एक वोट से प्रधानी का चुनाव हारा और बन गया सबसे बड़ा गैंगस्टर… कहानी राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह की
राजस्थान का वो लड़का जो पढ़ना चाहता था. गांव का वो युवक जो एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए टीचर बनने के सपने देख रहा था. एक नौजवान जो सियासतदार बनते-बनते राजस्थान का सबसे बड़ा गैंगस्टर बन गया. उस गैंगस्टर आनंदपाल की कहानी, जिसने जीते जी पुलिस की नींद हराम कर दी और उसकी मौत ने प्रदेश की सरकार को हिला कर रख दिया.
कद 6 फीट 2 इंच, सिर पर काली टोपी, आंखों पर काला चश्मा, जिस्म पर लेदर जैकेट और बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूंछ रखने वाले इस शख्स का नाम था आनंदपाल. 31 मई 1974 को राजस्थान के अलवर जिले के गांव सांवराद (अब नागौर) में पैदा हुए आनंदपाल ने लॉ के बाद B.Ed किया था, लेकिन कानून का एक विद्यार्थी कानून का ही सबसे बड़ा दुश्मन बन गया. आनंदपाल ऐसे परिवार में पैदा हुआ, जिसका अपराध से कोई रिश्ता नहीं था. वह भी आम आदमी के जैसे ही सपने देखता था. उसमें भी देश की सेवा का जज्बा था, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वह मोस्ट वांटेड बन गया?
पांच भाई-बहन में आनंदपाल सबसे बड़ा था. आठवीं तक की पढ़ाई उसने अपने गांव सांवराद से की, 10वीं निमोद गांव से, 12वीं डीडवाना के बांगड़ स्कूल से की और उसी दौरान डीडवाना थाने में उसके खिलाफ मारपीट का पहला मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन इसके बाद 1998 तक डीडवाना और जसवंतगढ़ थाने में आनंदपाल के खिलाफ आठ मामले दर्ज हो चुके थे. समय ने आनंदपाल को सुधारने का एक मौका दिया और इन सभी मुकदमों का जल्द ही निस्तारण हो गया. 1998 में आनंदपाल ने रोहतक से लॉ ग्रेजुएट की डिग्री ली, लेकिन जैसे ही वह कॉलेज पास करके वास्तविक जीवन में आया, तभी से उसके जीवन का संघर्ष शुरू हुआ.
बिजनेस में फेल, अपराध में पास
आनंदपाल ने अपराध की दुनिया में कदम रखने से पहले कई काम करने की कोशिश की, जिसमें से एक 1997 में लाड़नूं में सीमेंट की एजेंसी शुरू करना था. उसने इसके लिए परिवार से 10 लाख रुपए लिए, लेकिन उधारी के चक्कर में सीमेंट एजेंसी बंद करनी पड़ी. सीमेंट एजेंसी बंद होने और 10 लाख का कर्ज होने के बाद आनंदपाल अपराध की दुनिया में वो कदम रखता है, जिसके बाद वो वापस लौटकर नहीं देखता. इसके बाद वह लाड़नूं में ही रहने वाले बाबू खान कायमखानी के संपर्क में आता है.
ये भी पढ़ें
बाबू खान आनंदपाल की कद-काठी से प्रभावित था और वह उसे अपने हवाला कारोबार में शामिल करता है. जयपुर से आनंदपाल 50 लाख रुपए तय जगह पहुंचाता है और धीरे-धीरे उसका विश्वास जीतता है. इसके बाद वह हवाला के करोड़ रुपए इधर-उधर करता है. 1999 में हवाला से कमाए रुपए से आनंदपाल शराब का ठेका लेता है. आनंदपाल फिर से अपना कारोबार जमाने की कोशिश करता है, लेकिन कुछ शराब व्यापार से जुड़े लोगों से मारपीट होने के बाद मामला दर्ज होता है और फिर ठेका बंद कर दिया जाता है. आनंदपाल वापस अपने गांव सांवराद लौट जाता है.
