दो लोकसभा चुनाव हारे दलित चेहरे पर दांव लगाएगी सपा? राज्यसभा के 3 ‘प्रत्याशियों’ की पूरी कहानी
देश में लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है. रविवार को बीजेपी ने यूपी समेत 7 राज्यों के लिए कुल 14 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया. बीजेपी के ऐलान के बाद अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी किसी भी वक्त उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर सकती है. इससे पहले तीन संभावित प्रत्याशियों को लेकर चर्चा तेज हो गई है.
हर बीतते दिन के साथ देश लोकसभा चुनाव के करीब आ रहा है. मगर उससे पहले आ गए हैं राज्यसभा चुनाव. देश के कई राज्यों से चुने जाने वाले इन प्रत्याशियों के नामों का ऐलान लगातार राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं. मगर सबकी नजर ठहरी है उत्तर प्रदेश पर, जहां 10 सीटों पर चुनाव होना है. बीजेपी ने 11 फरवरी को अपने 7 प्रत्याशियों की सूची जारी भी कर दी. सूची में आरपीएन सिंह, सुधांशु त्रिवेदी, चौधरी तेजवीर सिंह, साधना सिंह, अमरपाल मौर्य, संगीता बलवंत और नवीन जैन के नाम थे.
अब सबको इंतजार था दो और लिस्ट का. एक लिस्ट समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की और दूसरी लिस्ट भाजपा की जिसमें उनका आठवां नाम हो सकता है. अब ये आठवें नाम की क्या गणित है, ये बाद में बताएंगे. पहल उन तीन नामों के बारे में जानते हैं, जो सपा के प्रत्याशी बताए जा रहे हैं.
- जया बच्चन
- आलोक रंजन
- रामजी लाल सुमन
क्या है इन तीन नामों की कहानी? चलिए समझते हैं.
जया बच्चन:- इस नाम की कहानी तो आप जानते ही होंगे. खैर, थोड़ी हम भी बता देते हैं. जया बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी हैं. बतौर अभिनेत्री जया ने 9 फिल्मफेयर अवार्ड जीते हैं. साथ ही 1992 में उनको पद्मश्री सम्मान भी मिला था. पति अमिताभ के राजनीति से दूर जाने के बाद वह राजनीति में आईं. 2004 से ही लगातार वो उच्च सदन की सदस्य हैं. कोई जाए या ना जाए उनका नाम हर बार सपा की लिस्ट में रहता है.
ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि समाजवादी पार्टी से जया पांचवीं बार लगातार राज्यसभा जा सकती हैं. सवाल उठता है सपा और बच्चन परिवार की इस प्रगाढ़ दोस्ती के पीछे कौन था? तो सपा और बच्चन परिवार को करीब लाने वाले थे कभी मुलायम के सबसे भरोसेमंद रहे अमर सिंह. अमर सिंह जिन्हें नेटवर्किंग का किंग कहा जाता था. एक समय तो अमिताभ बच्चन के साथ अमर सिंह की इतनी बनती थी कि दोनों एक दूसरे को परिवार का सदस्य बताते थे.
हालांकि 2010 में जब समाजवादी पार्टी से अमर सिंह निकाले गए और उनके कहने पर भी जया बच्चन ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया, तो दोनों के बीच दूरी बढ़ गई. जया बच्चन को टिकट दी जाती है तो उसके पीछे मुख्य वजह होगी उनकी वफादारी. जिस तरह वो लगातार सपा के साथ टिकी रहीं. संसद में सपा की विचारधारा और मोदी सरकार के विरोध में बोलती रहीं.
आलोक रंजन:- दूसरा बड़ा नाम है पूर्व ब्यूरोक्रैट और यूपी के मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन का. अखिलेश यादव सरकार में बेहद ताकतवर माने जाने वाले आलोक रंजन को जून 2014 में मुख्य सचिव बनाया गया था. अखिलेश ये उनकी सुर लय ताल बनने की कहानी को ऐसे समझिए कि जब एक जुलाई 2016 को वे रिटायर हुए तो उनको तुरंत मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार और यूपीएसआईडीसी (उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम) का अध्यक्ष बना दिया गया.
