पाकिस्तान में मिले बुद्धा पेंडेंट की कहानी! माेहनजोदड़ो से बुद्ध का कैसा कनेक्शन?

पाकिस्तान में मिले बुद्धा पेंडेंट की कहानी! माेहनजोदड़ो से बुद्ध का कैसा कनेक्शन?

सवाल ये भी है कि भगवान बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 को हुआ था, जबकि मोहनजोदड़ो उनके समय से हजारों साल पहले बसा था, तो इस सभ्यता का भगवान बुद्ध से कैसा जुड़ाव रहा है.

मोहनजोदड़ो में भारी बारिश के बाद भगवान बुद्ध की एक क्षतिग्रस्त मूर्ति जैसी चीज मिली है. इसे ‘बुद्धा पेंडेंट’ कहा जा रहा है. अविभाजित हिन्दुस्तान का हिस्सा रहा मोहनजोदड़ो, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ता है. वहां मिला पेंडेंट कब का है, इस बारे में बहुत जानकारी नहीं मिल पाई है. इसके निर्माण काल के बारे में पता लगाने के लिए एक्सपर्ट्स की राय मांगी गई है. भगवान बुद्ध का यह पेंडेंट बीते तीन अगस्त को मोहनजोदड़ों के दक्षिणी दीक्षित इलाके से मिला था.

पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ संरक्षणकर्ता अली हैदर ने पुष्टि की है कि भारी बारिश के कारण यह अनोखी वस्तु सामने आई है. पाकिस्तानी मीडिया Dawnकी रिपोर्ट के अनुसार, पुरातात्विक महत्व वाली जगह के पास पड़ने वाले गांव धनाड के निवासी इरशाद अहमद को यह पेंडेंटनुमा चीज मिली थी. इरशाद एक टूरिस्ट गाइड हैं. उन्होंने कहा कि भारी बारिश के बाद उन्हें यह चीज मिली थी, जिसकी जानकारी उन्होंने पुरातात्विक स्थल के संरक्षक नवीद संगाह को दी.

बुद्ध पेंडेंट के रूप में हुई पहचान

पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के चीफ इंजीनियर रह चुके और वर्तमान में Endovement Fund Trust के प्रोजेक्ट डायरेक्टर मोहन लाल ने इस नायाब वस्तु की जांच करने के बाद प्राथमिक तौर पर इसकी पहचान बुद्ध पेंडेंट के रूप में की है. उन्होंने इसे दुर्लभ खोज बताया है. उनका कहना है कि यह पेंडेंट मोहनजोदड़ो के गुमनाम इतिहास को आगे बढ़ाने के काम आ सकती है. हालांकि इसके लिए आगे और ज्यादा स्टडी की जरूरत पड़ेगी.

भगवान बुद्ध से हजारों साल पुरानी सभ्यता है मोहनजोदड़ो!

मोहनजोदड़ो, पाकिस्तान के सिंध प्रात में कभी सिंधु नदी के किनारे बसा शहर था. इसे दुनिया की सबसे पुरानी नगरीय व्यवस्था माना जाता है. यह करीब 4000 साल पुराना शहर है, जिसकी खोज 1922 में भारतीय पुरातत्वविद् आरडी बनर्जी और उनकी टीम ने की थी. तब यह भारत का ही हिस्सा था. जबकि भगवान बुद्ध का जन्म इसके हजारों साल बाद 563 ईसा पूर्व बताया जाता है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोहनजोदड़ो का मतलब ‘मुर्दों का टीला’ होता है. यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख शहर रहा है, जिसे योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था. यहां उस वक्त जरूरत की सारी सुख-सुविधाएं मौजूद थीं. यहां बने घरों में पक्की ईंटों से बने शौचालय और स्नानागार भी थे. जल निकासी की व्यवस्था थी और सड़क के बीच से गुजरनेवाले नाले ईंटों से ढके हुए थे. 618 एकड़ में फैला यह सिंधु सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा संरक्षित केंद्र बताया जाता है.

सिंंधु घाटी की सभ्यता या बौद्ध सभ्यता?

अब सवाल ये भी है कि भगवान बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 को हुआ था, जबकि मोहनजोदड़ो उनके समय से हजारों साल पहले बसा था, तो इस सभ्यता का भगवान बुद्ध से कैसा जुड़ाव रहा है. वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने फेसबुक पर डॉन की खबर शेयर करते हुए लिखा है,

स्कूल की किताबों में आपने ये तो पढ़ा ही होगा कि मोहनजोदड़ो में बौद्ध स्तूप की खुदाई के दौरान ही सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष पहली बार मिले. पूरी दुनिया के प्राच्य इतिहासकारों में इसकी चर्चा है. यह मूर्ति निर्णायक रूप से साबित कर सकती है कि सिंधु घाटी सभ्यता, दरअसल बौद्ध सभ्यता है और तथागत गौतम बुद्ध, बुद्ध परंपरा के एक और बुद्ध थे.

सोशल मीडिया पर इसको लेकर एक बहस छिड़ गई है और इस बारे में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. हालांकि पुरातत्वविदों का कहना है कि इस पेंडेंट के अध्ययन के बाद ही विस्तार से कुछ कहा जा सकेगा.

एक्सपर्ट सुलझाएंगे गुत्थी

संस्कृति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह वस्तु गले में पहने जाने वाले किसी पेंडेंट की तरह लगती है. उनका कहना है कि इस स्थान पर पेंडेंट का मिलना दुर्लभ खोज हो सकता है. हालांकि उन्होंने कहा कि यह कांस्य से बनी है या किसी अन्य सामग्री से, इस बारे में तो एक्सपर्ट ही बता सकते हैं. एक्सपर्ट्स ही इसका ऐतिहासिक मूल्य बता पाएंगे.

मोहनजोदड़ो के संरक्षक नवीद संघ का कहना है कि हमने वस्तु के निर्माण और उम्र के बारे में जानने के लिए संस्कृति विभाग में काम करने वाले एक विशेषज्ञ से संपर्क किया है. विभाग के एक वरिष्ठ संरक्षणवादी अली हैदर गढ़ी ने कहा कि भारी बारिश के कारण यह छोटी मूर्ति सामने आई है. इसका विस्तार से अध्ययन किया जाएगा.

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