क्यों राजपूत समाज से आनंदपाल को मिला प्यार?
आनंदपाल की जिंदगी में सियासत और सनक साथ-साथ चलती है और यही सनक आनंदपाल जैसे विलन को समाज में हीरो बनाती है, जिसकी शुरुआत साल 2000 से होती है. उसने इस साल सांवराद ब्लॉक से पंचायत समिति मेंबर का निर्दलीय चुनाव लड़ा और 82 वोटों से जीता. फिर लाड़नूं पंचायत समिति से प्रधान का चुनाव लड़ा. हालांकि इस बार किस्मत ने आनंदपाल का साथ नहीं दिया और जगन्नाथ बुरड़क ने आनंदपाल को एक वोट से हरा दिया, लेकिन इस चुनाव के बाद जो हुआ उसने आनंदपाल को राजपूत समाज का संरक्षक बनाने की भूमिका के लिए स्थापित किया.
दरअसल, पंचायत समिति में स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव हुए और प्रधान जगन्नाथ चाहता था कि सभी उसके पक्ष के मेंबर बने, लेकिन एक राजपूत महिला मेंबर का पर्चा भरती है. आरोप है कि एक बीडीओ प्रधान के कहने पर उसका पर्चा खारिज कर देता है और फॉर्म को राजपूत महिला के चेहरे की तरफ उछाल देता है. यह खबर आनंदपाल तक पहुंचती है और वह बीडीओ से माफी मांगने को कहता है, लेकिन वह माफी मांगने से इनकार कर देता है.
आनंदपाल गुस्से में बीडीओ और प्रधान की पिटाई कर देता है. यह खबर सभी तक पहुंच जाती है. इसके बाद बीडीओ ने राजपूत महिला से माफी मांगी तो महिला ने भी केस दर्ज नहीं कराया, लेकिन प्रधान ने बीडीओ के साथ मिलकर आनंदपाल के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. यहां से आनंदपाल और प्रधान के बीच की जंग की शुरुआत होती है, जिसमें खेराज जाट की एंट्री होती है. वह प्रधान का दोस्त था और आनंदपाल के खिलाफ एक मामला दर्ज कराता है. इसके बाद आनंदपाल और खेराज के बीच दुश्मनी हो जाती है.
पहली बार हत्या की, फिर 3 साल राजस्थान से फरार रहा
खेराज जाट बुरड़क परिवार का खास था, लेकिन आनंदपाल ने उसको मारने की ठान ली. 2001 में आनंदपाल खेराज जाट पर चाकू से हमला करता है और उसके साथ उसके भाई मनजीत, साथी अनिल, सुरेंद्र और मनीष थे. यह आनंदपाल के हाथों पहला मर्डर था. हत्या के बाद 3 साल तक आनंदपाल फरार रहा. इस दौरान वह हरियाणा, झज्जर और रोहतक में रहा. यह वही समय था, जब आनंदपाल हरियाणा के बदमाशों के संपर्क में आया. वह 3 साल तक राजस्थान में नहीं था. फरारी के दौरान शेखावाटी में आनंदपाल की तूती बोलने लगी और उसके अपराधों की संख्या बढ़ती रही.
युवाओं में कैसे फेमस हुआ आनंदपाल?
साल 2003 के आनंदपाल युवाओं में तेजी से फेमस होने लगता है. हजारों युवा उसके फैन हो जाते हैं. साल 2003 में निमोद गांव का नानूराम जाट एक युवती को भागकर ले जाता है. यह युवती शादीशुदा और राजपूत समाज की थी. कहा जाता है कि नानूराम ने युवती को प्रेम जाल में फंसाया था. राजपूत समाज में इस घटना का जबरदस्त विरोध था. यह मामला सुर्खियों में चल ही रहा था कि रसीदपुरा गांव का भगवान सिंह नाम का एक युवक उस युवती के चरित्र को लेकर अभद्र टिप्पणी करता है, जिसके बाद नानूराम जाट भगवान सिंह के पिता की हत्या कर देता है. भगवान सिंह आनंदपाल सिंह से संपर्क करता है. समाज का हवाला देता है और नानूराम से बदला लेने की मांग करता है. बस यहीं से इस मामले में आनंदपाल की एंट्री होती है और वह नानूराम की तलाश में लग जाता है.