हालांकि आलोक रंजन सिर्फ अखिलेश के ही करीबी नहीं थे, उनको मुलायम के भी खास अधिकारियों में गिना जाता था. राजनीतिक जानकार कहते हैं उनको ब्यूरोक्रेसी की टॉप कुर्सी पर तैनात करने का फैसला मुलायम का ही था. मुलायम दरअसल अलोक पर बहुत भरोसा करते थे. और उनको मुख्य सचिव की कुर्सी पर रखकर वे सत्ता का कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते थे.
आलोक रंजन रहने वाले उन्नाव के हैं. उनका जन्म 9 मार्च 1956 को उन्नाव में ही हुआ था. आगे की पढ़ाई दिल्ली से हुई. वहां के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज से. अर्थशास्त्र में ग्रैजुएशन के बाद वे पहुंचे IIM अहमदाबाद जहां से उन्होंने एमबीए किया. मगर एमबीए उनका आखिरी लक्ष्य नहीं था. उन्होंने यूपीएससी की तैयारी की और 1978 बैच के आईएएस अधिकारी बने. यूपीएससी में भी उनकी चौथी रैंक रही थी. और प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के उच्चतम पद पर रहने के बाद अब वे उच्चतम सदन के सदस्य बन सकते हैं.
रामजी लाल सुमन:- सपा की लिस्ट में तीसरा नाम हो सकता है रामजी लाल सुमन का. सुमन की गिनती भी सपा के सबसे जुझारू और वरिष्ठ नेताओं में होती है. 1999 से 2009 तक वे दो टर्म फिरोजाबाद लोकसभा से सांसद रहे हैं. 2014 और 2019 लोकसभा में भी वे हाथरस लोकसभा से चुनाव लड़े, मगर हार का सामना करना पड़ा. सबसे खास बात ये कि वे मुलायम सिंह के दौर से लेकर अखिलेश यादव के दौर में प्रासंगिक बने हुए हैं. सुमन की गिनती समाजवादी पार्टी के बड़े दलित चेहरों में भी होती है. अखिलेश यादव ने हाल ही में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया था और अब उनको राज्यसभा भेजने के लिए चुनाव में उतारने की बात सूत्रों के जरिए कही जा रही है.
रामजी लाल सुमन का जन्म 25 जुलाई 1950 को हाथरस जिले के बहदोई गांव में हुआ था. उच्च शिक्षा आगरा कॉलेज आगरा में हुई. पहली बार वे 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में लोकसभा पहुंचे थे. छात्र राजनीति में सक्रिय सुमन महज 26 साल की उम्र में ही जनता पार्टी की टिकट पर फिरोजाबाद से लड़े और जीते थे. 1989 में फिर से संसद पहुंचे. उस दौर में वह चंद्रशेखर के करीबी थे.
इसीलिए जब चंद्रशेखर 1991 में प्रधानमंत्री बने तो उनको श्रम कल्याण महिला कल्याण एवं बाल विकास जैसे मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया. हालांकि जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो वे उनके साथ आ गए. संस्थापक सदस्यों में रहे. फिर मुलायम के भरोसेमंद होने के साथ ही अखिलेश के खास भी बने हुए हैं. सुमन के बेटे रणजीत सुमन भी हाथरस की जलेसर सीट से विधायक हैं.
सपा का सुमन को राज्यसभा टिकट देना दलितों को अपनी तरफ लाने के प्रयास के तौर पर भी देखा जाएगा. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश यादव की चिंता लगातार इस बात पर रहती है कि मायावती का वोटर टूटकर भाजपा में न जाए. बीजेपी जिस तरह से पिछले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को लाई और चुनाव लड़वाया. इसके अलावा जैसे असीम अरुण जैसे ब्यूरोक्रैट को विधायक और मंत्री बनाकर प्रमोट किया. उसने सपा की चिंताएं बढ़ाई हैं. ऐसे में सपा सुमन को राज्यसभा भेज लोकसभा चुनाव से पहले दलितों के बीच संदेश देने की कोशिश करेगी.