कैसे हुआ था देवघर के शिवगंगा तालाब का निर्माण… जहां स्नान करते हैं शिव भक्त
भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे थे तो रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं. इस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है. इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं .
झारखंड के देवघर में स्थित भगवान भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग बाबा बैजनाथ का लंका पति दशानन रावण के नाम से जुड़ाव है. उनके नाम के जुड़ाव से मिली प्रसिद्धि को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपनी सिर की बलि देकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे.
ऐसा करते-करते दशानन रावण भगवान के शिवलिंग पर 9 सिर काट कर चढ़ा देते हैं. जैसे ही दशानन दसवे सिर की बलि देने वाले होते हैं वैसे ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो जाते हैं. भगवान प्रसन्न होकर दशानन से वरदान मांगने को कहते हैं. इसके बाद वो वरदान के रूप में रावण भगवान शिव को लंका चलने को कहते हैं. उनके शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगते हैं. भगवान रावण को वरदान देते हुए कहते हैं कि ‘जिस भी स्थान पर शिवलिंग को तुम रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा.’
देवताओं ने रोकने की कोशिश की
भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे थे तो रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं. इस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है. इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं . जोर की लघु शंका लगने के कारण रावण धरती पर उतर जाते हैं और चरवाहे के रूप में खड़े भगवान विष्णु के हाथों में शिवलिंग देकर यह कहते हैं कि इसे उठाए रखना जब तक कि मैं लघु शंका करके वापस नहीं लौट जाता.
कैसे निकलीं शिवगंगा?
इधर मां गंगा के शरीर में प्रवेश होने के कारण लंबे समय तक रावण लघुशंका ही करते रहते हैं. इसी बीच चरवाहे के रूप में मौजूद बच्चा भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग का भार नहीं सह नहीं पाता और वह उसे वहीं जमीन पर रख देता है. लघुशंका करने के बाद जब रावण अपने हाथ धोने के लिए पानी खोजने लगता है तब उसे कहीं जल नहीं मिलता है. ऐसी स्थिति में वो अपने अंगूठे से धरती के एक भाग को दबाकर पानी निकाल देता है, जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है.