अमर्त्य सेन और विश्व भारती विश्वविद्यालय के बीच जमीनी विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा मामला

अमर्त्य सेन और विश्व भारती विश्वविद्यालय के बीच जमीनी विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा मामला

दिसंबर 2020 में वीबीयू ने सेन को शांतिनिकेतन में अपने परिसर में एक अवैध कब्जेदार माना. इस मुद्दे पर सेन और विश्वविद्यालय के बीच पत्र व्यवहार हुआ. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस विवाद में हस्तक्षेप किया.

नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन विश्व भारती विश्वविद्यालय (वीबीयू) के साथ एक जमीन विवाद में फंस गए हैं. सेन पर उस भूमि पर कब्जा करने का आरोप लगाया गया है जिस पर संस्थान दावा करता है कि वह उसका है. विश्वविद्यालय का दावा है कि इसके संस्थापक रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा विश्वविद्यालय को यह जमीन बतौर उपहार दी गई थी, जबकि सेन का कहना है कि वह इसके मालिक हैं. इस विवाद की सुनवाई कलकत्ता उच्च न्यायालय में हो रही है.

दिसंबर 2020 में वीबीयू ने सेन को शांतिनिकेतन में अपने परिसर में एक अवैध कब्जेदार माना. इस मुद्दे पर सेन और विश्वविद्यालय के बीच पत्र व्यवहार हुआ. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस विवाद में हस्तक्षेप किया. नोबेल पुरस्कार विजेता को जमीन हड़पने के आरोपों से बचाने के लिए बनर्जी ने 30 जनवरी, 2023 को जमीन से जुड़े दस्तावेज सेन को सौंपे. उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को भी खारिज किया.

अमर्त्य सेन का अपमान बर्दाश्त नहीं

ममता बनर्जी ने कहा कि मैं यहां ये जमीन के रिकॉर्ड देने आई हूं क्योंकि मैं अमर्त्य सेन का ऐसा अपमान अब बर्दाश्त नहीं कर सकती. अब बहुत हो गया है. वे जो कह रहे हैं वह पूरी तरह से गलत है. सीएम ने 89 वर्षीय नोबेल पुरस्कार विजेता को जेड प्लस सुरक्षा देने का भी आदेश दिया. उन्होंने सेन से कहा कि अब वे आपसे प्रश्न नहीं कर सकते. यह साबित हो गया है कि यह आपकी जमीन है.

संपत्ति के कुछ हिस्सों को वापस करने की मांग

24 जनवरी को, विश्वविद्यालय ने अमर्त्य सेन को एक पत्र भेजकर संपत्ति के कुछ हिस्सों को वापस करने की मांग की. विश्वविद्यालय की ओर से 27 जनवरी को जारी दूसरे पत्र में भी यही मांग दोहराई गई. वीबीयू ने इन दो पत्रों में आरोप लगाया है कि ग्रीन जोन में 0.13 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है. बयान में दावा किया गया है कि सेन के पास 1.38 एकड़ जमीन है, जो उनके 1.25 एकड़ के कानूनी कब्जे से ज्यादा है. विश्वविद्यालय ने अतिरिक्त भूमि को सरेंडर करने का अनुरोध किया और उपस्थित वकील के साथ एक संयुक्त निरीक्षण कराने की बात कही.

कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों को 99 साल के पट्टे पर भूखंड

बता दें कि टैगोर के समय से विश्वविद्यालय परिसर में कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों को 99 साल के पट्टे पर भूखंड दिए गए थे. विश्व भारती ने भी एक बयान जारी कर कहा कि वह “तथ्यों को रिकॉर्ड पर” रख रहा है. वीबीयू द्वारा 29 जनवरी को प्रेस को जारी बयान में कहा गया है, “24-01-2023 और 27-01-2023 के हमारे पत्रों के माध्यम से प्रोफेसर सेन के साथ साझा की गई जानकारी और दस्तावेज यह स्पष्ट करते हैं कि स्वर्गीय आशुतोष सेन (अमर्त्य के पिता) को 1.38 एकड़ जमीन कभी पट्टे पर नहीं दी गई थी. स्वर्गीय आशुतोष सेन को केवल 1.25 एकड़ जमीन दी गई थी. 31-10-2005 के आवेदन के बाद (जो दिवंगत आशुतोष सेन की वसीयत और अन्य दस्तावेजों से साबित होता है), केवल 1.25 एकड़ भूमि का पट्टा उनके पक्ष में था.

