गुमराह ना हों… Rolls Royce से जुड़े मिथक, कहीं Ferrari से जुड़े फैक्ट्स तो नहीं?
लग्जरी या सुपरकार की बात हो तो सबसे पहले हमारे आपके दिमाग में रॉल्स रॉयस, बेंटले, फरारी और लैंबोर्गिनी जैसी कारों का नाम आता है. इन कारों से जुड़े कई मिथक भी प्रचलित हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कुछ ऐसे ही किस्सों के बारे में...
फरारी जब सड़क से गुजरती है, तो काफी दूर से पता चल जाता है कि कोई सुपरकार आ रही है. इसके इंजन की आवाज का जादू ही ऐसा है. वहीं फरारी के लुक और टशन की बात करें तो ये लोगों को शाहरुख की तरह खुद को देखने के लिए बार-बार कहती हो ‘पलट…पलट…पलट’, आखिर लोग इसे देखते ही ऐसे हैं. लग्जरी कार में कुछ ऐसा ही करिश्मा रॉल्स रॉयस का है. कहा जाता है कि इन दोनों कारों को खरीदने के लिए सिर्फ पैसा ही काफी नहीं होता…चलिए जानते हैं इनसे जुड़े मिथक और सच
उससे पहले आपको रॉल्स रॉयस का एक किस्सा बता देते हैं. अलवर के महाराजा जय सिंह प्रभाकर एक बार लंदन में रॉल्स रॉयस के शोरूम में गए. कार खरीदने की इच्छा जताई, लेकिन उनका पहनावा देखकर शोरूम के सेल्समैन उन्हें मना कर दिया. बाद में उन्होंने रॉल्स रॉयस की 7 कारों को इंडिया मंगवाया और अलवर में नगरपालिका को कचरा ढोने के लिए दे दी. जब ये खबर कंपनी के पास पहुंची तो उसने अपने एम्प्लॉई के बर्ताव के लिए माफी मांगी.
पैसों से नहीं लॉयल्टी से खरीदी जाती है फरारी
फरारी वो कार है, जिसे कोई भी इंसान पैसों से नहीं खरीद सकता. इसकी वजह ग्राहक फरारी को नहीं चुनते, बल्कि फरारी अपने ग्राहकों को चुनती है. बताया जाता है कि फरारी खरीदने वाले ग्राहकों को लंबा इंतजार करना होता है, बाकायदा फरारी की वेटिंग लिस्ट है. कंपनी फरारी की सप्लाई को काफी कंट्रोल रखती है, इसलिए लोगों को वेटिंग लिस्ट में नाम रजिस्टर करवाना पड़ता है. इसलिए जो फरारी ब्रांड के साथ जितना लॉयल होता है, उसके वेटिंग लिस्ट क्लियर होने के चांसेस उतने ही ज्यादा बढ़ जाते हैं.
जब भी आप फरारी को खरीदने जाते हैं आपको कंपनी के डीलरशिप के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट करना होता है. बताया जाता है कि कंपनी खुद चाहती है कि कम लोगों के पास ही फरारी की कार हो. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक दुनियाभर के फरारी ओनर्स के लिए उसने एक क्लब बनाया हुआ है. इस क्लब के अभी तक बस 13,000 लोग ही मेंबर हैं.
फरारी खरीदने के कॉन्ट्रैक्ट में नीचे छोटे-छोटे अक्षरों में कई नियम और शर्तें लिखे होते हैं. उनके बारे में बताया जाता है कि ये कार खरीदने से जुड़े ऐसे नियम है जो फरारी को सुपरकार मार्केट का लीडर बनाते हैं. जैसे आप फरारी खरीदने के बाद उसे एक साल के अंदर नहीं बेच सकते. लिमिटेड एडिशन की फरारी खरीदने के लिए आपके पास पहले से फरारी कार होनी चाहिए. वहीं फरारी में आप कोई मॉडिफिकेशन नहीं करा सकते, स्पेशली ऐसा कुछ जो उसकी ब्रांड आईडेंटिटी को छुपाता हो.
क्या हैंं रॉल्स रॉयस से जुड़े मिथक
अक्सर रॉल्स रॉयस को लेकर भी ऐसे ही मिथक गढ़े जाते हैं. जैसे कि कंपनी अपने कस्टमर का बैकग्राउंड चेक करती है, बाहर से सर्विसिंग नहीं करवा सकते और अपनी पसंद का कलर बाहर से नहीं करवा सकते. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. कंपनी अपने ग्राहकों को बैकग्राउंड चेक नहीं करवाती है, आपके पास पैसा है आप कार खरीद सकते हैं.
रॉल्स रॉयस में बाहर से कलर करवाने की जरूरत इसलिए नहीं होती क्योंकि कंपनी 44,000 कलर में से कस्टमाइजेशन का ऑप्शन देती है. वहीं रॉल्स रॉयस की मेंटिनेंस करने के लिए बाहर ढंग के मैकेनिक मिलते ही नहीं और कंपनी अपने कस्टमर्स को डोर-स्टेप सर्विसिंग फैसिलिटी देती है, इसलिए भी रॉल्स रॉयस के कस्टमर्स को बाहर सर्विसिंग के लिए डिपेंड नहीं होना पड़ता.
फरारी और लैंबोर्गिनी का झगड़ा
फरारी को स्पीड और स्टाइल में टक्कर देने वाली कार है लैंबोर्गिनी. इससे जुड़ी एक किवदंती है कि ट्रैक्टर कंपनी के मालिक फेरुसियो लैंबोर्गिनी को अपनी फरारी कार से शिकायत थी, क्योंकि इसकी क्लच आसानी से टूट जाती थी. फरारी के फाउंडर एन्जो फरारी भी इटली के ही थे, तो एक मुलाकात में उन्होंने इस बात की शिकायत कर दी.
एन्जो फरारी ने इसके जवाब में लैंबोर्गिनी से कहा ‘मुझे कार बनाने दो, तुम ट्रैक्टर बनाते रहो’. ये बात फेरुसियो को बुरी लगी और उन्होंने कहा कि वो एक फरारी से अच्छी स्पोर्ट कार बनाकर दिखाएंगे. इस तरह लैंबोर्गिनी ने कार बनाना शुरू किया. आज भी इन दोनों कंपनियों की नहीं बनने के किस्से मशहूर हैं. बताया जाता है कि अगर आप लैंबोर्गिनी के ओनर हैं तो फरारी आपको अपनी लिमिटेड एडिशन कार बेचने से मना कर सकती है.