नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल, चीन समर्थक ओली के प्रचंड की सरकार से बाहर होने से भारत पर क्या पड़ेगा असर
नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी सीपीएन-यूएमएल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल "प्रचंड" के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है.
कहानी
राष्ट्रपति चुनाव से ऐन पहले नेपाल एक बड़े राजनीतिक संकट में फंस गया है. नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल “प्रचंड” के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. प्रचंड के राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राम चंद्र पौडेल को समर्थन देने का फैसला करने के बाद दो महीने पुराने गठबंधन में दरार दिखाई देने लगी है. राष्ट्रपति पद का चुनाव 9 मार्च को होना है.
भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा के भारत के पड़ोसी हिमालयी देश का दौरा करने और प्रचंड की नई दिल्ली यात्रा की संभावनाओं पर चर्चा करने के कुछ दिन बाद नेपाल पर यह संकट आया है.
स्क्रिप्ट
सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड पर 25 दिसंबर के समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. उनका दावा है कि जब नेपाल में सात पार्टियों की गठबंधन सरकार बनी थी तभी एक समझौता किया गया था. सीपीएन-यूएमएल के एक डिप्टी पीएम, वित्त मंत्री विष्णु पौडयाल और विदेश मंत्री विमला राय पौडयाल समेत कम से कम चार मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया है.
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मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्रचंड ने राष्ट्रपति पद के लिए सीपीएन-यूएमएल के उम्मीदवार का समर्थन करने का वादा किया था मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. ऐसे में सीपीएन-यूएमएल के पास गठबंधन सरकार से बाहर निकलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली ने यह भी दावा किया कि उनकी पार्टी ने पिछले साल गठबंधन सरकार बनने से पहले ही सीपीएन-यूएमएल पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को समर्थन देने के एवज में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचंडोका समर्थन देने की बात कही थी.
कृपया और समझाएं
नेपाल 2008 में अपनी 239 साल की राजशाही को समाप्त कर गणतंत्र बना. तब से वहां 11 सरकार बन चुकी है. सीपीएन-यूएमएल के उपाध्यक्ष विष्णु प्रसाद पौडेल ने कहा कि प्रचंड ने पार्टी के मंत्रियों पर पद छोड़ने का दबाव भी बनाया जिसके कारण उन्हें समर्थन वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने यह भी दावा किया कि प्रचंड ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में भाग लेने के लिए विदेश मंत्री पौडयाल को जेनेवा जाने से रोक दिया.
सीपीएन-यूएमएल के सोमवार, 27 फरवरी को सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद प्रचंड ने अपनी कतर की पहली विदेश यात्रा “महत्वपूर्ण राजनीतिक जरूरत बताते हुए स्थगित कर दी. प्रचंड की पार्टी 32 सीटों के साथ नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
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यह बड़ा क्यों है?
भारत के प्रति सीपीएन-यूएमएल की शत्रुता और उसके नेता ओली के चीन समर्थक रुख को देखते हुए भारत अपने पड़ोसी देश की समस्या को काफी उत्सुकता के साथ और शायद कुछ हद तक राहत के साथ देख रहा है. ओली की पार्टी के सरकार से बाहर निकलने के साथ अब भारत वेस्ट सेती हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर कुछ प्रगति हासिल करने की उम्मीद कर रहा है. 13 फरवरी से विदेश सचिव क्वात्रा की दो दिन की नेपाल यात्रा के दौरान उनकी प्रचंड से इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी.
भारत पहले प्रचंड को चीन के समर्थक के रूप में देखता था. मगर माना जाता है कि हाल के दिनों में उनके रुख में बड़ा बदलाव आया है. जल्द ही वह अपनी पहली भारत यात्रा की तैयारी भी कर रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक क्वात्रा के साथ मुलाकात के दौरान उनकी भारत यात्रा की तैयारी पर चर्चा हुई.
ट्विस्ट
वैसे नेपाल का राजनीतिक अनिश्चितता का लंबा इतिहास है, मगर प्रचंड की सरकार से सीपीएन-यूएमएल के बाहर निकलने से नेपाल में राजनीतिक समीकरण बिगड़ने की आशंका नहीं है. 275 सदस्यों वाले सदन में सीपीएन-यूएमएल के 79 सांसदों के समर्थन वापसी से भी सरकार को तत्काल कोई खतरा नहीं है. नेपाली कांग्रेस के 89 सांसदों का प्रचंड को समर्थन मिलने का अनुमान है. प्रचंड को अगले तीस दिन में विश्वास मत का सामना करना पड़ सकता है.