16 दिन की सुनवाई, 370 हटाने के विरोध में 14 वकीलों की दलीलें…आने वाला है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

16 दिन की सुनवाई, 370 हटाने के विरोध में 14 वकीलों की दलीलें…आने वाला है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

16 दिन तक देश की सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई कि आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी किये जाने वाला भारत सरकार का 2019 का फैसला कितना संविधान के मुताबिक था. दोनों पक्षों को मिलाकर कुल 26 वकीलों की दलीलें सुनने के बाद 5 सितंबर को ही अदालत ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब 11 दिसंबर को कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी.

11 दिसंबर तारीख होगी जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ये तय कर देगा कि आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने का भारत सरकार का फैसला सही था या नहीं? भारत सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. इस फैसले के बाद जम्मू कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा छिन गया. कोर्ट को यही तय करना है कि सरकार ने जो फैसला तब किया था वह संविधान सम्मत था भी या नहीं?

न सिर्फ धारा 370 को निष्प्रभावी किये जाने पर बल्कि सर्वोच्च अदालत इस पर भी फैसला सुनाने वाला है कि भारत सरकार आर्टिकल 370 के खात्मे के साथ जो जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून लेकर आई, वह भी उचित था या नहीं? इसी के तहत जम्मू कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया. जम्मू कश्मीर राज्य न रह कर अब केंद्रशासित प्रदेश हो गया जिसकी अपनी विधानसभा होगी. वहीं, लद्दाख को जम्मू कश्मीर से काट कर एक अलग केंद्रशासित प्रदेश कर दिया गया. हालांकि नए कानून में लद्दाख के लिए विधानसभा की व्यवस्था नहीं थी.

3 साल तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में 20 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल कर भारत सरकार के फैसले को चुनौती दी गई. लेकिन यह मामला करीब 3 साल तक ऊपरी अदालत में ठंडे बस्ते में पड़ा रहा. 2 अगस्त 2023 से इस पर नियमित सुनवाई शुरू होने से पहले आखिरी दफा इस पर हियरिंग 2020 के मार्च महीने में हुई थी. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस साल 2 अगस्त से इस पर मैराथन सुनवाई की. जिस बेंच ने सुनवाई की, उसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत शामिल थे. 16 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस मसले पर फैसला 5 सितंबर 2023 को सुरक्षित रख लिया. अब फैसले वाले दिन 11 दिसंबर का सभी को इंतजार है.

सरकार का पक्ष किसने रखा?

अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर. वेंकटरमनी, सॉलिसटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज, विक्रमजीत बैनर्जी और कनु अग्रवाल ने इस मामले में भारत सरकार का पक्ष रखा. साथ ही सीनियर वकील हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी, गुरू कृष्णकुमार के अलावा अर्चना पाठक दवे, वीके बीजू और चारू माथुर जैसे वकीलों ने भी सरकारी पक्ष का साथ दिया.

सरकार के फैसले के खिलाफ जो पेश हुए

याचिकाकर्ताओं की तरफ से जो पेश होने वाले लोग थे. उनमें सीनियर वकील कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रम्नयम, जफर शाह, राजीव धवन, दुष्यंत दवे, चंदेर उदय सिंह, दिनेश द्विवेदी, शेखर नाफाडे, नित्य रामकृष्णनन, गोपाल संकरनारायनन, मेनका गुरुस्वामी, प्रशांतो चंद्रसेन, संजय पारीख और वारीशा फरासत शामिल रहीं.

सरकार की ओर से क्या दलीलें कोर्ट में दी गईं?

पहला – सरकार का यह पक्ष था कि जम्मू कश्मीर को देश के दूसरे हिस्सों से पूरी तरह जोड़ने के लिए आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करना जरुरी था. सरकार ने तो कोर्ट में यहां तक कहा था कि भारत राज्य से जम्मू कश्मीर का पूरी तरह विलय बगैर अनुच्छेद 370 के निरस्त किये मुमकिन नहीं था.

दूसरा – सरकार का तर्क यह भी था कि धारा 370 को निष्प्रभावी किए जाने के बाद से पिछले साढ़े चार बरसों में घाटी में बहुत तरक्की हुई है. सरकार ने कहा था कि जम्मू कश्मीर को मिले विशेष राज्य की समाप्ति का बाद आतंकी गतिविधियों में करीब 45 प्रतिशत की कमी आई है. इसके अलावा घुसपैठ में 90 फीसदी तो पत्थरबाजी की घटनाओं में 87 फीसदी तक की गिरावट का भारत सरकार ने जिक्र किया था. वहीं सरकार के मुताबिक हताहत होने वाले सुरक्षा कर्मचारियों की संख्या में भी 66 प्रतिशत तक की कमी की बात कही गई थी.

तीसरा – सरकार ने यह भी कहा था कि एक बार जैसे ही घाटी में स्थितियां अनुकूल हों जाएंगी, जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा भी लौटा दिया जाएगा. साथ ही सरकार ने वहां चुनाव भी कराए जाने की बात कही थी लेकिन इसके लिए कोई नियत तारीख नहीं बताया था.

सरकार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की दलीलें क्या थीं?

पहला – याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संसद में हासिल भारी भरकम बहुमत का सरकार ने फायदा उठाया और संविधान के साथ खिलवाड़ किया गया. आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले का विरोध कर रहे वकीलों ने इसे फेडरलिज्म यानी संघवाद पर हमला बताया था.

दूसरा – कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि आर्टिकल 368 जिसके जरिये भारत सरकार को संविधान में संशोधन का अधिकार है, वह अनुच्छेद 370 पर लागू नहीं होता. लिहाजा उसको निरस्त करने का फैसला यह संसद नहीं ले सकती.

तीसरा – एक दिलचस्प तर्क सुप्रीम कोर्ट में पिटीशनर्स की ओर से यह भी दी गई कि साल 1957 में राज्य के संविधान को बनाए जाने के बाद जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा भंग हुई तब ही आर्टिकल 370 एक स्थायी कानून का रुप ले चुका था. ऐसे में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को भंग किये जाने के करीब 6 दशक बाद अनुच्छेद 370 को समाप्त नहीं किया जा सकता.

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