Secrets of Ramayana: अपनी-अपनी आस्था, अपने-अपने राम, जानें किसने कैसे किया मर्यादा पुरुषोत्तम का गुणगान
धर्म पर अधर्म की जीत की कथा कहने वाली रामायण न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में लोकप्रिय है. वाल्मीकि से लेकर तुलसी रामायण तक और रामानंद सागर की रामायण से लेकर आदिपुरुष तक क्या कुछ अंतर देखने को मिलता है, जानें यहां.
हिंदू धर्म में भगवान राम की कथा या फिर कहें लीला को प्रस्तुत करना, कहना, सुनना और देखना पुण्य की प्राप्ति का सबसे बड़ा जरिया माना गया है. सनातन परंपरा में ‘राम’ सिर्फ शब्द भर नहीं, बल्कि सभी दु:खों को दूर करने वाले तारक मंत्र है जो पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद से लेकर अंतिम यात्रा तक व्यक्ति के साथ जुड़ा रहता है. इसी राम की लीला को कई संतों और महापुरुषों ने अपनी सोच और कामना के अनुसार प्रस्तुत किया है. आइए भगवान राम की कथा कहने वाली विभिन्न प्रकार की रामायण के बारे में विस्तार से जानते हैं.
जनमानस में रची-बसी है रामकथा
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री और बीएचयू के प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी जी के अनुसार हिंदी भाषा में सबसे प्रचलित रामायण गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस है. इसके अलावा बरवै रामायण, आनंद रामायण आदि हैं. तुलसीदास जी की रामायण जनमानस के हृदय में बसती है. यही कारण है कि जिसे अक्षर का भी ज्ञान नहीं है वो भी इसकी चौपाई का पाठ करता है क्योंकि मानस उसके संस्कारों में रची-बसी है. सनातन परंपरा में ये मनोरथ को पूरा करने का सबसे बड़ा माध्यम माना गया है. यही कारण है कि हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के घरों में इसका सुबह-शाम पाठ होता है. अवसर विशेष पर तो इसका पाठ करना अत्यधिक मंगलदायक माना गया है.
कंबन रामायण में रावण के लिए कही गई ये बात
तुलसी रामायण में जिस रावण को राम का के रूप में दिखाया गया है, उसी रावण को कंबन रामायण में भगवान राम की पूजा करते हुए बताया गया है. कंबन रामायण के अनुसार जब भगवान राम ने लंका विजय से पहले यज्ञ करने का संकल्प लिया तो उसे पूरा करने के लिए उन्होंने जामवंत से एक ऐसे पुरोहित का इंतजाम करने को कहा कि शैव और वैष्णव परंपरा दोनों का जानकार हो. इस पर जामवंंत ने कहा ये कार्य तो सिर्फ लंकापति रावण ही करवा सकता है. इसके बाद भगवान राम के कहने पर जामंवत रावण के पास जाकर यह प्रस्ताव रखते हैं और रावण यह जानते हुए कि यह यज्ञ लंका विजय के लिए करवाया जा रहा है, उसे स्वीकार करता है माता सीता को लंका से लेकर वहां जाता है और यज्ञ कार्य करवाकर उन्हें वापस ले आता है.
तुलसी और वाल्मीकि रामायण में अंतर
सनातन परंपरा के अनुसार वाल्मीकि रामायण को सबसे प्राचीन रामायण के रूप में माना जाता है, जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी. इसे आदि महाकाव्य माना जाता है. चूंकि यह रामायण संस्कृत भाषा में लिखी गई है, इसलिए सिर्फ उन लोगों तक सीमित रह गई जिन्हें संस्कृत भाषा का ज्ञान था.वहीं रामचरित मानस हिंदी भाषा में होने के कारण अधिक लोकप्रिय हुई. हालांकि इसे वाल्मीकि रामायण के आधार पर लिखा माना जाता है.
अयोध्या स्थित भगवान श्री राम मंदिर के पुजारी स्वामी सत्येंद्रदास के अनुसार तुलसीदास जी की रामायण में भगवान परशुराम का आगमन तब होता है जब भगवान शिव का धनुष टूटता है, लेकिन वाल्मीकि रामायण के अनुसार धनुष टूटने के बाद जब भगवान राम सीता जी से विवाह करके चलते हैं तो भगवान परशुराम की मुलाकात उनसे रास्ते में होती है. स्वामी सत्येंद्रदास के अनुसार रामकथा के पात्र वहीं हैं, सिर्फ प्रसंग थोड़े से बदल गये हैं. वाल्मीकि जी ने राम को यथार्थ रूप में कहा यानि जैसी घटना घटी, उसी रूप में प्रस्तुत किया है, जबकि तुलसीदास जी ने तमाम प्रसंगों को मर्यादा का ख्याल रखते हुए उसे प्रस्तुत किया है.
हरि अनंत, हरि कथा अनंता
भगवान राम की कथा न सिर्फ भारत में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक प्रचलित है, बल्कि इसकी लोकप्रियता विदेशों में भी देखने को मिलती है. विदेशों में प्रचलित रामायण की बात करें तो थाईलैंड में रामकियेन, नेपाल में भानुभक्तकृत रामायण, कंबोडिया में रामकर, जावा में सेरतराम, बर्मा में येतोकी रामयागन, तिब्बत में तिब्बती रामायण आदि हैं. इन सभी देशों में भगवान राम को एक आदर्श नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है.
हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद की गई रामायण में सटीकता को लेकर शोध करने वाली डॉ. ऋचा अग्रवाल कहती हैं कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता. उनके अनुसार देश-दुनिया में तमाम तरह की रामायण हैं, लेकिन उनमें एक समानता है कि सभी के नायक राम हैं. सभी रामायण में सीता का ही अपहरण हुआ है, कहीं पर भी उर्मिला या किसी अन्य स्त्री के अपहरण की बात नहीं आती है. सभी रामायण में हनुमान ही भगवान राम के सेवक या फिर कहें दूत हैं. थाईलैंड की रामकियेन तक में भी आपको वही राम कथा मिलती है, सिर्फ कुछेक चीजों में संभव है कि बदलाव नजर आ जाए. यदि आप बाल्मीकि रामायण ही लें तो उसमें आपको लक्ष्मण रेखा का कोई प्रसंग ही नहीं है, जबकि तुलसी रामायण में इसका विस्तार से पढ़ने को मिलता है.
तब भी हुई थी रामायण की तुलना
हाल ही में आई फिल्म आदिपुरुष की राम कथा को दूरदर्शन पर प्रसारित की गई रामानंद सागर के मुकाबले कमतर होने को लेकर ऋचा कहती हैं कि उस रामायण में विभिन्न तरह की रामायण से प्रसंगों को लेकर तैयार किया गया था, जिनका जिक्र उस रामायण के खत्म होते ही क्रेडिट रोल में देखने को मिलता है. साथ ही उसमें पात्रों का चयन और संगीत आदि का विशेष रूप से ध्यान रखा गया था. बहरहाल, किसी भी रामायण की तुलना पहली बार नहीं हो रही है. हिंदू मान्यता के अनुसार महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण लिखने से पहले ही हनुमान जी ने रामकथा को लिख लिया था और जब यह बात उन्हें पता चली तो बहुत दु:खी हो गये क्योंकि उन्हें इस बात का यकीन था कि प्रभु श्रीराम के सेवक की रामकथा के आगे उनकी रामायण को कोई नहीं पढ़ेगा. मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि की इस चिंता का पता लगते ही हनुमान जी ने अपनी रामायण को समुद्र में प्रवाहित कर दिया था.