सेन के पिता ने खरीदी थी जमीन

अमर्त्य सेन के नाना और प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान क्षितिमोहन सेन को 1908 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शांति निकेतन में आमंत्रित किया गया था और 1921 में टैगोर के साथ विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना में मदद करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. क्षितिमोहन सेन, विश्व भारती के दूसरे कुलपति थे जबकि अमर्त्य के पिता आशुतोष विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे.

1998 में नोबेल पुरस्कार और 1999 में भारत रत्न पाने वाले अमर्त्य सेन का दावा है कि शांतिनिकेतन में उनके मालिकाना हक वाली अधिकांश जमीन उनके पिता ने बाजार से खरीदी थी, जबकि कुछ अन्य भूखंड पट्टे पर लिए गए थे. उनके बयान में कहा गया है कि 2018 तक 1134 एकड़ भूमि में से 77 एकड़ पर अवैध रूप से विश्वविद्यालय का कब्जा था.

सेन ने यह भी दावा किया कि इस जमीन को उनके परिवार को 100 साल के लिए लीज पर दी गई थी. उन्होंने 2021 में विश्व-भारती के कुलपति प्रोफेसर बिद्युत चक्रवर्ती को एक कानूनी नोटिस भेजा था, जिसमें उन्हें “उन झूठे आरोप को वापस लेने के लिए कहा गया था जिसमें विश्व-भारती के स्वामित्व वाली भूमि का एक भूखंड मेरे द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है.”

इस मुद्दे पर राजनीति

दिसंबर 2020 में, जब वीबीयू ने अमर्त्य को अपने परिसर में अवैध कब्जा करने वाला बताया, तो ममता बनर्जी ने उनका समर्थन किया. हालांकि, अगस्त 2022 में टीएमसी के कुछ नेता सेन से उस समय नाराज हो गए थे जब उन्होंने राज्य सरकार के बंग विभूषण पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह विदेश में थे, फिर भी उन्होंने कुछ ही समय बाद सीपीएम के एक कार्यक्रम में मुजफ्फर अहमद मेमोरियल पुरस्कार स्वीकार कर लिया.

हालांकि, टीएमसी ने 2023 में फिर से नोबेल पुरस्कार विजेता का समर्थन किया और कई लोग मानते हैं कि इसके बाद ही सेन की समस्याएं शुरू हुईं. टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने 28 जनवरी को कहा, “विश्व भारती के कुलपति द्वारा दिया गया बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. इस कदम के पीछे मुख्य कारण यह है कि अमर्त्य सेन ने सीएम ममता बनर्जी की तारीफ की थी. बीजेपी नेता इसे स्वीकार नहीं कर सकते, इसलिए वे उन्हें निशाना बना रहे हैं.

वीबीयू को मिल सकता है यूनेस्को हेरिटेज साइट का दर्जा

1921 में नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित, विश्व-भारती को 1951 में संसद के एक अधिनियम द्वारा एक केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था. इस विश्वविद्यालय को जल्द ही यूनेस्को से ‘हेरिटेज साइट’ का दर्जा मिलेगा और दुनिया में यह गौरव हासिल करने वाला यह पहला संचालित विश्वविद्यालय होगा.

यूनेस्को की वेबसाइट से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वीबीयू को विरासत की मान्यता दिलाने का मुद्दा टैगोर की 150वीं जयंती वर्ष 2010 में उठा था. उस साल केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने दूसरी बार शांति निकेतन को हेरिटेज साइट घोषित कराने के लिए आवेदन किया था.

इनपुट-कविता पंत