आनंदपाल को नानूराम का पता लगता है और वह उसे उठा लेता है. उसे भगवान सिंह के घर लाया जाता है और 2004 में आनंदपाल के हाथों यह दूसरी हत्या होती है. नानूराम की जिस तरीके से हत्या की गई, उसने आनंदपाल के क्रूर चेहरे को उजागर किया और वह राजस्थान में एक बड़ा गैंगस्टर बनकर उभरा. कहा जाता है कि आनंदपाल पहले नानूराम की बेहरमी से गर्दन काटता है और फिर लाश की छोटे-छोटे 72 टुकड़े करता है. उसके शरीर के टुकड़ों को एसिड में डालकर जला देता है, फिर उस एसिड को हाईवे की सड़क पर बहा देता है.
इस वारदात के बाद आनंदपाल के नाम से हर कोई कापने लगता है, लेकिन वह राजपूत समाज के युवाओं के लिए हीरो हो गया था. इस हत्या के बाद उस पर केस भी दर्ज हो गया, लेकिन आनंदपाल यहीं रुकने वाला नहीं था. बात यहीं खत्म नहीं होती. वर्ष 2004 में आनंदपाल के मित्र ने उसकी सहायता ली कि मेरा दुश्मन मुझको परेशान कर रहा है. ऐसे में आनंदपाल ने अपने दोस्त के दुश्मन का अपहरण किया और उसके भी हाथ-पांव तोड़ डाले, लेकिन इन सभी घटनाओं के बाद में आनंदपाल वर्ष 2004 में नागौर के कोतवाली में तत्कालीन थानाधिकारी विद्या प्रकाश के सामने आत्मसमर्पण कर देता है.
आनंदपाल के 3 सबसे करीबी दोस्त
आनंदपाल के बचपन से लेकर अपराध की दुनिया में कई दोस्त बने, लेकिन उसका सबसे करीबी श्रवण सिंह रहा. श्रवण सिंह से उसकी दोस्ती शराब के व्यापार में आने के बाद हुई. आनंदपाल का परिवार भी खुद को श्रवण का कर्जदार मानता है, क्योंकि आनंदपाल की फरारी के दौरान श्रवण ने उसके पिता की बेटे की तरह सेवा की.
अपराध की दुनिया में भी आनंदपाल के कुछ विश्वासपात्र दोस्त थे, जिसमें दो बेहद महत्वपूर्ण हैं और उनमें पहला नाम श्रीवल्लभ शर्मा का आता है. श्रीवल्लभ आनंदपाल का राइट हैंड था और जेल के अंदर हो या बाहर वह उसके साए की तरह रहा. श्रीवल्लभ ही आनंदपाल के लिए खाना बनाता था और अगर खाना कोई दूसरा बना था तो श्रीवल्लभ उसको पहले खाता, फिर एक घंटे तक इंतजार करता और उसके बाद ही खाना आनंदपाल को खिलाया जाता, क्योंकि जेल में दूसरी गैंग के लोग आनंदपाल को जहर दे सकते थे. आनंदपाल के करीबी दोस्तों में दूसरा नाम बलबीर बानूड़ा था. बलबीर ने आनंदपाल के लिए गोली खाई और अपनी जान दे दी.
