‘आज भी सुनाई देती है वही खौफनाक आवाज! दिखाई देते हैं सिर्फ मांस के लोथड़े’

‘आज भी सुनाई देती है वही खौफनाक आवाज! दिखाई देते हैं सिर्फ मांस के लोथड़े’

दो दिन बाद रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल बीत जाएंगी. मगर वो धमाकों की गूंज आज भी वैसी ही है. आज भी इमरजेंसी अलार्म का सायरन, कई दिनों तक बिजली के बिना सोना, खाने की किल्लत जैसी मुसीबतें यूक्रेन के लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं.

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी. मशहूर शायर साहिर लुधियानवी के ज़ानिब से निकला ये शेर बार-बार जुबान पर आ रहा था. एक साल पहले 24 फरवरी 2022 को सर्द सुब्ह थी. रात को खिड़की बंद करना भूल गए तो ठंडी हवा का झोंका सीधे कमरे में दस्तक दे रहा था. खिड़की पर टंगा था एक हल्के रंग का परदा. जो बार-बार अंदर,बाहर कर रहा था. ठंड से कांपते बदन के बीच एक पल को ख्याल आया कि उठकर खिड़की बंद कर दें. वक्त था सुबह का साढ़े पांच. अचानक एक तेज आवाज आई. आवाज धमक कई किलोमीटर तक महसूस हुई. एक पल तो लगा कि भूकंप आ गया हो मगर ये कुछ सेकंड के लिए महसूस हुआ. अचानक मोबाइल में एक नोटिफिकेशन गिरा. नींद तो खुल ही गई थी तो तुरंत इसको ओपन किया. पता चला रूस ने यूक्रेन पर अटैक कर दिया.

दो दिन बाद रूस-यूक्रेन जंग के एक साल बीत जाएंगे. युद्ध विनाशकारी ही होते हैं इसके लिए कोई दूसरा शब्द या इसको जायज नहीं ठहराया जा सकता. एक युद्ध सिर्फ शवों का ढेर नहीं बल्कि एक सभ्यता को मिटा देता है. मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल का एक शेर है. कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती, मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूं रात भर नहीं आती. युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा. अब तो उम्मीद भी डोनबास की इमारतों की तरह मलबे का ढेर बन चुकी है. 24 फरवरी को सुबह 5:30 बजे मास्को समय (02:30 GMT) राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के डोनबास इलाके में विशेष सैन्य अभियान की घोषणा कर दी.

हर तरफ से हमले करने लगी रूसी सेना

रूसी सेना ने यूक्रेन के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर हवाई, जमीनी और समुद्री हमलों से घुसपैठ की. कई शहरों में स्थानीय समयानुसार सुबह 5:00 बजे (03:00 GMT) विस्फोटों की आवाज़ सुनी गई. हवाई हमले के सायरन की गूंज, गोलाबारी, महीनों तक अंधेरे में रहना और कई दिनों तक पैदल चलना, भूखे सोना, चीखने चिल्लाने की आवाज… ये सब यूक्रेन के लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया.

डोनबास की मारिया कहती हैं, ‘अभी ये ही क्या कम है कि 363 दिन बाद ही हम लोग जिंदा हैं. मौत और जिंदगी के बीच एक बारीक लाइन होती है वो लाइन हम हर रोज महसूस करते हैं. कई दिनों तक हम भूखे ही सोए. सड़ा हुआ खाना तक खाने के लिए मजबूर हुए. कभी-कभी ख्याल आता है कि कास एक मिसाइल हमारी तरफ आ जाती तो एक साथ पूरा परिवार खत्म हो जाए. कोई रोने के लिए जिंदा ही न बचे. अब बर्दाश्त नहीं हो रहा. फफक-फफक कर आंसू पोछते हुए वो रो पड़ीं.

याद आ रही हैं पुरानी यादें

यहां हमारा बिस्तर था. हमारी टीवी और अलमारी थी. मैंने खिड़कियां और दरवाजे बदल दिए. सब कुछ एकदम नया था, अंडरफ्लोर हीटिंग. हम अच्छी जिंदगी जी रहे थे. रूसियों को हमें बचाने की जरूरत नहीं थी. उन्होंने सब कुछ नष्ट कर दिया. ये विक्टर होरेन्का के शब्द हैं जब उन्होंने कीव में अपने घर को विनाश के बाद देखा. विनाश का सर्वे किया. एक घर जिसे बनाने में उन्होंने 20 साल लगाए. वो इमारत अब एक खोखली जगह है. खिड़कियों में कोई शीशा नहीं है, ईंटें जली हुई हैं और छत से धातु के तार लटक रहे हैं.

जिंदगी का हिस्सा हो गए हैं ये धमाके

पहला धमका थोड़ा असहज था. उसके बाद तो मानों जिंदगी का हिस्सा. अब तो ऐसा हो गया है कि अगर कुछ देर तक धमाके न हों तो लगता है कि जिंदगी में किसी चीज की कमी हो गई है. पिता अपने बेटों की लाश को दफना कर घर लौटा है. माताओं ने गोलियों की बरसात के बीच बच्चे को जन्म दिया है. मारियुपोल के दक्षिणपूर्वी बंदरगाह शहर ने युद्ध के दौरान सबसे तीव्र लड़ाई का सामना किया है. यहां पर अब रूस का कब्जा है. तारीख थी 9 मार्च 2022. एक प्रेग्नेंट महिला मारियुपोल के महिला अस्पताल जोकि खंडहर बन चुका है, वहां से एक स्ट्रेचर में निकली. वो खून से लथपथ थी. वो तस्वीर युद्ध की अंधाधुंध क्रूरता की प्रतीक बन गई.