Exclusive- BJP से बातचीत में कहां फंस रहा पेंच, कुशवाहा किन शर्तों पर सांठ-गांठ को तैयार?

Exclusive- BJP से बातचीत में कहां फंस रहा पेंच, कुशवाहा किन शर्तों पर सांठ-गांठ को तैयार?

उपेंद्र कुशवाहा की चाहत पहले राज्यसभा में सीट के अलावा केंद्र में मंत्री बनने की थी, लेकिन इन मांगों पर बीजेपी की तरफ से इंट्रेस्ट नहीं दिखाने पर अब लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के तालमेल पर पक्की मुहर चाहते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में आकर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, ये सर्वविदित है. लेकिन, उनका अगला ठिकाना कहां रहने वाला है इसको लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है. सूत्रों के मुताबिक, उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के साथ जिन शर्तों के साथ जाना चाहते हैं, उसको लेकर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व हरी झंडी नहीं दे रहा है. इसलिए उपेन्द्र कुशवाहा अपनी पार्टी के रिवाइवल की योजना पर काम करना शुरू कर चुके हैं. इस कड़ी में उपेन्द्र कुशवाहा पुराने मित्र और पूर्व सांसद अरूण कुमार से संपर्क साध चुके हैं. जाहिर है कुशवाहा की कई मांगों में से एक लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर पक्की मुहर लगने की है.

सूत्रों के मुताबिक, उपेन्द्र कुशवाहा की चाहत पहले राज्यसभा में सीट के अलावा केन्द्र में मंत्री बनने की थी, लेकिन इन मांगों पर बीजेपी की तरफ से इंट्रेस्ट शो नहीं करने के बाद उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के तालमेल पर पक्की मुहर चाहते हैं. दरअसल, जेडीयू में दिन प्रतिदिन अलग-थलग पड़ रहे कुशवाहा बीजेपी के साथ खुलकर आने से पहले ये पक्का कर लेना चाहते हैं कि उनकी दोबारा बनाई जाने वाली पार्टी को बीजेपी तीन से ज्यादा लोकसभा सीट देने को लेकर पुख्ता तौर पर हामी भर दे, लेकिन बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा की इस मांग पर पुख्ता तौर मुहर लगाने से बच रही है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी की तरफ से उपेन्द्र कुशवाहा से बातचीत करने के लिए बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल और केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व बातचीत करने के लिए आगे नहीं आ रहा है.

बीजेपी के करीब ले जाने में RCP सिंह की है भूमिका ?

मोदी की पहली सरकार में मंत्री रहे उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए सरकार से नाता साल 2019 में तोड़ चुके हैं. इसकी बड़ी वजहों में से एक साल 2017 में नीतीश कुमार का दोबारा एनडीए में आना बताया जाता है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा साल 2021 में अपनी पार्टी आरएलएसपी का विलय जेडीयू के साथ कर चुके हैं. बकौल उपेन्द्र कुशवाहा उन्हें भविष्य में नेतृत्व सौंपने की शर्त पर नीतीश कुमार ने जेडीयू में शामिल कराया था, लेकिन संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर जेडीयू में उन्हें निष्क्रिय कर दिया गया. साल 2022 में जेडीयू से किनारा करने वाले आरसीपी सिंह जेडीयू का आरजेडी के साथ गठबंधन किए जाने से खासे नराज हैं और जेडीयू समर्थकों का इसे पुरजोर अपमान करार देते रहे हैं.

इसलिए कभी जेडीयू में आरसीपी सिंह को अपना धुर विरोधी समझने वाले उपेन्द्र कुशवाहा आरसीपी सिंह से इस मुद्दे पर एक मत रखने की वजह से नजदीक आ चुके हैं, ऐसा कहा जा रहा है. वैसे जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने को लेकर उपेन्द्र कुशवाहा खुद इशारा कर चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक, उपेन्द्र कुशवाहा को बीजेपी के नजदीक ले जाने में आरसीपी सिंह मध्यस्थता कर रहे थे, लेकिन बीजेपी का हाईकमान फिलहाल उपेन्द्र कुशवाहा से बातचीत के लिए खुद आगे न आकर बिहार के बीजेपी के नेताओं को आगे कर दे रहा है इसलिए उपेन्द्र कुशवाहा पशोपेश में हैं. सूत्र बता रहे हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा ने इसलिए पहले अपनी ताकत को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से पहले खुद की पार्टी रिवाइव करने की ठानी है, जिससे बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा को गंभीरता से ले सके.

अपनी पार्टी को कैसे रिवाइव करने की है योजना?

उपेन्द्र कुशवाहा 19 और 20 फरवरी को कार्यकर्ताओं की मीटिंग बुलाकर पार्टी में अपनी हैसियत का सही आंकलन करने जा रहे हैं. इस मीटिंग के जरिए जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ उनकी खुली बगावत होगी, उसके बाद अगली योजना को मूर्त रूप देने की तैयारी जोर शोर से शुरू होगी. सूत्रों के मुताबिक, उपेन्द्र कुशवाहा जेडीयू में कुछ समय तक रहकर जेडीयू में हिस्सेदारी की मांग कर नीतीश कुमार को पार्टी में असहज करने के उद्देश्य से काम करेंगे. जाहिर है, उपेन्द्र कुशवाहा जेडीयू में शहीद का दर्जा प्राप्त करना चाहते हैं और कुशवाहा समाज के तकरीबन 8 फीसदी मतदाताओं में अपनी पकड़ को मजबूत करने की योजना पर काम कर रहे हैं. दरअसल उपेन्द्र कुशवाहा के पास एकमात्र विकल्प पार्टी को रिवाइव करने का रह गया है. इसलिए 1994 की तर्ज पर वो लव और कुश के कोर वोट बैंक वाली पार्टी जेडीयू में कुश यानि कि कुशवाहा समाज की हिस्सेदारी के लिए स्वयं को बलिदान होते हुए दिखाना चाह रहे हैं.

इस कड़ी में उपेन्द्र कुशवाहा पुराने मित्र और जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार को भी मनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन आरएलएसपी में फूट के बाद अरूण कुमार साल 2019 में ही उपेन्द्र कुशवाहा से अलग हो चुके हैं और इस चुनाव में चिराग पासवान के साथ जाने का मन पहले ही बना चुके हैं. जाहिर है, बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा की ताकत का आंकलन सही तरीके से करना चाह रही है. इसलिए उपेन्द्र कुशवाहा के साथ सांठ-गांठ से पहले बीजेपी जमीनी हकीकत का आंकलन करना चाह रही है, जिससे साल 2024 के लोकसभा चुनाव को सही तरीके से लड़ा जा सके. जाहिर है बीजेपी पहले ही कुशवाहा समाज के सम्राट चौधरी को विधान परिषद का नेता घोषित कर चुकी है. इसलिए उपेन्द्र कुशवाहा को लेकर बीजेपी जल्दबाजी में फैसला करने से बच रही है.