कहानी उस बेसबॉल टीम की, जिसका हर एक खिलाड़ी रेपिस्ट या फांसी की सजा पाया मुजरिम था

कहानी उस बेसबॉल टीम की, जिसका हर एक खिलाड़ी रेपिस्ट या फांसी की सजा पाया मुजरिम था

ये सच्ची, मगर सुनने में एकदम अविश्वसनीय कहानी है 'व्योमिंग स्टेट पेनिटेंटरी ऑल स्टार्स' की टीम की.

अमूमन दुनिया में जब भी किसी भी खेल की कोई टीम तैयार की जाती है तो, उसमें शामिल किए जाने वाले हर खिलाड़ी का चरित्र जरूर पहले खंगाला जाता है. ताकि किसी बदनाम खिलाड़ी के चलते टीम की कहीं तौहीन न हो. ऐसे में अगर मैं एक उस बेसबॉल टीम का जिक्र करूं जिसमें शामिल हर खिलाड़ी ही हत्यारा, बलात्कारी, चोर, ठग यहां तक की सजा-ए-मौत का मुजरिम तक शामिल रहा हो…तब आप क्या सोचेंगे? यही न कि वो बेसबॉल टीम नहीं दुनिया के छटे हुए बदमाश-खूंखार अपराधियों की टीम रही होगी! चलिए आइए आज चर्चा करते हैं वास्तव में दुनिया की एक ऐसी ही अजूबा बेसबॉल टीम की, जिसमें शामिल हर खिलाड़ी किसी न किसी अपराध का मुजरिम था! सच्ची, मगर सुनने में एकदम अविश्वसनीय कहानी है ‘व्योमिंग स्टेट पेनिटेंटरी ऑल स्टार्स’ की टीम की.

जिक्र उसी ‘व्योमिंग स्टेट पेनिटेंटरी ऑल स्टार्स’ टीम का जिसने, 18 जुलाई सन् 1911 को यानी अब से करीब 112 साल पहले अपना पहला बेसबॉल मैच खेला था. उस 12-मैन रोस्टर में तीन बलात्कारी, एक जालसाज, पांच चोर, तीन हत्यारे शामिल थे. इन तीन हत्यारों में एक को तो फांसी की सजा मुकर्रर की जा चुकी थी. टीम में खिलाड़ी के रूप में शामिल, फांसी की सजा पाया वो इकौलता खूंखार अपराधी और उस टीम का बेहतरीन खिलाड़ी था जोसेफ सेंग, जिसे प्रेमिका के पति को कत्ल कर डालने के आरोप में सजा-ए-मौत सुनाई गई थी. उसके बारे में कार्बन काउंटी जर्नल ने लिखा भी था, “जोसेफ सेंग, जिसे पहली श्रेणी की हत्या का मुजरिम करार देकर फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी, उस टीम के हर मैच में अव्वल दर्जे के खेल का प्रदर्शन किया था. उसकी अद्भूत खेल प्रतिभा ने उसकी मौत की सजा की तारीख को एक साल आगे बढ़वा दिया था.”

कैसे आया बेसबॉल टीम तैयार करने का विचार

दरअसल खतरनाक मुजरिमों से सुसज्जित उस बेसबॉल टीम का चयन तब, व्योमिंग स्टेट पेनिटेंटरी में पहुंचे नए वार्डन, बिग हॉर्न काउंटी के शेरिफ फेलिक्स एलस्टन के चलते संभव हो सका थी. वे हमेशा जेल में कैद खूंखार कैदियों के सुधार के लिए काम करने में विश्वास करते थे. जबकि उनसे पहले उन्हीं के पद पर तैनात रहे ओटो ग्राम कैदियों के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार के लिए बदनाम थे. जो यहां कैद मुजरिम से बंधुआ मजदूरों/दासों की तरह काम लेकर सिर्फ उनके मानवाधिकारों को कुचलते रहते थे. उनके शासनकाल में यहां कैद सैकड़ों कैदियों को तो सूरज की रोशनी तक मयस्सर नहीं हो सकी थी. शेरिफ फेलिक्स एलस्टन ने जब जेल का कार्यभार ग्रहण किया तो उन्होंने कुछ ही दिन में ताड़ लिया कि उनकी जेल में तो जबरदस्त हुनरमंद वाली खेल प्रतिभाएं मौजूद हैं.लिहाजा उन्होंने एक बेसबॉल टीम तैयार करने की सोची.

यह सच्ची कहानी है 20वीं सदी के शुरुआती गौर की. जब जेल में बंद खतरनाक मुजिरमों को शामिल करके एक बेसबॉल टीम खड़ी करने की खबरें जेल की चार दीवारी से बाहर निकलीं, तो तमाम तरह की ऊट-पटांग प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गईं. कुछ ने इसे एक भद्दा मजाक बताया. कुछ लोग इसे सजायाफ्ता मुजरिमों और उनके परिवारों को दिए जा रहे यादगार सामाजिक सम्मान के बतौर देख-समझ रहे थे. टीम में शामिल और प्रेमिका के पति की हत्या के सजायाफ्ता मुजरिम, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी, ने तो उस बेसबॉल टीम के हर मैच में विरोधी टीमों पर वो कहर बरपाया कि, उस जमाने में न केवल उनके अपने देश में अपितु, दुनिया के बाकी तमाम देशों में भी वे चर्चित बेसबॉस खिलाड़ी बन गए.

