नीतीश कुमार ने दांव तो चल दिया, क्या 75 फीसदी आरक्षण को लागू करा पाएंगे?

नीतीश कुमार ने दांव तो चल दिया, क्या 75 फीसदी आरक्षण को लागू करा पाएंगे?

बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने आरक्षण वाला दांव तो खेल दिया है लेकिन इस मिशन में वो कामयाब कैसे होंगे? कानून और संविधान के जानकारों के बीच इस सवाल पर मंथन शुरू हो गया है. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण इसका सबसे अहम नजीर है. हालांकि इसी सिलसिले में तमिलनाडु में भी 69 फीसदी आरक्षण का उदाहरण सामने है. सवाल है क्या संविधान संशोधन किये बिना यह संभव है? पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट.

लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने बिहार में जातिगत सर्वे की आर्थिक और शैक्षिक रिपोर्ट जारी करने के बाद आरक्षण को बढ़ाने का दांव चला है. सीएम नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट को विधानमंडल में पेश करने के बाद कहा कि वो आरक्षण कोटा बढ़ाने के पक्ष में हैं. इसके कुछ देर बाद ही नीतीश कैबिनेट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 फीसदी करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और कहा कि ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी कोटा जोड़ने पर 75 फीसदी हो रहा है.

सीएम नीतीश कुमार ने भले ही बिहार में ओबीसी-ईबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय के आरक्षण कोटा बढ़ाने का फैसला किया हो लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. महाराष्ट्र में मराठा और हरियाणा में जाटों को आरक्षण इसीलिए नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि उनकी राह में 50 फीसदी का आरक्षण सीमा का बैरियर सुप्रीम कोर्ट ने लगा रखा है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा, जाट और गुर्जर आरक्षण को रद्द कर दिया था. ऐसे में सवाल यह उठता है कि नीतीश सरकार क्या 75 फीसदी आरक्षण बिहार में दे पाएगी, क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय नियम उसकी राह में अड़चने नहीं बनेगा?

बिहार में नये आरक्षण प्रस्ताव का हिसाब

बिहार में फिलहाल ईडब्ल्यूएस कोटे के 10 फीसदी मिलाकर कुल 60 फीसदी आरक्षण मिल रहा था. ओबीसी और ईबीसी यानी अतिपिछड़ी जातियों को 30 फीसदी आरक्षण मिलता है, जिसमें 18 फीसदी ओबीसी जबकि 12 फीसदी ईबीसी के लिए निर्धारित है. अनुसूचित जाति को 16 फीसदी तो अनुसूचित जनजाति को एक फीसदी आरक्षण मिलता है और 3 फीसदी महिलाओं के लिए है. इस तरह आरक्षण 50 फीसदी है, ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण को जोड़ दें तो यह 60 फीसदी हो जाता है.

बिहार में कैसे मिलेगा 75 फीसदी आरक्षण?

नीतीश सरकार ने बिहार में मिल रहे 60 फीसदी को आरक्षण को बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया है. नीतीश ने 15 फीसदी जो आरक्षण बढ़ाया है. इस तरह से अभी तक पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहे 30 फीसदी आरक्षण नई मंजूरी मिलने पर 43 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा. ओबीसी का आरक्षण 18 फीसदी से बढ़कर 25 फीसदी तो ईबीसी का 12 फीसदी से बढ़कर 18 किया गया है. अनुसूचित जाति वर्ग को मिल रहे 16 प्रतिशत आरक्षण, अब बढ़कर 20 फीसदी हो जाएगा. अनुसूचित जनजाति वर्ग को एक प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 2 फीसदी. केंद्र सरकार द्वारा दिया गया आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य गरीब वर्ग (EWS) का 10 फीसदी आरक्षण में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस तरह से कुल आरक्षण 75 फीसदी हो रहा है.

