‘मंदिर टूट के मस्जिद…’, जिस किताब में था, वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से किसने गायब करवाई?

‘मंदिर टूट के मस्जिद…’, जिस किताब में था, वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से किसने गायब करवाई?

रायबरेली के अली मियां दारुल उलमू नदवतुल-उलेमा के प्राचार्य थे. मौलाना के अब्बा जान मौलाना हकीम अब्दुल हई भी नदवतुल-उलेमा के हाकिम रह चुके थे. उन्होंने एक किताब भी अरबी में लिखी थी, 'हिंदुस्तान इस्लामी अहमदे'. अली मियां ने इसका उर्दू अनुवाद किया था. इसी किताब में मौलाना ने हिंदुस्तान में जो सात मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गईं, उनका जिक्र किया था. जिसमें एक बाबरी मस्जिद भी थी.

90 के दौर में देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे. देश में व्याप्त तमाम चुनौतियों के बीच वो एक ऐसे विवाद को सुलझाने में उलझे थे जो सैकड़ों सालों से उलझा पड़ा था. रामजन्मभूमि विवादित ढांचा केस. विश्व हिंदू परिषद ने उनको चार महीने का अल्टीमेटम दे रखा था साथ ही बातचीत में विहिप कोर्ट का फैसला मानने की बात से इनकार कर चुकी थी. उसका कहना था ये धर्म और आस्था का मामला है, कोर्ट में नहीं सुलझेगा. इसी बहस के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल कृष्णकांत और बिहार के राज्यपाल यूनुस सलीम इस संकट को सुलझाने के लिए प्रकट होते हैं. उन दोनों ने प्रधानमंत्री से पूछा कि अगर आप इजाजत दें तो हम दोनों इस मामले को सुलझाने में प्रयास शुरू करें. आगे क्या प्रयास हुए और क्या वो सफल रहे? अयोध्या को लेकर ऐसे कई सवाल हैं. जिनके जवाब मिलते हैं अयोध्या आंदोलन से जुड़ी खास किताब में, जिसका नाम है ‘युद्ध में अयोध्या’. किताब के लेखक हैं टीवी9 नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा जी.

वापस किस्से पर लौटते हैं. किताब में लिखा है कि वी.पी. सिंह के मुताबिक उनके हां कहने पर दोनों लोग कांचीपुरम के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और मुस्लिम स्कॉलर अली मियां से मिले. हल निकल आने की आशा बनी. वे लोग काफी आगे बढ़ गए. कांचीपुरम के शंकराचार्य और अली मियां इस नतीजे पर पहुंचे थे कि हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों की एक समिति बना दी जाए. समिति की सिफारिश आने तक ‘यथास्थिति’ बनाए रखी जाए. इस समिति की सिफारिश को सरकार लागू करवाए. ‘अली मियां’ यानी मौलाना अबुल हसन अली नदवी इस्लामी परंपरा के अंतरराष्ट्रीय विद्वान थे. वे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष भी थे.

किताब गायब होने की कहानी हैरान कर देगी..

रायबरेली के तकिया गांव के रहने वाले अली मियां दारुल उलमू नदवतुल-उलेमा के प्राचार्य थे. मौलाना के अब्बा जान मौलाना हकीम अब्दुल हई भी नदवतुल-उलेमा के हाकिम रह चुके थे. उन्होंने एक किताब भी अरबी में लिखी थी, ‘हिंदुस्तान इस्लामी अहमदे’. अली मियां ने इसका उर्दू अनुवाद किया था. इसी किताब में मौलाना ने हिंदुस्तान में जो सात मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गईं, उनका जिक्र किया था. जिसमें एक बाबरी मस्जिद भी थी. इस किताब में ‘हिंदुस्तान की मस्जिदें’ अध्याय में बाबरी मस्जिद के बाबत कहा गया था, ‘इसकी तामीर बाबर ने अयोध्या में की. जिसे हिंदू रामचंद्र जी का जन्मस्थान कहते हैं. बिल्कुल उसी जगह बाबर ने मस्जिद बनवाई थी.

किताब के मुताबिक, इंडियन एक्सप्रेस के तब के संपादक अरुण शौरी को किसी ने उस वक्त इस किताब का संदर्भ दिया. उस समय इस बात पर विवाद हो रहा था कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर तोड़कर बनाई गई या बाबरी मस्जिद से पहले वहां कोई अन्य धार्मिक ढांचा था. अरुण शौरी पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अली मियां के पिता की किताब से सबूत तो ले आए, पर उन्हें किताब नहीं मिली. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में किताब थी, पर उन्हें दिखाई नहीं गई. टीवी9 नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा तब जनसत्ता के लखनऊ ब्यूरो में कार्यरत थे.

वो अपनी किताब में लिखते हैं कि अरुण शौरी ने मुझसे कहा, किसी तरह किताब प्राप्त करो. मैं अली मियां से मिला और उस अध्याय की फोटो कॉपी शौरी जी को भिजवाई. फिर क्या था, अरुण शौरी ने इस मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस में एक श्रृंखला लिख डाली कि अब क्या सबूत चाहिए? यह तो मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष के पिता का लिखा है. मगर यहां चौंकाने वाली बात यह थी कि अरुण शौरी का लेख छपते ही वह किताब दारुल उलूम-नदवतुल उलेमा और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सहित सभी इस्लामी संस्थानों के पुस्तकालयों से गायब हो गई.

अरुण शौरी ने इन किताबों के गायब होने पर भी कई खबरें लिखीं. बवाल आगे बढ़ता, पर तब तक इस विवाद का विमर्श ही बदल गया था. अब किसी को इस बात में रुचि नहीं थी कि वहां मस्जिद से पहले क्या था ? यहां तक की सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं. उसने भी इस सवाल पर अपनी राय देने से मना कर दिया. अब मुद्दा सिर्फ कारसेवा थी.