उस अजीब-ओ-गरीब कहिए या फिर चमत्कारिक बेसबॉल टीम के बारे में, हावर्ड कज़ानजियन और क्रिस एनस भी अपनी किताब में विस्तृत में जिक्र करते हैं. उनकी किताब में उल्लिखित अंशों के मुताबिक, “कस्बे में डकैती, बलात्कार या हत्या के कृत्य में पकड़े गए, हताश लोगों को न केवल फांसी दी जाती थी, बल्कि कभी-कभी उनकी खाल उधेड़ दी जाती थी. विभिन्न वस्तुओं को इन दुर्भाग्यपूर्ण कानून तोड़ने वालों की खाल से बनाया जाता था. और फिर उन्हें स्मृति चिन्ह के रूप में बाजार में बेचा जाता था. यह सब उस जमाने में बाकी अपराधियों को चेताने की नियत से हुकूमत द्वारा किया जाता था. ताकि बाकी अपराधी भी अपराध को अंजाम देने से तौबा कर लें. लेकिन उस बुरे और डरावने दौर में कैदियों की बेसबॉल टीम खड़ी करके जेल प्रशासन ने यादगार नमूना पेश किया था.”

सिर्फ जीतने के जुआ खेलने वाला मुजरिम

इस हैरतअंगेज टीम में शामिल सजायाफ्ता मुजरिम एल्स्टन की कहानी भी बेहद रोचक है. वो एक गजब का जुआरी था. जो सिर्फ जीतने के लिए ही जुआ खेलता था. शायद ही कभी उसने जुए की बाजी किसी से हारी हो. उसने अपने साथी कैदी साबन के साथ मिलकर अपने साथी खिलाड़ियों पर ही दांव लगाना शुरू कर दिया था. जेल में बंद कैदी साबन के ऊपर आरोप था कि उसने, सोते हुए तीन किसानों को उनके चेहरे पर गोलियां मारकर कत्ल कर डाला था. वे किसान भेड़े चराने वाले थे. साबन ने उन किसानों पर घात लगाकर हमला बोला था. गिरफ्तार करके बाद में साबन को व्योमिंग स्टेट पेनिटेन्शियरी में लाकर बंद कर दिया गया था.

जिक्र जब खूंखार मुजरिमों से भरी उस यादगार बेसबॉस टीम का हो तो, यहां बताना जरूरी है कि, उस टीम के सबसे बेहतरीन स्टार खिलाड़ी साबित होने वाले सेंग ने अपने घर एक खत लिखा था. जिसमें उन्होंने घर वालों को लिखा था कि, टीम में मैदान पर एक भी उनकी गलती नाकाबिले-बर्दाश्त होगी.” उन्होंने आगे लिखा था कि जो कैदी खेल मैदान पर गल्तियां करेगा, उसका वो अपराध अक्षम्य माना जाएगा. जिसकी सजा के बतौर उन्हें (खेल मैदान पर खेलने के वक्त गलती करने वाले खिलाड़ी/मुजरिम) पहले से मिली सजा को और बढ़ा दिया जाएगा. जबकि अगर बेहतरह प्रदर्शन करके टीम जीत गई तो, हर खिलाड़ी को पूर्व में सुनाई जा चुकी सजा की अवधि कम कर दी जाएगी. और चूंकि सेंग ने टीम में सबसे बेहतर प्रदर्शन खेल के मैदान पर किया था, जिसके चलते उसे 22 अगस्त सन् 1911 को लगने वाली फांसी की सजा की तारीख में छूट देकर, उसे करीब एक साल आगे बढ़ा दिया गया था. सेंग अगर उस बेसबॉल टीम में शामिल होकर गजब के खेल का प्रदर्शन न कर चुका होता तो. 22 अगस्त सन् 1911 उसकी जिंदगी का अंतिम दिन होता. क्योंकि पूर्व निर्धारित तारीख के मुताबिक उस दिन उसे फांसी पर टांग दिया गया होता.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब तक उस बेसबॉल टीम में सेंग शामिल हुए, तब तक वो टीम कभी भी अपना कोई मैच नहीं हारी थी. कहते हैं कि दुनिया में हर खिलाड़ी अपने लिए, अपने देश के लिए और मेडल के लिए खेलता है. मगर इस दुनिया की इकलौती हैरतअंगेज बेसबॉल टीम में शामिल मुजरिम से खिलाड़ी बना इंसान, अपनी जिंदगी महफूज रखने की खातिर खेलने के लिए मैदान में उतरा था. क्योंकि उन सभी को उम्मीद थी अगर, वो खेल मैदान पर बेहतरीन प्रदर्शन कर सके तो शायद उनकी सजा में माफी नसीब हो जाए.