कलमा का मतलब क्या होता है? आतंकी जानते तो न करते ऐसी नापाक हरकत

कलमा का मतलब क्या होता है? आतंकी जानते तो न करते ऐसी नापाक हरकत

पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों से जबरन कलमा पढ़ने को कहा. ऐसा न करने पर आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी. सवाल है कि क्या किसी से जबरन कलमा पढ़वाकर उसे इस्लाम में दाखिल किया जा सकता है? इसके जवाब में इस्लामिक धर्मगुरु कुरान शरीफ की आयतों का हवाले देते हुए इसे सिरे से न सिर्फ नकारते हैं, बल्कि ऐसा करना गुनाह बताते हैं.

‘अगर तुम कलमा पढ़ लो, तो हम तुम्हें छोड़ देंगे…’ यह आदेश उन आतंकियों के थे, जो कथित तौर पर इस्लाम के ठेकेदार बनकर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में घुसे. उन्होंने वहां घूमने गए पर्यटकों से पहले उनका धर्म पूछा फिर पवित्र कलमा पढ़ने का उन्हें आदेश दिया. कलमा नहीं पढ़ा तो वहशी आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी. ऐसा आतंकी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों का दावा है.

आतंकी अगर ‘कलमा’ का असल मतलब समझते तो ऐसी नापाक हरकत नहीं करते. ऐसी वारदात को अंजाम देकर आतंकियों ने इस्लाम के साथ-साथ पाक कलमा को बदनाम करने की कोशिश की है. इस आतंकी घटना के बाद कई सवाल पवित्र कलमा को लेकर हैं, जैसे ‘कलमा क्या है और इसका इस्लाम में क्या महत्व है?’, ‘क्या किसी को जबरन कलमा पढ़वाया जा सकता है?’, ‘अगर किसी ने कलमा नहीं पढ़ा तो क्या उसे मार दिया जाए?’ चलिए इन सवालों का कुरान, हदीस और इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक जानते हैं.

इस्लाम में कितना महत्वपूर्ण है कलमा?

इस्लामिक स्कॉलर गुलाम रसूल देहलवी ने बताया कि इस्लाम धर्म की बुनियाद सदियों पहले दुनिया के पहले इंसान हजरत आदम अलैहिस्सलाम के साथ हुई. 1450 साल पहले इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने इसके पांच स्तंभ कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज बनाएं. जिनमें कलमा इस्लाम का पहला सिद्धांत है. कलमा का इस्लामिक अर्थ है ‘शहादत’ यानी ‘गवाही’ या ‘शपथ’. वह कहते हैं कि जिस तरह कोई पुलिस अफसर, जज या मंत्री अपने कर्तव्यों के पालन के लिए शपथ लेता है, ठीक ऐसे ही इस्लाम धर्म में शामिल होने वाले व्यक्ति को इस्लाम की नींव कलमा पर दृढ़तापूर्वक विश्वास करना होगा.

उन्होंने बताया कि छह कलमा इस्लाम की संपूर्ण अवधारणा का वर्णन करते हैं. जिनमें कलमा तय्यब, कलमा शहादत, कलमा तमजीद, कलमा तौहीद, कलमा इस्तिगफर और कलिमा रद्द ए कुफ्र शामिल हैं. यह जीवन और मृत्यु, स्वर्ग और नरक, अल्लाह के प्रति समर्पण, पैगम्बरत्व का अंत आदि जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं को छूते हैं.

Lko 2025 04 23t140735.186

कलमा का क्या मतलब है?

कलमा का इस्लाम में महत्वपूर्ण स्थान है. इस्लाम में दाखिल होने के लिए पहला कलमा तय्यब पढना आवश्यक है, जिसे दो भागों में पढ़ा जाता है, ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि इसका अनुवाद है “अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, और हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहिवसल्लम अल्लाह के रसूल हैं.” गुलाम रसूल देहलवी ने बताया कि अल्लाह वह ईश्वर है, जिसकी मुसलमान पूजा करते हैं और जिसके आगे झुकते हैं.