जेल में हुई आनंदपाल को मारने की साजिश
आनंदपाल को सिर्फ 7 दिनों के लिए बीकानेर जेल में शिफ्ट किया गया और उन्हीं 7 दिनों में आनंदपाल पर हमला होता है. यहां पर उसके ऊपर गोलियां चलती हैं और उसके दोस्त बालवीर बानूड़ा की हत्या कर दी जाती है. 24 जुलाई 2014 को शाम को तकरीबन 5:55 पर तत्कालीन कलेक्टर के फोन की घंटी बजती है. सूचना मिलती है कि बीकानेर के सेंट्रल जेल में गैंगवार हो गया है. प्रशासन और पुलिस हरकत में आते हैं. इसी सेंट्रल जेल में आनंदपाल अपने दोस्तों के साथ तो वहीं उससे अदावत रखने वाली दूसरी गैंग राजू ठेहट के गुर्गे भी इसी जेल में थे.
आनंदपाल को राजू ठेहट जान से मारना चाहता था. 17 जुलाई 2014 को आनंदपाल को अजमेर जेल से बीकानेर जेल में शिफ्ट किया गया. आनंदपाल की बैरक में उसके साथ बालवीर बानूड़ा था तो राजू ठेहट गैंग के सदस्य जयप्रकाश और रामपाल भी इसी में थे. अचानक से जयप्रकाश देसी कट्टे से आनंदपाल पर फायर करता है, लेकिन उसके सामने बालवीर बानुड़ा आ जाता है और उसकी मौके पर ही मौत हो जाती है.
आनंदपाल का जिगरी दोस्त मारा जा चुका था और उसे भी छर्रे लगे थे. इसके बाद वह गुस्से से लाल हो गया और बिना किसी हथियार के अपने साथियों के साथ जयप्रकाश और रामपाल पर टूट पड़ा. उसने वहां पड़े पत्थरों को ही हथियार बनाया और दोनों के सिर पर तब तक ताबड़तोड़ हमला किया, जब तक दोनों ने दम नहीं तोड़ दिया. आनंदपाल एक बार फिर बच गया, लेकिन तीन लाशों के लहू से बीकानेर जेल लाल हो चुकी थी. आनंदपाल को अस्पताल में भर्ती कराया गया और वहां से फिर अजमेर जेल भेज दिया गया.
पुलिस की गिरफ्त से हुआ फरार
3 सितंबर 2015 के दिन आनंदपाल को अजमेर हाई सिक्योरिटी जेल से नागौर कोर्ट ले जाया जा रहा था. आनंदपाल के साथ सुभाष मूंड और श्रीवल्लभ भी पुलिस की बस में थे. बस के आगे और पीछे पुलिस की गाड़ियां चल रही थीं, लेकिन तभी डीडवाना रोड पर एक बिना नंबर ही पिकअप गाड़ी आती है. बदमाशों ने आनंदपाल वाली बस के ड्राइवर पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. आनंदपाल समझ चुका था कि अब फरार होने का वक्त आ गया है. आनंदपाल और उसके साथी पुलिस से दो एके-47 लूटते हैं और पुलिस की जीपों पर अंधाधुंध फायरिंग करते हुए पिकअप में बैठ फरार हो जाते हैं. इसके बाद वो कभी पुलिस के हाथ नहीं चढ़ा.
क्यों आनंदपाल को पकड़ नहीं पाई पुलिस?
आनंदपाल को पकड़ने में पुलिस के 8 से 9 करोड़ खर्च हो चुके थे. हर दबिश तकरीबन पौने तीन लाख रुपये खर्च होते थे. 2015 से 2017 के बीच आनंदपाल को पकड़ने के लिए करीब 300 दबिश दी जा चुकी थी. फरवरी 2016 को आनंदपाल जेएनवीयू जोधपुर के जसवंत हॉस्टल में दो महीने रुका. बाद में हॉस्टल के दो लड़के गिरफ्तार हुए थे. मार्च 2016 को आनंदपाल नागौर जसवंतगढ़ गुढ़ा भगवान दास में चकमा दे गया. इसी दिन गुढ़ा भगवान दास में मुठभेड़ हुई और एक जवान मारा गया.
