‘धर्म के हिसाब से जो किया सही’, छात्रों के दाढ़ी कटावाने के बाद मदरसे के फरमान पर एसटी हसन
सपा सांसद ने कहा, "मैं तो समझता हूं धर्म के हिसाब से जो किया वो सही किया. अगर उन्होंने माफीनामा दे दिया है और दाढ़ी रख रहे हैं और धार्मिक स्टडी कर रहे हैं तो उन्हें माफ कर देना चाहिए."
हमेशा अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले सपा सांसद डॉक्टर एसटी हसन इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं. सपा सांसद का यह बयान मदरसे के छात्रों को लेकर है. दारुल उलूम देवबंद मदरसा में 4 छात्रों द्वारा दाढ़ी कटवाने के बाद उनके निलंबन को एसटी हसन ने मदरसा और इस्लाम के अनुसार सही ठहराया है. सपा सांसद ने कहा कि क्या ये सही है कि अगर कोई बेटी बुरके में आ जाये तो उसे बाहर निकाल दिया जाए.
मुरादाबाद सांसद ने कहा, “दारुल उलूम एक धार्मिक संस्था है, उनका एक ड्रेस कोड है. बॉडी कोड है. जब धर्म के हिसाब सुन्नत के हिसाब से हमारे रसूल ने दाढ़ी रखी थी, जब उनकी ही दाढ़ी नहीं होगी तो वो क्या समझायेंगे की दाढ़ी रखनी चाहिए. मैं तो समझता हूं धर्म के हिसाब से जो किया वो सही किया. अगर उन्होंने माफीनामा दे दिया है और दाढ़ी रख रहे हैं और धार्मिक स्टडी कर रहे हैं तो उन्हें माफ कर देना चाहिए.”
धर्म के हिसाब से जो किया गया, वो सही: हसन
एसोसिएशन के द्वारा देवबंद उलेमा द्वारा मदरसे पर छात्रों की दाढ़ी कटवा कर मदरसे पहुंचने पर मदरसे के द्वारा की गई कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा गया है दारुल उलूम एक धार्मिक संस्थान है. उसका एक अपना ड्रेस कोड है. बॉडी कोड भी है. जब धर्म के हिसाब सुन्नत के हिसाब से हमारे रसूल की दाढ़ी रखी थी. जब उनकी भी दाढ़ी नहीं होगी तो वह क्या समझाएंगे की दाढ़ी रखनी चाहिए. मैं तो समझता हूं धर्म के हिसाब से जो किया गया है वह पूरी तरीके से सही है.
दाढ़ी रखना जरूरी: सुलेमान नईमी
वहीं, इसी पूरे प्रकरण को मोहम्मद सुलेमान नईमी (नायाब मदरसा जामिया नईमिया मुरादाबाद) ने मदरसे द्वारा 4 छात्रों के दाढ़ी कटवाए जाने के बाद किये गए निलंबन पर कहा कि इस्लाम का एक कानून ये भी है जो दीनी आलिम बनता है, जो इल्में कुरान हासिल करता है. उसे दाढ़ी रखना जरूरी है. तभी उसे इमामत हासिल होती है.
इस्लाम और हदीस का तो यही नियम है कि जो दीनी गुरु बनना चाहता है. वो दाढ़ी रखे. यहां भी यही तालीम दी जाती है, जो पढ़ने वाले हैं, वो दाढी न कटाएं और इस्लाम की हद में दाढ़ी रखें. छात्रों के माफीनामें पर मदरसे के नायाब ने कहा कि उनको समझाया जाता कि इस्लाम में क्या हुक्म है. उनको बिना समझाए एकदम निकाल देना तालीमी एतवार से सही नहीं है.