Balurghat Lok Sabha Seat: बालुरघाट में BJP अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की साख दाव पर, क्या TMC भेद पाएगी किला?

Balurghat Lok Sabha Seat: बालुरघाट में BJP अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की साख दाव पर, क्या TMC भेद पाएगी किला?

भारत-बांग्लादेश की सीमा पर स्थित बालुरघाट संसदीय सीट पर आरएसपी का लंबे समय तक कब्जा रहा. साल 2011 में जब टीएमसी की सरकार बनी, तो साल 2014 में तृणमूल कांग्रेस का कब्जा हो गया, लेकिन साल 2019 में बीजेपी ने इस सीट पर पहली बार जीत हासिल की. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार इस संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं.

बालुरघाट दक्षिण दिनाजपुर जिले का जिला मुख्यालय है. अत्रेयी नदी है, जो इस शहर से होकर बहती है. बालुरघाट भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित है. यहां से भारत-बांग्लादेश की सीमा काफी नजदीक है. इस कारण गाय तस्करी, सोना तस्करी से लेकर अवैध घुसबैठ की समस्या इस जिले में है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बालुरघाट ने अहम भूमिका निभाई थी. साल1942 में अंग्रेजों के खिलाफ अगस्त आंदोलन या भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बालुरघाट के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया था.

साल 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत पश्चिम दिनाजपुर जिले में बिहार के कुछ हिस्सों को इसमें जोड़ा गया. 1 अप्रैल, 1992 को जिले को फिर से उत्तर दिनाजपुर (उत्तर दिनाजपुर) और दक्षिण दिनाजपुर (दक्षिण दिनाजपुर) में विभाजित किया गया. बालुरघाट दक्षिण दिनाजपुर का मुख्यालय बन गया.

बालुरघाट का इतिहास ‘पाल’ और ‘सेन’ राजवंशों से मिलता है. पुरातात्विक खुदाई के दौरान कुछ ऐसी चीजें मिलीं जिनसे साफ पता चलता है कि यह स्थान अतीत में अच्छी तरह से बसा हुआ था और अपनी संस्कृति और शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था. बालुरघाट उल्लेख प्राचीन पांडुलिपियों और शिलालेखों में भी मिलता है, यह जिला ‘कोटिबारशा’ नाम से प्रसिद्ध था और इसकी राजधानी देवकोट में थी, जो गंगारामपुर टाउन के पास है. स्थानीय तौर पर यह स्थान बाणगढ़ के नाम से जाना जाता था. सम्राट अशोक के समय के शिलालेख बड़ी संख्या में जिले की तत्कालीन राजधानी देवकोट से मिले हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बालुरघाट संसदीय क्षेत्र पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर में स्थित है. यह संसदीय सीट कांग्रेस और रेवोल्यूशनरी सोस्लिस्ट पार्टी (आरएसपी) की गढ़ मानी जाती रही है. साल 1951 में इस सीट पर सबसे पहले कांग्रेस के सांसद सुशील रंजन चट्टोपाध्याय ने जीत हासिल की थी. साल 1977 में पहली बार इस सीट पर आरएसपी ने कब्जा जमाया और साल 2009 तक आरएसपी के कब्जे में रहा. साल 2014 में टीएमसी ने इस सीट पर जीत हासिल की, लेकिन साल 2019 में बीजेपी ने इस संसदीय क्षेत्र पर पहली बार जीत हासिल की और बंगाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार विजयी रहे.

सात विधानसभा में 4 पर टीएमसी का कब्जा

बालुरघाट संसदीय सीट के अधीर सात विधानसभा क्षेत्र हैं. इटाहार, तपन (एसटी), बालुरघाट, गंगारामपुर (एससी), कुशमंडी (एससी), हरिरामपुर, कुमारगंज बालुरघाट लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें चार विधानसभा सीटों पर टीएमसी का कब्जा है, जबकि तीन पर बीजेपी का कब्जा है. इटाहार में टीएमसी के मोसराफ हुसैन, कुशमंडी (एससी) से टीएमसी की रेखा रॉय, कुमारगंज तोराफ से टीएमसी के हुसैन मंडल, बालुरघाट से बीजेपी के अशोक लाहिड़ी, तपन (एसटी) से बीजेपी के बुधराय, गंगारामपुर (एससी) से बीजेपी के सत्येन्द्र नाथ रे और हरिरामपुर से टीएमसी के बिप्लब मित्रा विधायक हैं.

एसटी और एसी समुदाय का बाहुल्य

2011 की जनगणना के अनुमान के अनुसार, कुल 1979954 जनसंख्या में से 87.76% ग्रामीण और 12.24% शहरी आबादी है. कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का अनुपात क्रमशः 28.33 और 15.19 है. 2021 की मतदाता सूची के अनुसार, इस निर्वाचन क्षेत्र में 1506124 मतदाता और 2079 मतदान केंद्र हैं.

साल 2019 में पहली बार जीती बीजेपी

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुकांत मजूमदार ने टीएमसी की अर्पिता घोष को हराकर बालुरघाट लोकसभा क्षेत्र में 33,293 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. सुकांत मजूमदार को 5,39,317 वोट मिले. टीएमसी की अर्पिता घोष को 5,06,024 मतों के साथ 42.24 फीसदी वोट मिले. वहीं, आरएसपी के रनेन बर्मन को 72,990 मतों के साथ 6.09 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस के अब्दुस सादिक सरकार को 36,783 मतों के साथ 3.07 फीसदी मत मिले. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 83.69% मतदान हुआ था.

2019 के संसदीय चुनाव में मतदाता मतदान 83.69% था, जबकि 2014 के संसदीय चुनाव में यह 84.77% था. 2019 के संसदीय चुनाव में टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस को क्रमशः 42.24%, 45.02% और 3.07% वोट मिले, जबकि 2014 के संसदीय चुनाव में टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस को क्रमशः 38.53%, 20.98% और 7.59% वोट मिले.

बालुरघाट सीट का चुनावी इतिहास

बालुरघाट संसदीय सीट पर आरएसपी का गढ़ माना जाता था. साल 2011 में टीएमसी की सरकार बनने के पहले तक इस सीट पर लेफ्ट की घटक दल आरएसपी का कब्जा रहा था, लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इस संसदीय सीट पर पहली बार टीएमसी को जीत मिली. टीएमसी की उम्मीदवार अर्पिता घोष को 409,641 वोट के साथ 38.53 फीसदी मत मिले. उन्होंने आरएसपी बिमलेंदु सरकार को पराजित किया. बिमलेंदु सरकार 3,02,677 वोट के साथ 28.47 फीसदी मत मिले थे. बीजेपी के बिश्वप्रिया रॉयचौधरी को 2,23,014 वोट के साथ 20.98 फीसदी मत मिले. वहीं कांग्रेस के ओम प्रकाश मिश्रा को 80,715 वोट के साथ 7.59 फीसदी मत मिले, जबकि नोटा में 11,691 वोट मिले थे.

इसके पहले साल 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएसपी प्रशांत कुमार मजूमदार को 388,444 वोट के साथ 44.38 फीसदी मत मिले. टीएमसी के बिप्लब मित्रा को 383,339 वोट के साथ 43.79 फीसदी मत मिले. बीजेपी सुभाष चंद्र बर्मन को 59,741 वोट के साथ 6.82 फीसदी, बीएसपी के गोबिंदा हांसदा को 13,977 वोट के साथ 1.60 फीसदी मत मिले थे.