आजादी के 14 साल बाद फिर से हुआ था बंटवारा… ‘हुसैनीवाला’ के लिए भारत ने पाकिस्तान को दिए थे 12 गांव

आजादी के 14 साल बाद फिर से हुआ था बंटवारा… ‘हुसैनीवाला’ के लिए भारत ने पाकिस्तान को दिए थे 12 गांव

15 अगस्त 1947 की सुबह सूरज की पहली किरण आजादी का नया सवेरा लेकर आई. गुलामी की जंजीरों से आजाद हुए पूरे मुल्क में खुशियों का सैलाब आया हुआ था. लेकिन इसके साथ एक दर्द भी था. वो दर्द था देश के बंटवारे का. देश आजाद तो हुआ लेकिन उसके विभाजन ने आजादी के जश्न को फीका कर दिया.

देश की आजादी के साथ अंग्रेज मुल्क छोड़कर तो चले गए लेकिन इसे दो हिस्सों में बांटकर जिंदगी भर का जख्म दे गए. कभी न भूलने वाले भारत विभाजन की रेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की थी. 18 जुलाई 1947 को इस बंटवारे को अंतिम रूप दिया गया. 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और ठीक एक दिन बाद 15 अगस्त को भारत आजाद हो गया. और इस तरह रैडक्लिफ ने ‘सोने की चिड़िया’ के टुकड़े कर भारतीय विरासत को छिन्न-भिन्न कर दिया.

बंटवारे के बाद एक ही देश के दो बॉर्डर बने और सीमाओं के दोनों ओर अपने पराये हो गए. सरहद के एक तरफ वही पुराना भारत जो सदियों से बाहें फैलाए अतिथि देवो भव कहता आया और दूसरी तरफ नया नवेला पाकिस्तान. बंटवारा यहीं नहीं थमा, 1947 के ठीक 14 साल बाद भारत-पाकिस्तान के बीच एक ओर बंटवारा हुआ. लेकिन इस बंटवारे को रैडक्लिफ ने नहीं बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया. इसकी वजह बना एक गांव, जो मुस्लिम सूफी संत के नाम से था और पाकिस्तान के हिस्से में. यह गांव भारत लिए बड़ा अजीज था. क्योंकि यहां मौजूद थी देश के अमर वीर शहीदों की यादें.

‘हुसैनीवाला’ के लिए पाकिस्तान को दिए 12 गांव

पंडित नेहरु ने जिस गांव को पाकिस्तान से दोबारा बंटवारा कर वापस लिया उसका नाम है ‘हुसैनीवाला’. इस एक गांव को लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान को 12 गांव दिए गए थे. चलिए पहले इस गांव की भौगोलिक स्थिति जान लीजिए फिर इसके इतिहास पर भी नजर डालेंगे. बंटवारे के बाद हुसैनीवाला गांव पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का हिस्सा था. वर्तमान में यह गांव भारत के पंजाब राज्य के फिरोजपुर जिले का हिस्सा है. यह गांव पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सीमा को साझा करता है. सतलुज नदी के किनारे मौजूद हुसैनीवाला गांव के ठीक सामने पाकिस्तान के कसूर जिले का गांव गंदा सिंह वाला है. कभी यह गांव पाकिस्तान और भारत के बीच मुख्य सीमा क्रॉसिंग के रूप में काम करता था.

हुसैनीवाला में मौजूद हैं भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की समाधि

हुसैनीवाला गांव गवाह है आजादी के नायकों की शहादत और अंग्रेजों की क्रूरता का. यहां देश पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले आजादी के नायक भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की समाधि हैं. दरअसल, इन तीनों देश के अमर शहीदों ने मुल्क की आजादी के लिए जंग का बिगुल फूंक दिया था. वतन पर मर मिटने का जज्बा लिए ये तीनों वीर कम उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ जंग में उतर गए थे. 1928 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. ब्रिटिश सिपाहियों ने इस जुर्म में तीनों को गिरफ्तार कर लिया था. उस वक्त भारत के वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया और तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी.

हुसैनीवाला में किया था वीर शहीदों का अंतिम संस्कार

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी. लोगों में तीनों के प्रति बड़ा लगाव था ऐसे में अंग्रेजों को विद्रोह का डर सताने लगा. किसी को इसकी खबर न लगे इसके लिए ब्रिटिश सैनिक गुप्त तरीके से तीनों के शवों को हुसैनीवाला गांव में लाकर अंतिम संस्कार करने लगे. जब गांव के लोगों को इसकी भनक लगी तो वह श्मसान घाट पर इकट्ठा होने लगे. ग्रामीणों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सभी सैनिक वहां से शवों को अधजली हालत में छोड़कर फरार हो गए. बाद में ग्रामीणों ने शवों का अंतिम संस्कार किया और तीनों वीर सपूतों की समाधि बनाई.

बंटवारे में पाकिस्तान के हिस्से में पहुंचा

1947 के बंटवारे में यह गांव पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. किसी को इसके बारे में ख्याल नहीं आया. आजादी के कुछ सालों बाद शहीदों के परिजनों और लोगों ने भारत सरकार से इसे वापस लेने की मांग की. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को चिट्ठियां भी लिखीं. साल 1961 में पंडित नेहरु ने पाकिस्तान सरकार से हुसैनीवाला गांव वापस देने की मांग की और इसके बदले में फजिल्का के करीब बॉर्डर से सटे 12 गांव देने की पेशकश की. इस डील पर पाकिस्तान राजी हो गया और 12 गांव के बदले पाकिस्तान ने हुसैनीवाला गांव भारत को दे दिया.

जुड़ी है यादें, लगता है शहीदी मेला

1929 को असेंबली में बम फेंकने वाले क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त ने इसी गांव में अपने अंतिम संस्कार की इच्छा जताई थी. जब 1965 को उनका देहांत हुआ तो उनका अंतिम संस्कार इसी गांव में कराया गया. भगत सिंह की मां विद्यावती देवी का निधन 1975 में हुआ. उनका भी अंतिम संस्कार इसी गांव में किया गया. 1973 में पंजाब के तत्कालीन सीएम ज्ञानी जैल सिंह ने हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की याद में भव्य स्मारक बनवाया. हर साल 23 मार्च को यहां शहीदी मेले का लगाया जाता है.