अखिलेश ने बदला राजनीति का गियर, स्वामी के बयान के बाद डैमेज कंट्रोल की तैयारी!
अखिलेश यादव को लग गया है कि रामचरितमानस के विरोध से उनकी छवि एंटी हिंदू की बन सकती है.ऐसा हुआ तो ये समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है. पंकज झा की रिपोर्ट...
‘जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी’… रामचरितमानस की ये चौपाई विधान सभा में सुनाते हुए अखिलेश यादव ने अपनी राजनीति का गेयर बदल लिया है.इस चौपाई का मतलब ये है कि जिस राजा के राज्य में जनता दुखी रहती है,वह नर्क जाने का अधिकारी है. अखिलेश कहना चाह रहे हैं कि योगी सरकार में यूपी की जनता दुखी है.रामचरितमानस का विरोध करने वाले पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का समर्थन कर उन्होंने नई राजनीति के संकेत दिए थे.ऐसा लग रहा था कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए इसे बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी है.
स्वामी का विरोध करने वाले नेताओं को अखिलेश ने ख़ामोश कर दिया. ऐसे दो नेताओं को पार्टी से बाहर भी कर दिया गया. समाजवादी पार्टी में ये मैसेज चला गया कि स्वामी का विरोध करने वालों की खैर नहीं है.कार्यकर्ताओं और नेताओं ने ये मान लिया कि रामचरितमानस का विरोध करना पार्टी का स्टैंड है.विधानसभा में बजट पर चर्चा करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि रामचरितमानस से उनका कोई विरोध नहीं है.वह बोले कि भगवान तो सबके हैं. जिस चौपाई को लेकर उनका विरोध था, उस पर उन्होंने कहा कि सैकड़ों साल पहले जो लिखा गया,वो जो है सो है.अगले चुनाव के लिए अखिलेश फिर अपने पुराने फॉर्मूले पर आ गए हैं.वह जातिगत जनगणना की मांग उठा कर पिछड़ों और दलितों को साथ करना चाहते हैं .
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उन्हें लग गया है कि रामचरितमानस के विरोध से उनकी छवि एंटी हिंदू की बन सकती है.ऐसा हुआ तो ये समाजवादी पार्टी के लिए ख़तरे की घंटी है.पता नहीं रामचरितमानस का विरोध करने वाले कब राम नाम के विरोध में फंस जायें. बहुत बारीक अंतर है दोनों में. इसीलिए अखिलेश ने अब राजनीति की लाइन लेंथ बदल ली है.अगले साल की शुरुआत से अयोध्या में भव्य राम मंदिर आम जनता के लिए खुल जाएगा.लोग दर्शन पूजन शुरू कर देंगे.
पुराने एजेंडे पर लौटे अखिलेश यादव
ऐसे में बीजेपी के लिए राजनैतिक लिहाज़ से ये प्लस का मामला हो सकता है.इसकी काट क्या हो ? इसके लिए अब अखिलेश जातिगत जनगणना के पुराने एजेंडे पर आ गए है.उन्हें लगता है कि जो रास्ता उनके पिता मुलायम सिंह ने दिखाया था. उसी रास्ते पर समाजवादी पार्टी की साइकिल चल सकती है.
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ये बात 1993 के विधानसभा चुनाव की है.तब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था.बीजेपी के पास कल्याण सिंह जैसे बड़े पिछड़े नेता थे.बीजेपी के खिलाफ मुलायम और कांशीराम ने चुनावी गठबंधन कर लिया.चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन की सरकार बन गई.अखिलेश को लगता है कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर उन्हें पिछड़े और दलितों का साथ मिल सकता है.मतलब ये मुद्दा बीजेपी के हिंदुत्व के चक्रव्यूह को तोड़ सकता है. कुल मिला कर रणनीति कमंडल को मंडल की राजनीति से पछाड़ने की है.