कर्नाटक में भाजपा का सिरदर्द बने दलबदलू, क्या उम्मीदवारों की घोषणा में देरी की वजह यही है?
karnataka Assembly Election की तैयारी में जुटे कई वफादारों को डर है कि आगामी चुनावों के लिए पार्टी टिकट के उनके दावों को दलबदलुओं के चलते नजरअंदाज कर दिया जाएगा. उधर कांग्रेस के पूर्व नेता कम्फर्ट जोन में हैं.
विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही कर्नाटक की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और सत्तारूढ़ बीजेपी के भीतर तनाव बढ़ता जा रहा है. लंबे समय से बीजेपी के साथ रहे नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर अपनी असुरक्षा की भावना व्यक्त करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि पार्टी में शामिल होने वाले नए लोगों को टिकट देने के अलावा महत्वपूर्ण पदों पर तरजीह दी जा रही है.
पिछले 15 सालों में दो बार दलबदलुओं ने प्रतिद्वंद्वी दलों के टिकट पर चुनाव जीतकर बीजेपी को विधानसभा में बहुमत हासिल करने और कर्नाटक में सत्ता हासिल करने में मदद की. इस लिहाज से पार्टी को उनका आभारी होना चाहिए. लेकिन पार्टी के प्रति वफादार रहे लोगों का क्या? वे अच्छे और बुरे वक्त में बीजेपी के साथ रहे हैं, लेकिन पार्टी ने दलबदलुओं को खास महत्व देने के अलावा उन्हें बड़े पद दिए हैं. इन वजहों से अब वे पार्टी के प्रति अपना धैर्य खो रहे हैं.
दलबदलुओं को झेलनी पड़ी थी नाराजगी
2020 में बीजेपी को सत्ता में लाने वाले 17 दलबदलुओं को अब पार्टी कार्यकर्ताओं से ईर्ष्या और नाराजगी झेलनी पड़ रही है. पार्टी के प्रति वफादार रहे कार्यकर्ता महसूस करते हैं कि उन्हें लंबे समय तक पार्टी में रहने का उचित पुरस्कार नहीं मिला है, जबकि अपने स्वार्थ के लिए पार्टी में शामिल होने वाले दलबदलू नेताओं को सब कुछ मिल रहा है.
पार्टी द्वारा अपने पुराने कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाए जाने की यह भावना बीजेपी के लिए ठीक नहीं है क्योंकि अलग-अलग गुट अपने विश्वासघात की भावना को छुपा नहीं पा रहे हैं. ऐसे में यदि उनके योगदान को पर्याप्त तरीके से मान्यता नहीं दी जाती है तो वे बदले की भावना के साथ पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
पार्टी जल्द घोषित करना चाहती है उम्मीदवारों के नाम
बीजेपी इस बात को लेकर चिंतित है. पार्टी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा जल्द करना चाहती थी ताकि उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जा सकें और चुनाव प्रचार शुरू कर सकें. लेकिन अब पार्टी ने अपनी पहली सूची वापस ले ली है. इसका कारण यह है कि जिन लोगों को पार्टी टिकट से वंचित किया जाएगा, वे फिर कांग्रेस या यहां तक कि जेडीएस के रथ पर सवार हो जाएंगे.
विपक्ष में बैठी कांग्रेस को भी इसी बात तरह का डर है और उसने भी अपनी सूची वापस ले ली है, लेकिन उसकी चिंता बीजेपी के मुकाबले कुछ भी नहीं है. सत्ताधारी दल कई समस्याओं से जूझ रहा है, जिसमें एंटी इंकम्बेंसी का डर, पुलिस सब-इंस्पेक्टरों की भर्ती में भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप, पार्टी के लिए वोट बैंक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय के बीच असंतोष, आंतरिक कलह और राज्य में पार्टी के लिए वोट जुटाने वाले के नेताओं की कमी शामिल है. और यह बीजेपी के लिए समस्याओं की एक छोटी सी सूची है.
दलबदलुओं के खिलाफ असंतोष
दलबदलुओं के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है क्योंकि बीजेपी ने उन्हें उनकी सेवाओं के लिए पुरस्कृत किया है. असंतुष्ट पार्टी कार्यकर्ता मुख्य रूप से स्वास्थ्य मंत्री के सुधाकर को निशाना बना रहे हैं जो 2019 में कांग्रेस-जेडीएसजद गठबंधन की सरकार को गिराने वाले 17 विधायकों में शामिल थे. लेकिन परोक्ष रूप से सभी दलबदलू नेता निशाने पर हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर को पुरस्कार के तौर पर मंत्री बनाया गया है और पार्टी के वफादार कार्यकर्ता इसी बात को लेकर नाराज हैं.
राज्य में बीजेपी के दो नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व मंत्री सांसद रेणुकाचार्य ने पिछले कुछ दिनों में डॉ. सुधाकर पर निशाना साधा है. सरकारी अस्पतालों में काम करने के लिए चुने गए डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र जारी करने में विफलता के लिए शेट्टार ने विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री की खिंचाई की. रेणुकाचार्य सुधाकर से नाराज हैं क्योंकि पहले उन्हें बीजेपी के पाले में आने के बदले में मंत्री पद से पुरस्कृत किया गया और बाद में पार्टी मेनिफेस्टो कमेटी का संयोजक बनाया गया जो आगामी चुनावों के लिए पार्टी की उपलब्धि और वादों की सूची तैयार करेगी.