वह ब्रह्मांड का एकमात्र निर्माता है. वह पालनहार और रक्षक है. इस्लाम में उसके अलावा किसी की पूजा अनिवार्य नहीं है, यहा तक पैगंबर हजरत मोहम्मद की भी. उन्होंने बताया कि पैगंबर मोहम्मद अल्लाह के आखरी रसूल (दूत) हैं. उनके बाद इस दुनिया में कोई पैगंबर नही आएगा. जिसका जिक्र पहले कलमा के दूसरे भाग ‘मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि’ में कहा गया है.

When Was Quran First Revealed In Ramadan

जबरन कलमा पढ़वाना गुनाह

पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों से जबरन कलमा पढ़ने को कहा. ऐसा न करने पर आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी. सवाल है कि क्या किसी से जबरन कलमा पढ़वाकर उसे इस्लाम में दाखिल किया जा सकता है? इसके जवाब में इस्लामिक धर्मगुरु कुरान शरीफ की आयतों का हवाले देते हुए इसे सिरे से न सिर्फ नकारते हैं, बल्कि ऐसा करना गुनाह बताते हैं. उनका कहना है कि इसलाम में किसी भी तरह की सख्ती और जबरदस्ती नहीं है. उन्होंने कुरान शरीफ की सूरा बकरा, आयत 256 का हवाले देते हुए बताया कि इस आयत में साफ कहा गया है कि धर्म (इस्लाम) में किसी भी तरह की कोई जबरदस्ती नहीं है.

यानी धर्म में जबरदस्ती की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं है और इस्लाम में इस पर पूरी तरह से पाबंदी लगी हुई है. यहां तक कि कुरान शरीफ की सूरा यूनुस में मौजूद आयत ‘लौ शाआ रब्बुका ल…’ में कहा है कि ‘अगर खुदा चाहता तो जमीन में जो सब मौजूद हैं वो मुसलमान होते. जब खुदा ने उन्हें जबरन मुसलमान नहीं बनाया तो क्या तुम उनपर जबरदस्ती करोगे?’ इन आयतों से साबित होता है कि किसी भी व्यक्ति को जोर जबरदस्ती, धोखेबाजी या बहला-फुसलाकर इस्लाम कुबूल नहीं कराया जा सकता. यहां तक कि हदीस में जिक्र है कि खुद पैगंबर मोहम्मद साहब ने इस्लाम में दाखिल होने के लिए कभी किसी से कोई जबरदस्ती नहीं की.

Pahalgam Terrorist Pics

किसी की जानबूझ कर हत्या करना महापाप

अब सवाल है कि ‘अगर किसी ने कलमा नहीं पढ़ा तो क्या उसे मार दिया जाए?’ इसका कुरान में सीधा जवाब है कि किसी की जानबूझ कर हत्या करना महापाप है. आतंकियों ने जिस तरह जानबूझकर निर्दोष लोगों की हत्या की वो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ है. इस्लामिक धर्मगुरु कहते हैं कि अल्लाह ने कुरान शरीफ की सूरतुन्निसा की आयत 93 में कहा है कि जो किसी को जान बूझ कर हत्या कर दे, उसकी सजा नर्क है. एक हदीस में पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा है कि ‘मनुष्य अपने धर्म के मामले में विस्तार में होता है, जब तक कि वह कोई अवैध, निषिद्ध, खून न बहाए.

पहलगाम में आतंकियों ने मारे 28 निर्दोष लोग

जम्मू-कश्मीर का जिला अनंतनाग का खूबसूरत हिल स्टेशन पहलगाम… 22 नवबंर दिन बुधवार की दोपहर में सैकड़ों पर्यटक यहां की खूबसूरत वादियों के नजारों से रूबरू हो रहे थे, तभी अचानक प्रकृति से लबरेज यह शांत वादी गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठी. कुछ आतंकी हाथों में हथियार लिए वहां मौजूद पर्यटकों को निशाना बनाने लगे. आतंकी परुषों को पकड़ते और उनसे नाम पूछते, उनसे कलमा पढ़ने को कहते. ऐसा न करने पर उन्हें गोली मार दी जाती. इस कायराना हमले में 28 निर्दोष लोगों की जान ले ली गई.