Waqf case: क्या किसी हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम को शामिल करेंगे? सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार से सवाल

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई जारी है. याचिकाकर्ता अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन मानते हैं. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून मुस्लिमों के धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों का हनन करता है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में शामिल होने की अनुमति देने के बारे में पूछा.
क्फ संशोधन अधिनियम-2025 की वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बहस में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद सहित कई याचिकाकर्ता कोर्ट पहुंचे. सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष हो रही है. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से बड़ा सवाल किया. कोर्ट ने सरकार से पूछा, क्या वो मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है? कोर्ट में चल रही सुनवाई की बड़ी बातें जानने से पहले आइए एक नजर डाल लेते हैं याचिकाओं के आधार पर.
क्या है याचिकाओं का आधार?
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है. अधिवक्ता कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने कोर्ट में तर्क रखा कि वक्फ इस्लाम का आवश्यक और अभिन्न हिस्सा है और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
सिब्बल ने कहा कि यह अधिनियम न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है बल्कि मुस्लिमों की निजी संपत्तियों पर सरकार का ‘टेकओवर’ है. उन्होंने कहा कि कानून की कई धाराएं विशेषकर धारा 3(आर), 3(ए)(2), 3(सी), 3(ई), 9, 14 और 36 असंवैधानिक हैं और इससे मुसलमानों को धार्मिक, सामाजिक और संपत्ति से जुड़े अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.
कोर्ट ने क्या कहा?
सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि सभी याचिकाकर्ताओं को सुनना संभव नहीं होगा, इसलिए चयनित वकील ही बहस करेंगे और कोई भी तर्क दोहराया नहीं जाएगा. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अनुच्छेद 26 की सेक्युलर प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि यह सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होता है. वहीं, जस्टिस विश्वनाथन ने स्पष्ट किया कि संपत्ति धर्मनिरपेक्ष हो सकती है, उसका प्रशासन ही धार्मिक हो सकता है. उन्होंने बार-बार तर्क दोहराने से बचने की सलाह दी.
सीजेआई ने कहा, हम ये नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और फैसला देने में सुप्रीम कोर्ट में कोई रोक है. जस्टिस खन्ना ने कहा कि हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं. पहला- क्या इस पर विचार करना चाहिए या इसे हाई कोर्ट को सौंपना चाहिए? दूसरा- संक्षेप में बताएं कि वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देने हैं. दूसरा ये कि हमें पहले मुद्दे पर फैसला लेने में कुछ हद तक मदद कर सकता है.
केंद्र सरकार का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ कानून का उद्देश्य केवल संपत्ति का नियमन है, न कि धार्मिक हस्तक्षेप. उन्होंने कहा कि सरकार ट्रस्टी के रूप में कार्य कर सकती है और कलेक्टर को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है ताकि संपत्ति विवादों का शीघ्र समाधान हो सके.
मेहता ने यह भी कहा कि 1995 से लेकर 2013 तक वक्फ बोर्ड के सदस्यों का नामांकन केंद्र सरकार ही करती रही है. उन्होंने बताया कि वक्फ न्यायाधिकरण एक न्यायिक निकाय है और न्यायिक समीक्षा का अधिकार बरकरार है.
कपिल सिब्बल के प्रमुख तर्क
- धारा 3(आर): वक्फ की परिभाषा में राज्य का हस्तक्षेप असंवैधानिक
- धारा 3(ए)(2): महिलाओं की संपत्ति के अधिकार में दखल
- धारा 3(सी): सरकारी संपत्ति को स्वतः वक्फ न मानना
- धारा 14: बोर्ड में नामांकन से सत्ता का केंद्रीकरण
- धारा 36: बिना पंजीकरण के भी संपत्ति का धार्मिक उपयोग संभव
- धारा 7(ए) और 61: न्यायिक प्रक्रियाओं में अस्पष्टता
क्या मांग है याचिकाकर्ताओं की?
याचिकाकर्ताओं की सुप्रीम कोर्ट से मांग है कि अंतिम फैसला आने तक वक्फ संशोधन कानून पर रोक लगाई जाए. वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि संशोधन पारदर्शिता और प्रशासनिक सुचारुता के लिए आवश्यक हैं.