UP में किसके साथ दलित? आंबेडकर जयंती पर BJP-सपा के बीच सियासी रस्साकशी तेज

राणा सांगा विवाद के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा प्रमुख अखिलेश यादव दोनों नेता दलितों में अपनी पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दांव खेल रहे हैं. बता दें कि साल 2014 के बाद से यूपी में बीजेपी की चुनावी सफलता में दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का समर्थन बेहद महत्वपूर्ण रहा है.
समाजवादी पार्टी (सपा) के एक दलित सांसद के राजपूत राजा राणा सांगा के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी से उपजे विवाद ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में दलितों के महत्व को सामने ला दिया है. अब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी सियासी लिहाज से बेहद अहम दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की जुगत में लगी हैं.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, हाल में हुए विवाद और इसे लेकर दोनों दलों के सियासी शह-मात के खेल के कारण मतदाताओं में 21 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले दलितों पर फोकस और बढ़ गया है.
आंबेडकर सम्मान अभियान की शुरुआत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को एक पखवाड़े तक चलने वाले आंबेडकर सम्मान अभियान की शुरुआत की, जिसमें बीजेपी कार्यकर्ताओं को सरकार की दलितों से जुड़ी योजनाओं का प्रचार करने का काम सौंपा गया है. इस बीच, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इटावा में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की एक प्रतिमा का अनावरण किया और उपस्थित लोगों को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कांशीराम को लोकसभा चुनाव जिताने में पार्टी की भूमिका की याद दिलाई. इस दावे की बीजेपी ने आलोचना की.
राणा सांगा पर सपा सांसद का बयान
सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने पिछले महीने राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहकर विवाद खड़ा कर दिया था, जिस पर क्षत्रिय समुदाय की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी. राजपूत गौरव की वकालत करने वाले जाति-आधारित समूह करणी सेना के कई कार्यकर्ताओं ने 26 मार्च को सांसद के आगरा स्थित आवास में तोड़फोड़ की थी.
करणी सेना के हमले का समर्थन
अखिलेश यादव ने बीजेपी पर रामजी लाल सुमन के आगरा स्थित आवास पर करणी सेना के हमले का समर्थन करने का आरोप लगाया है. सांसद ने कहा कि उन्हें निशाना बनाया जाना दरअसल पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन पर हमला है. पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं का एक वर्ग सपा की चुनावी रणनीति के लिहाल से बेहद महत्वपूर्ण है.
जनाधार को मजबूत करने का राजनीतिक दांव
इस हफ्ते आगरा की अपनी निर्धारित यात्रा से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा प्रमुख अखिलेश यादव दोनों ही दलितों में अपनी-अपनी पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के उद्देश्य से राजनीतिक दांव खेल रहे हैं. साल 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश में बीजेपी की चुनावी सफलता में दलितों और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) का समर्थन महत्वपूर्ण रहा है.
दलितों को गुमराह करके शोषण
सीएम योगी ने हाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं से दलितों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की अपील करते हुए कहा था, जब तक हम लोगों के सामने सही तथ्य पेश नहीं करते, तब तक अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए लोगों को गुमराह करने वाले लोग (विपक्षी दल) दलितों और वंचितों को गुमराह करके उनका शोषण करते रहेंगे और देश में अराजकता पैदा करेंगे.
संविधान को बदलने नहीं देंगे
इस बीच, सपा प्रमुख ने हाल में भारतीय संविधान के विषय पर आधारित एक कार्यक्रम में जोर देकर कहा कि हम (बीजेपी को) बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के संविधान को नहीं बदलने देंगे. अखिलेश यादव ने आंबेडकर को एक अद्वितीय विद्वान, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक बताते हुए उनकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर के उनके प्रति हुए भेदभाव के अनुभव संविधान के निर्माण में बेहद अहम सबक थे.
दद्दू प्रसाद ने जॉइन किया सपा
इसके अलावा, आगरा का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश में दलित मतदाताओं के महत्व को रेखांकित करते हुए लखनऊ में पदयात्रा का नेतृत्व किया. इस बीच, दलित समर्थन को मजबूत करने के समाजवादी पार्टी के प्रयासों के तहत बसपा के संस्थापक सदस्य दद्दू प्रसाद हाल ही में अखिलेश यादव की उपस्थिति में पार्टी में शामिल हुए.