बुद्धदेव भट्टाचार्य हों या ज्योति बसु… कम्युनिस्ट नेता शरीर दान क्यों करते हैं?

बुद्धदेव भट्टाचार्य हों या ज्योति बसु… कम्युनिस्ट नेता शरीर दान क्यों करते हैं?

पश्चिम बंगाल सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा है कि गुरुवार को नेत्रदान के बाद शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री का शरीर दान किया जाएगा. गौरतलब है कि उनसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और सोमनाथ चटर्जी जैसे दिग्गज कम्युनिस्ट नेता भी शरीर दान कर चुके हैं.

दिग्गज सीपीएम लीडर और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का 80 साल की उम्र में निधन हो गया. बुद्धदेव अपने जीवन में जितनी सादगी और प्रखर वैचारिक पहचान के लिए जाने गए, निधन के पश्चात् भी उनका संकल्प समाज को दिशा देने वाली पीढ़ी को पाठ पढ़ा गया. साल 2011 में राज्य में टीएमसी की सरकार बनने के बाद से ही वो सक्रिय राजनीति से दूर हो गए थे. उन्होंने राजनीति के मैदान को नई पीढ़ी के लिए छोड़ दिया था. सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा है पूर्व मुख्यमंत्री का अंतिम संस्कार नहीं होगा क्योंकि उन्होंने शरीर दान करने का संकल्प लिया था. उनके संकल्प के मुताबिक उनके शरीर दान की प्रक्रिया पूरी होगी. इस सिलसिले में गुरुवार को उनके नेत्रदान के बाद शुक्रवार को उनका देह दान किया जाएगा.

बुद्धदेव भट्टाचार्य के शरीर दान शुक्रवार दोपहर को नीलरतन सरकारी अस्पताल में किया जाएगा. अस्पताल के चिकित्सा अनुसंधान केंद्र को उनका शरीर सौंपा जाएगा. फिलहाल उनका पार्थिक शरीर पाम एवेन्यु में रखा गया है. जहां उनके परिचित, राजनीति कर्मी और रिश्तेदार उनका अंतिम दर्शन कर रहे हैं. नेत्रदान के बाद शुक्रवार को दान के लिए उनका शरीर संरक्षित करके रखा जाएगा.

ज्योति बसु, सोमनाथ चटर्जी भी कर चुके हैं देहदान

बुद्धदेव भट्टाचार्य सीपीएम के पहले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्होंने मरणोपरांत शरीर दान करने की प्रतिज्ञा की थी. उनसे पहले सीपीएम के कई दिग्गज लीडर यह प्रतिज्ञा ले चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु, सोमनाथ चटर्जी, मानव मुखोपाध्याय, श्यामल चक्रवर्ती, समर मुखोपाध्याय, अनिल विश्वास, विनय चौधरी जैसे कई विख्यात सीपीएम नेता अपना शरीर दान कर चुके हैं. यहां तक कि बिमान बोस, विकासरंजन भट्टाचार्य, सूर्यकांत मिश्रा जैसे नेताओं ने भी शरीर दान की परंपरा को बनाए रखने की प्रतिज्ञा ली है.

कम्युनिस्ट नेता शरीर दान क्यों करते हैं?

कम्युनिस्ट नेताओं की इस शरीर दान की प्रथा के पीछे एक सामाजिक सोच रही है. यह सोच सामाजिक आंदोलन की देन है. यह परिपाटी गंदर्पण नामक गैर सरकारी संस्थान की मुहिम के साथ शुरू हुई. जिसकी स्थापना सन् 1977 में की गई थी. वैसे तो इस संस्था से कई दिग्गज जुड़े थे, लेकिन उन्हीं में एक थे- ब्रज रॉय. महज 21 साल की उम्र में ब्रज रॉय साल 1957 अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने. उन्होंने तीन दशक बाद मरणोपरांत देहदान आंदोलन चलाया था.

शरीर दान आंदोलन का मकसद चिकित्सा विज्ञान में अुसंधान और अध्ययन के लिए शरीर उपलब्ध कराना था. उन्होंने इस मकसद के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में मुहिम चलाई. चूंकि पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी का पहले से ही अच्छा खासा प्रभाव रहा है, लिहाजा उनके आंदोलन का जमीनी असर भी देखने को मिला. कई टॉप लीडर इस मुहिम से जुड़े और देह दान की प्रतिज्ञा ली.

जल्द ही आमलोगों को भी शरीर दान के प्रति जागरुक करने के लिए इस संस्था की पहल पर नाटकों का मंचन किया गया. इससे मुहिम को और गति मिली. ब्रज रॉय समेत संस्था के कार्यकर्ता और वाम नेता इस अभियान को आगे बढ़ाते गए. इसे एक सांस्कृतिक आंदोलन का रूप दिया गया. इससे दिग्गज वामपंथी नेता भी जुड़े और उन्होंने शरीर दान की प्रतिज्ञा ली.

वामपंथी अंतिम संस्कार की प्रथा नहीं मानते

कम्युनिस्ट नेताओं के शरीर दान करने की प्रथा के पीछे राजनीतिक विचारधारा की भी अहम भूमिका रही है. आमतौर पर किसी व्यक्ति के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार उनके धर्म के आधार पर किया जाता है. लेकिन कम्युनिस्ट धार्मिक आधार को ही खारिज करते हैं तो उनका अंतिम संस्कार धार्मिक रीति रिवाज के साथ क्यों? ऐसे में कई कम्युनिस्ट नेताओं ने अपने जीवन काल में ये प्रतिज्ञा ली कि अगर जीते जी धार्मिक विभिन्नता को स्वीकार नहीं किया तो मरणोपरांत क्यों करें? फलस्वरूप शरीर दान का विकल्प सामने आया.

कम्युनिस्ट मानते हैं कि एक व्यक्ति एक समाज में बड़ा होता है तो क्या मरने के बाद उसका शरीर समाज के काम नहीं आना चाहिए? इसी सोच के तहत कम्युनिस्ट नेताओं ने चिकित्सा अनुसंधान के लिए शरीर दान करने का फैसला किया था.

एक वैज्ञानिक की प्रतिज्ञा ने बढ़ाया हौसला

कम्युनिस्ट नेताओं के सामने वैज्ञानिक जेबीएस होल्डन का भी एक नजीर था. जिनका देहांत 1 दिसंबर 1964 को हुआ था. मृत्यु के बाद उनका शरीर दान किया गया था. इसके बाद ब्रज रॉय सहित गंदर्पण के पांच सदस्यों ने चिकित्सा अनुसंधान के लिए मरणोपरांत शरीर दान करने का संकल्प लिया. 5 नवंबर 1986 को जेबीएस होल्डन के 95वें जन्मदिन पर एक सामाजिक आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें 34 और लोगों ने मरणोपरांत अपने शरीर को दान करने का वचन दिया.

ब्रज राय के ही सामाजिक आंदोलन में अनेकानेक कम्युनिस्ट नेता जुड़े और अपना शरीर दान करने का संकल्प लिया. 2021 में ब्रज रॉय का निधन हो गया. लेकिन उनका आंदोलन अब भी जारी है. बुद्धदेव भट्टाचार्य के संपल्प ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया है.