गुरुद्वारे में बिताई रातें, दूध की थैली उठाकर पाला पेट, रुला देगी इस एथलीट की कहानी

गुरुद्वारे में बिताई रातें, दूध की थैली उठाकर पाला पेट, रुला देगी इस एथलीट की कहानी

दिल्ली के रहने वाले राहुल एक समय पर नेशनल्स में क्रॉस कंट्री के ब्रॉन्ज मेडलिस्ट रह चुके हैं. अकेले अपनी जिंदगी के संघर्षों का सामना कर रहे राहुल की कहानी मिसाल है

भारत में जब भी कोई खिलाड़ी बहुत ज्यादा कामयाबी हासिल करता है तब अचानक उसे पहचानने वाले उसकी तारीफ करने वालों की तादाद बढ़ जाती है. लोग मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाते हैं लेकिन अफसोस की बात ये है कि अकसर जब मुश्किल हालातों में संघर्षों के दिनों में इन खिलाड़ियों को मदद की जरूरत होती है तब उनका साथ देने के लिए कोई नहीं होता. दिल्ली के रहने वाले राहुल भी अपनी जिंदगी के उन मुश्किल हालातों का सामना कर रहे हैं जो किसी का भी आत्मविश्वास तोड़ दें.

राहुल के पास परिवार के नाम कोई नहीं है. वो खुद ही अपना पेट पालते हैं और खुद ही बाकी सब चीजें मैनेज करते हैं. राहुल ने साल 2017 के नेशनल्स में क्रॉस कंट्री इवेंट में हिस्सा लिया था और वहीं ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. दिल्ली की हाड गला देने वाली सर्दी में राहुल पूरी रात काम करते हैं ताकि दो वक्त की रोटी कमा सकें और अपना सपना जी सकें.

भाई ने घर से निकाला

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक राहुल उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले हैं. चार साल की में उनके पिता की मौत हो गई. वहीं साल 13 की उम्र में राहुल के बड़े भाई ने उन्हें घर से बाहर निकल दिया. वो छोटे भाई का खर्चा उठाने को तैयार नहीं थे. राहुल किसी तरह दिल्ली पहुंचे और फिर वहां गुरुद्वारे में रहने लगे. लगभग एक साल तक उन्होंने गुरुद्वारे में लंगर खाकर और वहीं सोकर अपना गुजारा किया. वो सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे. यहीं पर उनके दोस्त ने अपने पिता से कहकर राहुल की नौकरी दूध की फैक्ट्री में लगवाई.

दिल्ली की ठंड में पूरी रात काम करते हैं राहुल

14 साल की उम्र में राहुल दूध की फैक्ट्री में काम करने लगे. वो पूरी रात दूध के पैकेट गाड़ी में लोड करने का काम करते हैं. दिल्ली की ठंड में भी वो पूरी-पूरी रात फ्रिजर से पैकेट गाड़ी में लोड करते हैं. इसका उनके शरीर पर भी काफी गलत असर पड़ता है हालांकि इस खिलाड़ी के पास और कोई रास्ता भी नहीं है. यहां जरा सी लापरवाही से स्टील की क्रेट से चोटिल होने का खतरा भी बना रहता है. राहुल भी इसका शिकार हो चुके हैं.

राहुल को बेहतर नौकरी की तलाश

राहुल ने अपनी नौकरी से ही किराया का घर ले लिया. उनके मकान मालिक का बेटा दिल्ली पुलिस की परीक्षा की तैयारी कर रहा था. राहुल भी उनके ट्रेनिंग करना लगा. उनके दोस्त का तो सेलेक्शन नहीं हुआ लेकिन राहुल जरूर एथलीट बन गए. साल 2016 में उन्होंने अंडर 20 वर्ग में पहला मेडल अपने नाम किया. राहुल को स्पोर्ट्स कोटा में रामजस कॉलेज में मौका मिला लेकिन पैसों की कमी के कारण वो पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. राहुल को अब एक ऐसी नौकरी की तलाश है जिससे वो अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दे सके.