रीवा के बंगला पान पर समय की मार, कभी विदेशों में थी धमक आज अस्तित्व पर ही संकट
कुछ सालों पहले तक रीवा से पान के पत्तों की सप्लाई कई देशों में होती थी. इससे पान की खेती से जुड़े लोगों को अच्छा खासा मुनाफा होता था और वह आसानी से अपना घर परिवार चला लेते थे लेकिन गुटखा और पान मसाला के चलन में ये पान कंही खो से गए और इनकी पूछपरख कम हो गई. इसमें लगातार हो रहे घाटे के चलते पान की खेती करने वाले किसानों के पास अब रोजगार का भी संकट आ खड़ा हुआ है.
मध्य प्रदेश के रीवा जिले में कभी महसांव का बंगला पान काफी मशहूर था. इस पान के स्वाद से केवल देश के लोग ही परिचित नहीं थे, बल्कि पाकिस्तान, श्रीलंका सहित कई देशों के लोग तो इसके मुरीद थे. अब समय बदला तो जो लोग कभी शौक से पान चबाया करते थे, अब गुटखा खाते नजर आते हैं. इसका सीधा असर पान की खेती पर पड़ा. नौबत यहां तक आ गई है कि इस पान की खेती यहां के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है. हाल के कुछ सालों तक महसांव क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर लोग बंगला पान की खेती करते थे. लेकिन अब यहां खेती का दायरा सिमट गया है. वहीं जो चौरसिया समुदाय के लोग इस पान की खेती कर अपना जीवन यापन करते थे, उन्हें मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करना पड़ रहा है.
स्थानीय किसानों के मुताबिक कुछ सालों पहले तक रीवा से पान के पत्तों की सप्लाई कई देशों में होती थी. इससे पान की खेती से जुड़े लोगों को अच्छा खासा मुनाफा होता था और वह आसानी से अपना घर परिवार चला लेते थे लेकिन गुटखा और पान मसाला के चलन में ये पान कंही खो से गए और इनकी पूछपरख कम हो गई. इसमें लगातार हो रहे घाटे के चलते पान की खेती करने वाले किसानों के पास अब रोजगार का भी संकट आ खड़ा हुआ है जिससे इसकी खेती करने वाले किसान काफी दुखी हैं.
कभी देश के कोने-कोने में बिकता था पान
रीवा जिले के ग्राम मंहसांव सहित आसपास के गांव में एक दौर ऐसा था जब घर-घर में पान की खेती हुआ करती थी. यहां के चौरसिया समाज के किसानों का यह पुश्तैनी धंधा हुआ करता था जो उन्हें विरासत में मिलता था. यहां का बंगला और जैसवारी पान विश्वप्रसिद्ध पान हुआ करता था जो लोगों की पहली पसंद था और लोग बड़े शौक से इसे खाते थे. ये पान भारत के कोने-कोने में तो बिकता ही था उसके आलावा पाकिस्तान, श्रीलंका सहित और कई देशों में भी लोगों के मुंह का स्वाद बढ़ाता था. यहां के किसानों के पान की खेती से घर चलता था वही इन किसानों का मुख्य धंधा था.
बदलते दौर की मार
बदलते दौर के चलते पान की खेती करने वाले किसान गुटखा संस्कृति का शिकार हो गए और इनके पान की जगह गुटखा और पान मसाले ने ले ली, जिसके चलते पान की खेती करने वाले किसान अब इससे किनारा करने लगे हैं. यहां का बंगला पान जो कभी देश-विदेश में यहां की पहचान हुआ करता था वो खुद अब अपनी पहचान खोता जा रहा है. पान की खेती करने वाले किसानों के पास अब दूसरा कोई रोजगार नहीं है जिससे किसी तरह से मेहनत मजदूरी और दूसरा काम कर ये किसान अपना परिवार चला रहे हैं.
किसानों का घर चलाना हुआ मुश्किल
कुछ किसान पान की खेती को बचाए रखने के लिए इसमें लगातार आ रहे घाटे के बावजूद अभी भी इसकी खेती कर रहे हैं. एक समय था, जब पान की खेती करने वाले किसानों को पान की खेती से काफी फायदा होता था. इसी से वो बच्चों का लालनपालन और पढाई-लिखाई सहित पूरा घर चलाते थे लेकिन अब ये हालात है की इससे बच्चों की पढाई तो दूर किसी तरह से उनका घर चल जाए यही काफी है.
बारात की शोभा बढ़ाते थे पान
पान एक ऐसी चीज है जो भगवान के पूजा सामग्री में भी काम आता है साथ ही इसका उपयोग शादी बारात में भी किया जाता है. शादी बारात में इसे खिलाना एक व्यवहार माना जाता है लेकिन अब समय का तकाजा है की शादी बारात में भी पान का उपयोग बहुत कम हो गया. अगर पान की खेती का यही हाल रहा तो वो समय दूर नहीं जब यहां का बंगला पान जो कभी देश-विदेश में एक पहचान हुआ करता था वो खुद अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए मोहताज हो जायेगा. इन किसानों को अभी भी इस बात की उम्मीद है की शायद सरकार इस ओर ध्यान दे और पान की खेती को बढ़ावा दे जिससे यहां का बंगला पान एक बार फिर देश-विदेश में अपनी पहचान वापस पा सके.