जुलाई 2016 को जसवंतगढ़ में फिर आनंदपाल का पुलिस से सामना हुआ, लेकिन वह फायर कर भाग निकाला और थाना अधिकारी लादू सिंह घायल हुआ. अगस्त 2016 को जयपुर में आनंदपाल फिर पुलिस को चकमा देकर भाग गया. अगस्त 2016 बीकानेर के छज्जू में आनंदपाल ने 15 दिन बिताए. आनंदपाल पुलिस को नहीं मिला, लेकिन शरण देने वाले 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया. सितंबर 2016 को जोधपुर के शेखासर गांव में आनंपाल फॉर्म हाउस में 3 महीने रुका और जनवरी 2017 में आखिरी बार आनंदपाल की बीकानेर-जोधपुर बॉर्डर पर होने की सूचना मिली.
अरुण जेटली के भतीजे के अपहरण की सुपारी ली
इन फरारी के दौरान भी आनंदपाल लगातार अपराध फैलता रहा. यहां तक कि आनंदपाल ने बीजेपी नेता और मोदी सरकार में वित्त मंत्री रही अरुण जेटली के भतीजे के अपहरण की सुपारी ली. उसने पंजाब में एक गैंग के कहने पर 5 करोड़ में यह सुपारी ली, लेकिन वह अपहरण नहीं कर पाया. आनंदपाल को पकड़ने के लिए पुलिस जगह-जगह दबिश दे रही थी, लेकिन हर बार आनंदपाल पुलिस से चार कदम आगे रहा. पुलिस तय कर चुकी थी कि आनंदपाल को किसी भी सूरत में पकड़ना है.
पुलिस की तरफ से बताया गया कि आनंदपाल को पकड़ने के लिए एक टीम बनाई गई, जिसका जिम्मा दिनेश एम एन को दिया गया. कई दिनों के बाद सिपाही दुर्गा दत्त का फोन बजता है और वह इसकी सूचना दिनेश एम एन को देता है. इसके बाद दिनेश एम एन चूरू के तत्कालीन एसपी राहुल बारहट को फोन लगाते हैं और उनको मालासर पहुंचने का आदेश दिया जाता है. अब मौके पर चूरू के तत्कालीन एसपी राहुल बारहट, एसओजी के तत्कालीन एडिशनल एसपी करण शर्मा, सीओ विद्या प्रकाश, इंस्पेक्टर सूर्यवीर सिंह, इंस्पेक्टर मनोज गुप्ता, हरियाणा के आईपीएस नरेंद्र कुमार और ईआरटी कमांडो सोहन सिंह मौजूद थे.
24 जून 2017 को किया गया एनकाउंटर
सभी को पेड़ की ओट में एक लाइन में खड़ाकर एसपी राहुल बारहट और करण शर्मा ने आनंदपाल को पकड़ने के लिए ब्रीफ किया. ब्रीफिंग के बाद अब उस मकान की तकदीस कराने की तैयारी थी, जिसमें आनंदपाल छिपा हुआ था और इसको सिर्फ रूपेंद्र व देवेंद्र ही बता सकते थे, जो कि पुलिस की गाड़ी में सिरसा से लाग गए थे. उनके मुंह को कपड़े से बांधा जाता है, ताकि वह चीखकर आनंदपाल को पुलिस की सूचना न दें. अब उनको गाड़ी से उतारा जाता है. फिर आधा किलोमीटर पैदल चलने के बाद उपेंद्र पाल इशारा करता है. जिस मकान की तरफ वह इशारा करता है, उसी मकान में आनंदपाल छिपा था और इसी घर के भीतर आनंदपाल सिंह का साल 2017 की 24 जून को एनकाउंटर कर दिया गया.