आज भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दरजे की बांट जोह रहा है ईस्ट का ऑक्सफोर्ड
पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की गुहार कई मौकों पर, कई मंचों पर लग चुकी है, लेकिन यह अबतक गुहार ही है. चाहे वो किसी भी पार्टी का नेता हो, कोई भी अहम व्यक्ति हो, उसने इस मांग पर हमेशा सौतेला व्यवहार किया है. पटना यूनिवर्सिटी पर पढ़ें सुजीत कुमार की ये खास रिपोर्ट.
पटना यूनिवर्सिटी, जिसकी पहचान इसकी पढ़ाई के साथ यहां से निकले राजनेताओं के कारण होती है. एक ऐसी यूनिवर्सिटी जिसका अतीत गौरवशाली रहा है. इतना गौरवशाली कि इस यूनिवर्सिटी को कभी ईस्ट का ऑस्कफोर्ड कहा जाता था. अपने सीने में करीब 107 साल के इतिहास को संजोए इस यूनिवर्सिटी की चर्चा तो बहुत होती है लेकिन विडंबना है कि करीब 54 साल पहले जिस यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी को दर्जा देने की मांग की गई थी, आज भी कहानी जस की तस है. 54 सालों से इस यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की मांग हो रही है लेकिन कुछ कारणों से मामला लगातार अटका हुआ है. उम्मीदें भी धूमिल हो रही हैं.
देश के कई नेताओं का नर्सरी रहा है पीयू
पटना यूनिवर्सिटी जिसे शॉर्ट में पीयू के नाम से भी जाना जाता. यह देश के कई ऐसे नेताओं की नर्सरी रही है, जो आज देश की राजनीति में अपना अलग मुकाम बनाये हुए हैं. बात चाहे राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव की हो या फिर वर्तमान में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की हो. यह सब पटना यूनिवर्सिटी के ही प्रोडक्ट हैं. इसके अलावा पटना के वर्तमान एमपी डॉक्टर रविशंकर प्रसाद, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन प्रसाद, प्रोफेसर रणवीर नंदन जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने अपनी राजनीति का ककहरा इसी यूनिवर्सिटी में सीखा है.
स्थापना से अबतक रहा चर्चा में
दरअसल अपनी स्थापना के वक्त से ही पटना यूनिवर्सिटी चर्चा में रही है. एक अक्तूबर 1917 को जब इसकी स्थापना हुई तब ब्रिटिश राज था. स्थापना के वक्त यह पहली यूनिवर्सिटी तो थी ही, आधुनिक भारत में यह संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की सातवीं सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी भी थी.
करीब 54 साल पुरानी है मांग
पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले यह कोई नई मांग नहीं है. 1970 के दशक में तब के छात्र नेता रामरतन सिन्हा ने पहली बार इस यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. कालांतर में यह मांग खत्म तो नहीं हुई लेकिन धूमिल जरूर हो गयी. इसकी एक वजह इस मुद्दे पर एकता की कमी भी बनी. हालांकि यह बात भी सत्य है कि पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दरजा मिले, यह मांग पिछले एक दशक से काफी चर्चा में है. पटना में या पटना के बाहर जब भी यूनिवर्सिटी की बात चली है. उसमें पटना यूनिवर्सिटी की बात भी शामिल रही है. पटना यूनिवर्सिटी के वीसी रासबिहारी प्रसाद सिंह, प्रोफेसर गिरीश कुमार चौधरी ने पहले भी यह कहा था कि पटना यूनिवर्सिटी ने एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को इस यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की मांग की थी, लेकिन नतीज सिफर रहा. केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को ही खारिज कर दिया.
कई लोगों के सामने लगी गुहार
पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की गुहार कई मौकों पर, कई मंचों पर लग चुकी है, लेकिन यह अबतक गुहार ही है. चाहे वो किसी भी पार्टी का नेता हो, कोई भी अहम व्यक्ति हो, उसने इस मांग पर हमेशा सौतेला व्यवहार किया है. सात साल पहले, 2017 में जब इस यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह का आयोजन हो रहा था तब आयोजन में हिस्सा लेने आये पीएम नरेंद्र मोदी के सामने सीएम नीतीश कुमार ने उनसे पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की गुजारिश की थी. पुन: इसके दो साल बाद 2019 में जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू पटना यूनिवर्सिटी पहुंचे थे, उस वक्त भी पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिलाए जाने की मांग हुई थी. पटना यूनिवर्सिटी का मामला चुनाव में भी मुद्दा बनता है. राजनेताओं के बीच बहस का विषय बनता है लेकिन यह अब चिरकालिक मुद्दा बनते जा रहा है.
