रात्रि 11:13 बजे तक रहेगी. पापमोचिनी एकादशी तिथि व्रत का पारण 19 मार्च 2023 को प्रात:काल 06:27 से 08:07 बजे के बीच किया जाएगा.
पापमोचिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि
सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाली पापमोचिनी एकादशी व्रत का पूरा पुण्यफल पाने के लिए इस व्रत के एक दिन पहले से साधक को चावल समेत सभी तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए और व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद सूर्यदेव की को अर्घ्य देकर उनका ध्यान करना चाहिए. इसके बाद भगवान श्री विष्णु का ध्यान करते हुए इस एकादशी व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प करना चाहिए.
पापमोचिनी एकादशी व्रत की पूजा करने के लिए भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की फोटो या मूर्ति को एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद उसे गंगाजल से पवित्र करें और पीले पुष्प, पीला चंदन और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें. भगवान विष्णु को भोग लगाते समय तुलसी के पत्ते जरूर चढ़ाएं और उसके बाद एकादशी व्रत की कथा कहें या सुनें. पूजा के अंत में भगवान लक्ष्मीनारायण की शुद्ध घी का दीपक जलाकर आरती करें और सभी को प्रसाद बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें. व्रत के दूसरे दिन शुभ मुहूर्त में पारण करके मनवांक्षित फल की कामना करें.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)