पुणे के 5 प्रसिद्ध गणपति, जानिए क्या है इनका इतिहास और क्यों है महत्व
लोकमान्य तिलक की केसरी नाम की संस्था ने केसरीवाडा में गणेशोत्सव सन् 1894 में शुरू किया था. कसबा के गणेश उत्सव की शुरुआत इससे भी पहले साल 1893 में हुई थी.
महाराष्ट्र समेत देश भर में आज (31 अगस्त, बुधवार) गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाया जा रहा है. कोरोनाकाल के दो सालों में त्योहार प्रतिबंधों की वजह से फीके रहे. लेकिन इस बार गणेश भक्तों में जबर्दस्त उत्साह दिखाई दे रहा है. पुणे के दगडू शेठ हलवाई और मुंबई के लालबाग के राजा के गणपति के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन चलिए आज बात करते हैं पुणे के 5 प्रसिद्ध और ऐतिहासिक महत्व वाले गणपति के बारे में. इन पांच अहम सार्वजनिक गणपति उत्सवों की बात करें तो पहला नाम कसबा गणपति का आता है.
कसबा गणपति की पुणे के ग्रामदेवता के तौर पर पहचान है. इस गणपति की मूर्ति साढ़े तीन फुट की होती है. कसबा के सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत साल 1893 में हुई थी. कहा जाता है कि कसबा गणपति का मंदिर छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से ही अस्तित्व में था. कसबा गणपति के विसर्जन की काफी चर्चा होती है. इसमें बड़ी तादाद में गणेश भक्त शामिल होते हैं.
तांबडी जोगेश्वरी के गणपति की भी खूब है प्रसिद्धि
कसबा गणपति की तरह ही तांबडी जोगेश्वरी गणपति की भी खूब प्रसिद्धि है. पीतल के देवालय में इनकी स्थापना की जाती है. मन्नतों वाले गणपति और बाकी प्रसिद्ध गणपति की मूर्तियां स्थापित हो जाती हैं उनके विसर्जन की परंपरा नहीं है. लेकिन तांबडी जोगेश्वरी की मूर्ति हर साल विसर्जित की जाती है.
गुरुजी तालीम गणपति, इसलिए खास कही जाती यह मूर्ति
हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रतीक गुरुजी तालीम मंडल के गणपति की सबसे खास बात यह है कि मूर्ति लोकमान्य तिलक द्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरू किए जाने से पहले से ही शुरू है. इसकी शुरुआत एक कुश्ती के आखाड़े के सदस्यों ने करवाई थी. आज वह आखाड़ा अस्तित्व में नहीं है. यहां गणपति एक बेहद ही आकर्षक और बड़े चूहे पर विराजमान दिखाई देते हैं.
तुलसीबाग गणपति की भी है बहुत प्रसिद्धि
तुलसीबाग गणपति की मूर्ति अपनी ऊंचाई के लिए बेहद प्रसिद्ध है. दक्षित तुलसीवाले ने सन् 1900 में यहां गणेशोत्सव की शुरुआत की थी. तुलसीबाग गणपति की मूर्ति फाइबर की होती है.
केसरीवाडा के गणपति भी हैं काफी मशहूर, ख्याति इनकी दूर-दूर
पुणे के पांचवे मन्नतों वाले गणपति के तौर पर केसरीवाडा के गणपति की पहचान है. लोकमान्य तिलक की केसरी नाम की संस्था ने यह गणेशोत्सव सन् 1894 से शुरू किया था. विसर्जन के समय यहां गणपति को पालखी में बिठाकर उनका जुलूस निकाला जाता है. ऊपर के चारों गणपति की मूर्तियां विसर्जन के लिए लक्ष्मी सड़क से होकर जाती है, जबकि केसरी वाडा के गणपति को विसर्जन के लिए केलकर सड़क से ले जाया जाता है.