नीतीश सरकार आरक्षण को बढ़ाने वाले प्रस्ताव वाले बिल को विधानसभा में पेश करेगी. बिहार में महागठबंधन के पास विधानसभा में जिस तरह से विधायकों की संख्या है, उस लिहाज से आरक्षण के बढ़ाने के प्रस्ताव के नीतीश सरकार पास करा लेगी, लेकिन असल चुनौती राजभवन से मिलनी है. नीतीश के आरक्षण बिल को राज्यपाल से उसे मंजूरी मिलना आसान नहीं है. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार आरक्षण के दायरे को बढ़ाने का कदम उठाया था, लेकिन राज्यपाल से स्वीकृति नहीं मिल सकी है. इसके चलते वहां अभी तक आरक्षण की सीमा नहीं बढ़ सकी. संभव है नीतीश सरकार को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है?

SC ने तय कर रखी है 50 फीसदी आरक्षण की सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी मामले में जजमेंट देते हुए आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. इंदिरा साहनी फैसले के चलते सुप्रीम कोर्ट अभी तक जाट, मराठा, पाटीदार, कापू आदि आरक्षणों को खारिज करता रहा है और कहता रहा है कि आरक्षण को 50 फीसदी से ऊपर नहीं बढ़ाया जा सकता है. इस तरह आरक्षण को लेकर आंदोलन उठते रहे हैं. महाराष्ट्र में अभी भी मराठा आरक्षण को लेकर मांग उठी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के लगाए गए बैरियर के चलते सरकार चाहकर भी कदम नहीं उठा पा रही हैं.

क्यों और कैसे फंसा मराठा आरक्षण का मामला?

महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने साल 2018 में कानून बनाकर मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण देने का काम किया था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद आरक्षण को कम करके 12 फीसदी शिक्षा में और 13 फीसदी नौकरी में फिक्स कर दिया था. इसके बाद मराठा आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां पर अदालत ने कहा था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है. इस तरह मराठा आरक्षण को रोक दिया गया था.

जाट और गुर्जर आरक्षण भी है एक अहम नजीर

साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह ही रद्द कर दिया था. इसी तरह से जाट और गुर्जर समुदाय को अलग से दिए गए आरक्षण पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दिया था. ऐसे में केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण के लिए संसद में संविधान को संशोधन करके कानून बनाना पड़ा. तमिलनाडु में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण संविधान में एक संशोधन के तहत दिया गया है.

तमिलनाडु में कैसे मिल रहा है 69 फीसदी आरक्षण?

तमिलनाडु में आरक्षण से जुड़ी कानून की धारा-4 के तहत 30 फ़ीसदी आरक्षण पिछड़ा वर्ग, 20 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 18 फीसदी एससी और एक फीसदी एसटी के लिए आरक्षित किया गया है. इस तरह से तमिलनाडु में कुल 69 फीसदी रिजर्वेशन दिया जा रहा है. तमिलनाडु को खास प्रावधान के तहत इसकी छूट मिली हुई है. साल 1992 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने सिर्फ़ कुछ अपवादों को छोड़ उसने आरक्षण की 50 फीसदी सीमा तय करने का फैसला सुनाया था. बाद में 1994 में 76वां संशोधन किया था और इसके तहत तमिलनाडु में रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा कर दी गई थी. यह संशोधन संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है. इसके चलते जब भी 50 फीसदी आरक्षण की लिमिट के तोड़ने के लिए कदम उठाए जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट उस पर रोक लगा देता है.

बिहार में आरक्षण सीमा बढ़ाने में क्या है अड़चन?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट को विधानसभा और परिषद में पेश करने के बाद कहा कि वह कोटा बढ़ाने के पक्ष में है. बिहार की नीतीश सरकार ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी को छोड़कर आरक्षण की लिमिट को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने की है. ऐसे में 50 फीसदी लिमिट को तोड़ने के लिए संविधान को संसोधन करने की जरुरत होगी. मराठा आरक्षण के मामले में भी यही मांग की जा रही है. अब बिहार सरकार को भी 65 फीसदी और ईडब्ल्यूएस सहित 75 करने की है. नीतीश सरकार भले ही दांव चल दिया हो, लेकिन संविधान संसोधन के बिना संभव नहीं है. इस तरह केंद्र सरकार के बिना मर्जी के नीतीश कुमार 50 फीसदी से ज्यादा दलित-ओबीसी-ईबीसी और आदिवासियों के आरक्षण को नहीं बढ़ा पाएंगे?

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