हाथ-पैर नहीं पर हिम्मत तो है! कोहनी से पेन पकड़ छात्रा ने दी 10 वीं की परीक्षा

हाथ-पैर नहीं पर हिम्मत तो है! कोहनी से पेन पकड़ छात्रा ने दी 10 वीं की परीक्षा

ममता की बीमारी के बारे में डॉक्टरों ने बताया कि यह बीमारी लाखों में किसी एक में पाई जाती है. इस बीमारी का नाम टेट्रा एमिलिया है. इस बीमारी की वजह से हाथ-पैर गलने लगते हैंं.

खरगोन: अगर आप भी अपनी जिंदगी बदलना चाहते हैं, तो आपको रोज के ढर्रे से अलग हटकर कुछ तो नया करना ही होगा. अपार मेहनत के साथ दृढ़ संकल्प दिखाना होगा. दसवीं बोर्ड की परीक्षा में कुछ ऐसा ही संकल्प दिखा रही है मध्य-प्रदेश की एक छात्रा. खरगोन के करही के ग्राम वणी की रहने वाली ममता को 15 साल पहले 6 महीने की आयु में एक ऐसी लाइलाज बीमारी हुई, जिसमें उसके हाथ और दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया. आज ममता घुटनों के बल चलती है और दोनों कोहनी से पेन पकड़ कर कॉपी पर लिखती है. जब ममता अपना दसवीं बोर्ड का पेपर देने के लिए पहुंची और दोनों कोहनियों में पेन पकड़कर लिखने लगी, तो वहां मौजूद छात्र और शिक्षक भी अवाक हो गए और छात्रा के हौसले की तारीफ की.

दरअसल, ग्राम वणी के रहने वाले कैलाश टटवारे जब 15 वर्ष पूर्व दादा बने और उनके यहां ममता बेटी का जन्म हुआ, तब उनके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन किसे पता था कि बहुत जल्द ही इस खुशी को किसी की नजर लग जाएगी, महज छह माह की ममता को एक ऐसी लाइलाज बीमारी हुई जिसमें उसके दोनों हाथ और दोनों पैर धीरे धीरे गल गए. परिवार ममता के हर जगह इलाज के लिए भटके, जिसने जहां बताया, वहां पर जाकर ममता का इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

ममता ने नहीं मानी हार

लेकिन ममता के माता-पिता ने हार नहीं मानी. हाथ-कोहनी तक और पैर घुटने तक गल जाने के बाद भी ममता के माता-पिता ने उसका हौसला बढ़ाया और उसे पढ़ने के लिए और लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद ममता का गांव के ही सरकारी स्कूल में एडमिशन करवाया. यहां पर शिक्षकों ने ममता का खूब हौसला बढ़ाया और प्रेरित भी किया. जहां ममता अपने हाथों की कोहनी से पेंसिल पकड़कर सुंदर हैंडराइटिंग से लिखना सीखी .

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डॉक्टर बनकर करना चाहती है सेवा

ममता के इस हौसला अफजाई को देखकर माता-पिता उसे खूब पढ़ाना तो चाहते हैं और ममता भी डॉक्टर या शिक्षक बनकर लोगों की सेवा करना चाहती है. लेकिन, ममता के माता-पिता अति गरीब है और मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. लेकिन कहते हैं कि पंख की आवश्यकता नहीं होती हौसले से ही उड़ान होती है ममता के इस दृढ़ विश्वास को देखकर करही के वसुधा विद्या विहार ने ममता के लिए सारी शिक्षा निशुल्क कर दी और कॉपी किताबों के साथ यूनिफॉर्म भी दी.

आज ममता को घर से स्कूल आने की व्यवस्था भी वसुधा विद्या विहार ही कर रहा है प्राचार्य मेरी जोजू बताते हैं कि 2012 में नवीन एडमिशन के लिए स्कूल के शिक्षक वणी गांव गए थे. तब ममता तथा उसके परिजनों से मिले थे उसका हौसला देख कर संस्था ने उसे निशुल्क शिक्षा देने की बात कही उसके बाद से ममता स्कूल में शिक्षा ले रही है और ममता स्कूल की हर गतिविधि में भी हिस्सा लेकर पुरस्कार प्राप्त करती है.

हौसले को देख ममता की लोगों ने की तारीफ

दसवीं बोर्ड का पहला हिंदी का पेपर देने के लिए जब ममता अपनी मां के साथ शासकीय कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल पहुंची, तब वहां पर उपस्थित केंद्र अध्यक्ष और शिक्षकों ने ममता के इस हौसले की खूब सराहना की. ममता ने भी बिना किसी मदद और सहारे के अपने कोहनी सहित पेन पकड़कर प्रश्न पत्र हल कर लिया यह देख वहां पर ममता के कुछ फोटो और वीडियो बना लिए अब यह फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं जिसे देख हर कोई ममता की तारीफ करते नहीं थक रहा है और ममता के हौसले और रदृढ निश्चय को देखकर आश्चर्य चकित हैं.

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वहीं, ममता की बीमारी के बारे में जब हमने डॉक्टरों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि यह बीमारी लाखों में किसी एक में पाई जाती है. इस बीमारी का नाम टेट्रा एमिलिया है, इसमें हाथ पैर गलने लगते हैंं. लेकिन एक निश्चित अवधि के बाद स्वता ही हाथ पैर करना रुक जाते हैं इसका इलाज संभव नहीं है बहुत से लोग इस अवस्था के बाद हताश और निराश हो जाते हैं, लेकिन ममता का हौसला और हिम्मत वाकई काबिले तारीफ है दूसरे भी ममता के हौसले और हिम्मत को देखकर प्रेरणा ले सकते हैं.