Alwar Lok Sabha seat: 11 बार जीत के बाद भी अलवर नहीं बन सका कांग्रेस का गढ़, हैट्रिक लगाने चली BJP

Alwar Lok Sabha seat: 11 बार जीत के बाद भी अलवर नहीं बन सका कांग्रेस का गढ़, हैट्रिक लगाने चली BJP

राजस्थान के अलवर ने 11 बार कांग्रेस के प्रत्याशियों को चुनकर संसद पहुंचाया है, बावजूद आज भी कांग्रेस यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि अलवर उसका गढ़ है. दरअसल इस शहर का मिजाज ही ऐसा है कि कभी किसी पार्टी या नेता को अपने सिर नहीं चढ़ाता, बल्कि जैसे ही कोई भाव दिखाता है, यह शहर उसे गद्दी से उतार भी देता है.

राजस्थान का अलवर शहर, इसकी भी अपनी अलग ही तासीर है. अरावली की वादियों में बसे इस शहर के नखरे ऐसे हैं कि 11 बार जीतने के बाद भी कांग्रेस इसे अपना गढ़ होने का दावा नहीं कर सकती. दरअसल इस शहर की फितरत ही नहीं है कि यह किसी पार्टी या नेता को सिर पर चढ़ाए. यहां एक सिलीसेढ़ नाम से झील है. बारिश के दिनों में इसमें चादर चलती है, जो झील में आए अतिरिक्त पानी को उठाकर बाहर फेंक देती है. ठीक इस प्रकार यहां की राजनीति में भी हर पांच साल पर चादर चलती है और हर चुनाव में जीतने वाली पार्टी या प्रत्याशी बदल जाते हैं.

इस बेहद खूबसूरत शहर में लोकसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ था. अब तक यहां हुए 18 लोकसभा चुनावों में 11 बार कांग्रेस को विजय मिली है. वहीं चार बार बीजेपी तो एक बार स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी भी जीते हैं. अब 19वें लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. बावजूद इसके, कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि अलवर उसका गढ़ है. इस सीट पर हुए पहले चुनाव में शोभाराम कुमावत चुने गए थे. उन्होंने 1957 के चुनाव में भी अपनी जीत कायम रखी, लेकिन 62 के चुनाव में यहां की जनता ने उन्हें नकार दिया.

91 में बीजेपी का खुला था खाता

इस चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी काशीराम गुप्ता सांसद चुने गए थे. फिर 67 में चुनाव हुआ तो कांग्रेस के भोलानाथ मास्टर चुने गए, वहीं 71 में कांग्रेस के ही हरिप्रसाद शर्मा सांसद बने. 77 के चुनाव में यहां से जनता पार्टी के रामजी लाल यादव तो 80 और 84 के चुनाव में कांग्रेस के राम सिंह यादव सांसद चुने गए थे. 89 के चुनाव में एक बार फिर अलवर की जनता ने जनता दल के प्रत्याशी रामजी लाल यादव को चुना. वहीं, बीजेपी के टिकट पर पहली बार युवरानी महेंद्र कुमारी 91 के चुनाव में खाता खोला.

बालकनाथ हैं इस समय सांसद

हालांकि अगले ही चुनाव में कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा ने यह सीट जीत कर वापस कांग्रेस की झोली में डाल दिया. 98 में यहां से कांग्रेस के घासीराम यादव सांसद बने. 99 में बीजेपी के जसवंत यादव तो 2004 में कांग्रेस के करन सिंह और 2009 में जितेंद्र सिंह चुने गए. फिर 2014 के मोदी लहर में महंत चांदनाथ बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के करन सिंह यादव सांसद चुन लिए गए. फिर 2019 का चुनाव में महंत बालकनाथ ने फिर से यहां बीजेपी का भगवा फहरा दिया.

इतिहास भूगोल

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब 150 किमी दक्षिण और जयपुर से 150 किमी उत्तर में बसा यह शहर महाभारत काल में काफी संवृद्ध था. उस समय इसका नाम मत्स्य नगर हुआ करता था. कहा जाता है कि यहीं पर पांडवों ने अपना अज्ञातवास काटा था. तीसरी शताब्दी में यहां प्रतिहार क्षत्रियों ने राज किया. उस समय राजा बाधराज द्वारा निर्मित राजगढ़ दुर्ग के खंडहर यहां आज भी मौजूद है. छठीं शदी में यहां भाटी क्षत्रियों का राज था. फिर यहां चौहान आए, लेकिन साल 1205 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से छीन कर अलवर निकुम्भ राजपूतों को सौंप दिया. उसके बाद राजा प्रताप सिंह ने 1775 में अलवर को अपनी रियासत की राजधानी बनाया. ब्रिटिश गैजेटियर की माने तो अलवर का विभाजन कई क्षेत्रों में था. अलवर बई क्षेत्र में शेखावत राजपूत राज करते थे. यह क्षेत्र आज के समय में थाना गाजी कहलाता है. इसी प्रकार नरुका और राजावत नरुखंड़ पर काबिज थे. यह क्षेत्र आज जिला मुख्यालय है. वहीं मेवात में मेव और जाट शासन करते थे. इनमें से राजा नाहर खां के वंसजों का अलवर पर काफी प्रभाव रहा है. अलवर किले का निर्माण मेव शासक हसन खां मेवाती ने कराया था. हसन खां ने राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मैदान में बाबर से युद्ध किया था.

पर्यटन

राजपूत और यादव बाहुल्य इस जिले में सरिस्का टाइगर सेंचुरी के अलावा तमाम किले और हवेलियां देशी विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं. इसके अलावा सिटी पैलेस, विजय मंदिर, बाला किला और फतहगंज का मकबरा, मूसी महारानी की छतरी और सिलीसेढ़ झील भी देखने के लिए पूरे साल पर्यटक आते हैं. सरिस्का में तो बाघों का कुनबा बढ़ने के बाद से अलवर का आकर्षण वैश्विक स्तर पर बढ़ा है.

कैसे पहुंचे

दिल्ली जयपुर रेल मार्ग पर स्थित अलवर से मथुरा लाइन भी कनेक्टेड है. इसी के साथ दिल्ली जयपुर समेत सभी प्रमुख शहरों के लिए यहां से बसें भी चलती हैं. हवाई मार्ग से आने के लिए यहां से नजदीकी एयरपोर्ट दिल्ली और जयपुर है.

सामाजिक तानाबाना

अलवर संसदीय सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 17.8 फीसदी है. इनकी संख्या लगभग 333,890 है. इसी प्रकार 5.9 फीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर हैं. इनकी संख्या करीब 110,671 हैं. वहीं 18. फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इस क्षेत्र में 76.8 फीसदी मतदाता गांवों में रहते हैं. वहीं करीब 23 फीसदी मतदाता शहरी हैं.