मुद्दे पर नहीं है एकता
इस अहम मसले पर पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर सह पटना कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके प्रोफेसर रघुनंदन लाल शर्मा कहते हैं, दरअसल इस अहम यूनिवर्सिटी को अब तक सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं मिल पाने का सबसे अहम कारण इस मसले पर एकता का अभाव है. वह कहते हैं, छात्रों के भविष्य को लेकर इस मुद्द पर राज्य के राजनेता कभी भी एक मंच पर नहीं आये. जबकि दूसरे राज्यों में इससे अलग देखने को मिलता है. कई बार प्रपोजल दिये गये लेकिन वह राजनीति का हिस्सा बन कर रह गये. प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, नये यूनिवर्सिटी को बनाना आसान नहीं होता है. जगह, जमीन, आवागमन की सुविधा, छात्र और फैकल्टी की सुविधा, सब देखनी होती है. लखनऊ की अंबेडकर यूनिवर्सिटी का हवाला देते हुए प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, यह नयी यूनिवर्सिटी है लेकिन आज भी छात्र पुरानी यूनिवर्सिटी को ही प्राथमिकता देते हैं.
प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, बिहार के नेताओं ने इस मुद्दे पर गंभीर होकर कभी सोचा ही नहीं. सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं मिलने पर कई तरह के नुकसान हैं. रिसोर्स का नुकसान होता है. अगर रिसोर्स होता तो कई तरह के ग्रान्ट मिलते, बडी संख्या में रिसर्च किये जा सकते थे. प्रोफेसर शर्मा बताते हैं, इस यूनिवर्सिटी का ही वैभव था कि बीएचयू, कोलकाता जैसी यूनिवर्सिटी के फैकल्टी यहां अपनी सेवा देते थे. गुजरे दिनों में यहां हर क्षेत्र में बेहतर टीचर थे. सारे ग्रान्ट प्राप्त होते थे. लेकिन आज सब शून्य है. कई फंड हैं, जिनकी जानकारी लोगों को नहीं है. सर गणेशदत्त के नाम पर आज भी प्रयागराज में पैसे हैं लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रोफेसर आरएन शर्मा कहते हैं, पहले योग्यता पर वीसी बनते थे, आज पैरवी के दम पर बन रहे हैं. ऐसे में क्या ही कहा जा सकता है.
अपने पैर पर खुद कल्हाड़ी मारी
2019 से 2021 तक पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के अध्यक्ष रहे मनीष यादव कहते हैं, पटना यूनिवर्सिटी को अब तक सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा न मिलने का कारण हम सब भी हैं. वह कहते हैं, हमने अपने पैर पर खुद कुल्हाडी मारी है। मनीष बताते हैं, सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने के कई मापदंड होते हैं, जैसा केंद्र सरकार का कहना है. पटना यूनिवर्सिटी आज तक नैक के ग्रेडिंग में ए ग्रेड में नहीं रही है. सेंट्रल यूनिवर्सिटी का एक क्लॉज है कि वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की भी स्टडी होनी चाहिए. पहले पीएमसीएच और बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, जो बाद में एनआइटी पटना बन गया, पीयू का ही हिस्सा थे. आज सब अलग अलग हैं. बीएचयू, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में आज भी मेडिकल, इंजीनियरिंग की स्टडी होती है. जबकि पीयू में नहीं होती है. ऐसे में हम क्लॉज को कहां पूरा कर पा रहे हैं हालांकि केंद्र सरकार चाहे तो अपने नियमों के तहत दर्जा दे सकती है. कुल मिलाकर यह बात है कि इस मुद्दे पर सब राजनीति कर रहे हैं. राज्य में महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी मोतिहारी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार, गया, दोनों खुले लेकिन पीयू की सुध कोई नहीं ले रहा है. सब केवल राजनीति कर रहे हैं. चाहे वो केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार, इस मसले पर सब उदासीन हैं.
दर्जा मिलता तो ऊपर रहता स्टेटस
हालांकि इस अहम मुद्दे पर शिक्षाविद आशीष आदर्श कहते हैं, सेंट्रल यूनिवर्सिटी और स्टेट यूनिवर्सिटी में स्टडी को लेकर कोई फर्क नहीं रहता है. हां, सेंट्रल यूनिवर्सिटी की स्थापना संसद के द्वारा और स्टेट यूनिवर्सिटी की स्थापना राज्य के विधानसभा के द्वारा एक्ट से होती है. सारे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का अपना एक एक्ट होता है और स्टेट यूनिवर्सिटी संबंधित राज्यों के एक्ट को फॉलो करती हैं. सेंट्रल यूनिवर्सिटी की फंडिंग सेंट्रल गवर्मेंट करती है जब स्टेट यूनिवर्सिटी को राज्य सरकार फंडिंग करती है. दोनों के ही डिग्री में कोई फर्क नहीं होता है. देश की 56 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में यूजी और पीजी में नामांकन सीयूसीइटी यूजी और सीयूसीइटी पीजी के द्वारा होती है. स्टेट यूनिवर्सिटी के नामांकन का अपना प्रोसेस होता है. वह कहते हैं, दरअसल मुद्दा राजनीतिक हो तो अलग बात है लेकिन स्टडी में कोई फर्क नहीं होता है हां इतना जरूर है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी का स्टेटस, स्टेट यूनिवर्सिटी से थोड़ा ऊपर रहता है.