आनंद मोहन सिंह: बाहुबली नेता जिसने लालू के खिलाफ की थी आवाज बुलंद, 3 जगहों से चुनाव लड़कर भी नहीं जीत पाए, CM के लिए भी आया था नाम

आनंद मोहन सिंह: बाहुबली नेता जिसने लालू के खिलाफ की थी आवाज बुलंद, 3 जगहों से चुनाव लड़कर भी नहीं जीत पाए, CM के लिए भी आया था नाम

आनंद मोहन सिंह लालू प्रसाद के खिलाफ आवाज बुलंद कर बिहार में अगड़ी जाति के नेता बने थे. बाद में लालू प्रसाद की सहायता से वह शिवहर के सांसद बने. अब उनके बेटे RJD विधायक हैं.

राजनीति को जानने समझने वाले कहते हैं कि बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का दबदबा रहा है. सूरजभान सिंह हो या अनंत सिंह, सुनील पांडे या पप्पू यादव. बिहार में बाहुबली नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. ऐसे ही एक बाहुबली नेता हैं आनंद मोहन सिंह. जिनकी कभी कोसी क्षेत्र में तूती बोलती थी. आनंद मोहन सिंह गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया हत्या मामले में जेल में बंद हैं. इस मामले में उन्होंने पूरी सजा काट ली है. लेकिन अबतक रिहा नहीं किए गए हैं. आनंद मोहन सिंह सजायाफ्ता कैदी बनने से पहले विधायक, दो बार सांसद रहे हैं. उनकी पत्नी भी लोकसभा चुनाव जीतीं है. अब उनका बेटा लालू प्रसाद की पार्टी से विधायक है.

आनंद मोहन अभी इसलिए चर्चा में हैं क्योंकि उन्हें 31 साल पुराने एक मामले में कोर्ट ने बरी कर दिया है. एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट ने उन्हें पीठासीन पदाधिकारी अपहरण मामले में ‘बाइज्जत बरी’ किया है.

जेल में बने साहित्यकार, लंबा आपराधिक इतिहास

कोर्ट से रिहा होने के बाद आनंद मोहन सिंह ने कहा कि कोई अंधेरा इतना घना नहीं होता, जो सूरज की रोशनी को रोक दे. किसी रात में इतनी औकात नहीं कि दिन के उजाले को आने से रोके. जेल जाकर पप्पू यादव की तरह साहित्यकार बने आनंद मोहन सिंह का लंबा आपराधिक इतिहास, रहा है. कभी बिहार के कोसी क्षेत्र में इनकी तूती बोलती थी. उस दौरान पप्पू यादव भी बाहुबल के सहारे बिहार की राजनीति में उभर रहे थे, पप्पू यादव और आनंद मोहन की अदावत तब खूब सामने आई थी.

कौन हैं आनंद मोहन सिंह ?

कोसी की धरती पर पैदा हुए आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं. उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की तरह ही 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के जरिए ही राजनीति से परिचय हुआ. प्रखर समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरु थे.

राजपूत नेता के रूप में मिली पहचान

समाजवाद का चोला ओढ़कर राजनीति में आए आनंदमोहन सिंह जल्द ही बिहार में अगड़ी जाति खासकर राजपूत जाति के नेता बन गए. 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब भाषण दे रहे थे तब उन्हें काला झंडा दिखाकर सुर्खियों में आए. 1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की. कहा जाता है कि यह रणवीर सेना की तरह ही अगड़ी जातियों के कथित उत्थान के लिए बनाया गया था. इसके बाद उनका नाम अपराधियों की लिस्ट में शामिल होता चला गया.

1990 में पहली बार बने विधायक

इस बीच राजनीति भी जारी रही. 1990 में जनता दल की टिकट से माहिषी विधानसभा सीट से विधायक बने. मीडिया रिपोर्ट में कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह विधायक के साथ ही एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के सरगना भी थे. जिसे उनकी ‘प्राइवेट आर्मी’ कहा जाता था. ये गिरोह उन लोगों पर हमला करता था, जो आरक्षण के समर्थक थे

आरक्षण विरोध में जनता दल से हुए अलग

1990 में सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश मंडल कमीशन ने की जिसे जनता दल ने अपना समर्थन दिया. इसके बाद अगड़ों की राजनीति करने वाले आनंद मोहन सिंह ने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बना ली. 1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता था.

तीन जगह से लड़े तीनों जगह से हारे

1995 मे आनंद मोहन लालू विरोध का सबसे बड़ा नाम बन गए थे. तब उनका नाम लालू यादव के सामने मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा था. 1995 के चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उनकी पार्टी ने तब समता पार्टी से अच्छा प्रदर्शन किया था. हालांकि तीन सीटों से खड़े हुए आनंद मोहन सिंह को एक भी जगह जीत नहीं मिली.

जेल में रहकर जीता चुनाव

इसके बाद 1996 में जेल में रहकर ही आम चुनाव में शिवहर से चुनाव जीतने में वह कामयाब हुए. फिर 1998 में भी उन्हें जीत मिली. तब लालू विरोधी आनंद मोहन सिंह को आरेजडी ने समर्थन दिया था. उनके बेटे चेतन आनंद भी आरजेडी की टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं.

भीड़ को उकसाने का लगा था आरोप

1994 में आनंद मोहन के करीबी कहे जाने वाले छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी. शुक्ला की अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी. इस दौरान वहां से गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया गुजर रहे थे. तब IAS अधिकारी के खिलाफ भीड़ भड़क गई और उनकी पीट-पीट कर हत्या कर दी. आनंद मोहन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा. इस मामले में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई जो बाद में उम्रकैद में बदल गई. आनंद मोहन आजाद भारत के पहले राजनेता थे जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी.