तुर्की भूकंप: अदाना छोड़कर जा रहे थे प्रोफेसर दंपति, तभी दिखी भारतीय सेना, फिर लिया ये फैसला…
फुरकान ने बताया कि वो और उनकी पत्नी इंटरप्रेटर बनकर भारतीय सेना की सहायता करेंगे, ये दोनों लोग अदाना के लोगों की भाषा भारतीय डॉक्टरों को बताएंगे और डॉक्टरों की बात स्थानीय लोगों को समझाएंगे.
तुर्की और सीरिया में बीती छह फरवरी को आए भूकंप में अबतक 24 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. तुर्की की मदद के लिए भारत ने ऑपरेशन दोस्त शुरू किया है.तुर्की में इंडियन आर्मी ने डिजास्टर रिलीफ टीम और फील्ड हॉस्पिटल सेटअप किया है. भारतीय सेना के जवान 24×7 काम करके लोगों की मदद कर रहे है. ऐसे में तुर्की से एक बेहद ही खूबसूरत तस्वीर सामने आए है. जहां भूकंप के जलजले से लोग तुर्की से जान बचाकर भाग रहे है.
वहीं एक भारतीय दंपत्ति अपने देश की फौज के साथ मिलकर लोगों की सेवा कर रहे है. पति का नाम फुरकान और पत्नी का नाम मल्लिका है. दोनों इस्तान्बुल यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. फुरकान प्रोफेसर हैं और मल्लिका असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. दोनों ही अदाना में भूकंप पीड़ितों की मदद करने के बाद इस्तान्बूल जा रहे थे. तभी इनकी नजर भारतीय सेना और उसकी मेडिकल टीम पर पड़ी. इन्होंने इस्तान्बुल का फैसला छोड़कर भारतीय सेना और डॉक्टरों की मदद करने का फैसला लिया.
‘हिंदुस्तानी फौज के साथ काम करना शुरु कर दिया है’
मीडिया से बातचीत में प्रोफेसर हिंदुस्तानी दंपत्ति ने कहा, “जब सात समुंदर पार हमारी फौज भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए अदाना पहुंच सकती है. तो फिर हम लोग तुर्की में कहीं और जाकर फिर चाहे वो इस्तानुबल ही क्यों न हो, क्या करेंगे? इसलिए हमने अब अदाना में ही हिंदुस्तानी फौज के साथ काम करना शुरु कर दिया है. तबाही तो यहां चारों ओर है. जिधर नजर डालिए उधर ही मदद की दरकार है.”
इंटरप्रेटर बनकर कपल कर रहा हैं मदद
फुरकान ने बताया कि वो और उनकी पत्नी इंटरप्रेटर बनकर भारतीय सेना की सहायता करेंगे, ये दोनों लोग अदाना के लोगों की भाषा भारतीय डॉक्टरों को बताएंगे और डॉक्टरों की बात स्थानीय लोगों को समझाएंगे. इससे काम से सेना और डॉक्टरों काफी मदद मिलेगी. फुरकान और मल्लिका ने बताया कि उन्होंने भारत से आई टीम के साथ काम करना शुरू भी कर दिया है और वे इससे काफी खुश हैं.
हिंदुस्तानी फौज तुर्की की सरजमीं पर लोगों की हरसंभव मदद कर रही है. बता दें बीते सोमवार को आए तुर्की और सीरिया के भूकंपों ने पूरी धरती को हिला डाला था. इस हादसे अब तक 30 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. मलबे से लोगों की तलाशी के दौरान लाशें मिलने का डरावना सिलसिला अभी भी है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. लाशों की यह गिनती कब रुकेगी? इस सवाल का जवाब कम से कम इस इंसानी दुनिया में मौजूद हम और आपमें से तो किसी को नहीं मालूम है.
हर कोई कर रहा है तारीफ
मुसीबत के इस बुरे दौर में अब अदाना में भारतीय फौज के साथ मिलकर मदद का काम करने वाला यह हिंदुस्तानी प्रोफेसर दंपत्ति, भारतीय फौज को वहां की स्थानीय भाषा में बातचीत करने में मदद कर रह हैं. क्योंकि अदाना सी जगह में मुश्किल यह भी है कि स्थानीय लोगों को स्थानीय भाषा (तुर्किश) के अलावा और कोई भाषा समझ नहीं आती है.
जबकि भारतीय फौज इस तुर्कीश भाषा को समझने में नाकाम है ऐसे में अगर यह कहा जाए कि देवदूत बनकर पहुंची भारतीय फौज और पीड़तों के मध्य किसी मजबूत ‘पुल’ सा बना हुआ है यह प्रोफेसर दंपत्ति. तो गलत नहीं होगा.