भगवान शिवजी से जुड़ी कुछ मान्यताएं, शिवलिंग पर क्यों नहीं अर्पित की जाती है तुलसी?

भगवान शिवजी से जुड़ी कुछ मान्यताएं, शिवलिंग पर क्यों नहीं अर्पित की जाती है तुलसी?

धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार, हर माह की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है. इस कारण से हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है.

Mahashivratri 2023: हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा-आराधना और इनके मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है. हर वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व बड़े ही भक्तिभाव और उत्साह के साथ देशभर में मनाया जाता है. भगवान शिव की उपासना देवी-देवता, दानव और मनुष्य सभी करते हैं. इस बार महाशिवरात्रि का त्योहार 18 फरवरी 2023 को मनाया जाएगा. धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार, हर माह की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है. इस कारण से हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है.

मासिक शिवरात्रि पर शिव उपासना का विशेष महत्व होता है. लेकिन जब फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि आती है तो इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि पर शिव जी की उपासना करने का विशेष महत्व होता है. आइए जानते हैं कि आखिरकार महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं और शिवलिंग पर तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती हैं?

महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के त्योहार के पीछ दो तरह की कथाएं प्रचलित है. पहला इस तिथि पर ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और दूसरी इसी तिथि पर शिवजी शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे. शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि तिथि पर शिवलिंग की ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी और इस दिन भगवान विष्णु और ब्रह्रााजी ने शिवलिंग की पूजा-आराधना और मंत्रोचार करते हुए शिवलिंग का जलाभिषेक किया था. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा-आराधना, व्रत-उपवास, जप-तप और मंत्रोचार विधि-विधान के साथ के साथ करने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है.

शिवजी को तुलसी क्यों नहीं करते अर्पित?

हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा करते समय तुलसी के पत्तों का प्रयोग करना वर्जित माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी जिनका एक नाम वृंदा भी है, शंखचूड़ नाम के एक दैत्य की पत्नी थी. वृंदा एक पतिव्रता पत्नी थी. तुलसी के पतिव्रता के कारण शंखचूड़ को कोई भी देवी-देवता युद्ध में पराजित नहीं कर पाता है. जब भी शंखचूड़ युद्ध के मैदान में जाता है तब उसकी पत्नी तुलसी अपने पति की रक्षा और युद्ध में विजय की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या में लीन हो जाती थीं. पतिव्रता तुलसी के तप के कारण कोई भी देवता तुलसी के पति दैत्य शंखचूड़ को युद्ध के मैदान में पराजित नहीं कर पाता था. तब युद्ध में शंखचूड़ को पराजित करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु और भगवान शिव से प्रार्थना की. उस समय भगवान विष्णु ने तुलसी के पतिव्रत को खंडित कर दिया था और शिव जी ने शंखचूड़ का वध कर दिया. इस घटना के बाद से शिवजी की उपासना में कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं अर्पित किए जाते हैं.