वफ़ादारी की कीमत पर पुरस्कृत !
ख़बरों के मुताबिक रेणुकाचार्य ने कहा, ‘हम समझते हैं कि हमारी पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों के प्रयासों के कारण सरकार बनी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें हमेशा वफ़ादारी की कीमत पर पुरस्कृत किया जाए.’
सुधाकर के खिलाफ रेणुकाचार्य की नाराजगी दिलचस्प है. होनाली सीट से विधायक रेणुकाचार्य पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के करीबी हैं. जुलाई 2019 में येदियुरप्पा को पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए उन्हें दलबदलुओं का ऋणी होना चाहिए. इससे जाहिर है कि दलबदलुओं के खिलाफ बीजेपी के भीतर सभी गुटों में नाराजगी है.
वफादारों को इस बात का डर
कई वफादारों को डर है कि आगामी चुनावों के लिए पार्टी टिकट के उनके दावों को दलबदलुओं के चलते नजरअंदाज कर दिया जाएगा. उनमें से एक नंदीश रेड्डी हैं जो 2008 में केआर पुरम सीट से विधानसभा के लिए चुने गए थे लेकिन बाद में 2013 में कांग्रेस के बैराथी बसवराज से हार गए. बसवराज 2018 में फिर से जीते और बीजेपी में शामिल हो गए और मंत्री बन गए. उन्हें फिर से केआर पुरम का टिकट मिलने की संभावना है. हालांकि इस तरह का बयान रेड्डी के लिए राजनीतिक मौत होगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें बसवराज से अधिक वरीयता दी जाए. इसके बाद उनके कांग्रेस में चले जाने के डर से बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें राज्य का पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया.
इसके अलावा एक और दलबदलू मंत्री एसटी सोमशेखर के मामले को लें तो उन्हें यशवंतपुरा निर्वाचन क्षेत्र से पद पर बिठाया गया. यह सीट अभिनेता से राजनेता बने जग्गेश की थी. बीजेपी ने जग्गेश को राज्यसभा भेज दिया है. दलबदलुओं से जुड़े कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिए बीजेपी को इसी तरह का काम करना होगा.
कम्फर्ट जोन में हैं पूर्व कांग्रेसी नेता
जहां तक दलबदलू नेताओं की बात है तो उनमें से ज्यादातर पूर्व कांग्रेसी नेता हैं और वे कम्फर्ट जोन में हैं. अगर बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देती है, तो पार्टी को उनके गुस्से का सामना करना पड़ेगा और उनमें से कई कांग्रेस में लौट सकते हैं जो वैसे भी उन्हें लुभा रही है. कई दलबदलुओं के लिए सिद्धारमैया पहले आदर्श थे. बाद में बीजेपी ने उन्हें पद और धन से लुभाया. कथित तौर पर सिद्धारमैया दलबदलू नेताओं के अपने मूल पार्टी में लौटने के ‘खिलाफ’ रहे हैं और माना जा रहा है कि वे उनकी वापसी करा सकते हैं. दरअसल बीजेपी के वफादारों को संदेह है कि दलबदलू सिद्धारमैया के लिए डबल-एजेंट थे, ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें सक्रिय किया जा सके.
कांग्रेस के पास उन दलबदलुओं को लुभाने का कारण है जिन्होंने जेडीएस के साथ उसकी गठबंधन सरकार को गिरा दिया था. पहली बात सरकार अव्यावहारिक थी और शुरू से ही गिरने की संभावना थी. दूसरी बात उनमें से ज्यादातर नेता जैसे कि आरआर नगर में मुनिरत्न, केआर पुरम में बैराथी बसवराज और होसकोटे में एमटीबी नागराज बहुत अमीर हैं और अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बेहद प्रभावशाली हैं. ऐसे में कांग्रेस को उनके खिलाफ चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करने में मुश्किल होगी. इनमें से कुछ नेताओं ने पहले से ही अपने मूल संगठन में लौटने की इच्छा का संकेत दिया है.
कांग्रेस के लिए बोनस होंगे दलबदलुओं के आर्थिक संसाधन
वैसे भी दलबदलुओं के अपार आर्थिक संसाधन कांग्रेस के लिए बोनस ही होंगे. पूर्व मंत्री एएच विश्वनाथ, एमएलसी और मुलबगल से विधायक एच नागेश के पास इतने संसाधन नहीं हैं, लेकिन वे पहले ही खुले तौर पर संकेत दे चुके हैं कि वे कांग्रेस में लौट रहे हैं.
ऐसे में दलबदलू नेता अब कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गए हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि चुनावी रस्साकस्सी के इस खेल में दोनों पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नाम बताने को लेकर सावधान हैं और सामने वाले के पहले कदम का इंतजार कर रहे हैं.