निवेश प्रस्तावों को जमीन पर उतारना योगी सरकार की बड़ी चुनौती!
अब सरकार के समक्ष 33.50 लाख करोड़ रुपए के एमओयू को धरातल पर उतारना है. इसके लिए किस किस जिले में निवेशकों को देने के लिए सरकार के पास जमीन है, यह भी अभी सरकार ने बताया नहीं है.
उत्तर प्रदेश (यूपी) में तीन दिन चला ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट खत्म हो गया. यूपी के इतिहास में देश और विदेश के बड़े बड़े निवेशकों को लखनऊ में बुलाने वाला यह सबसे बड़ा आयोजन रहा है. समिट के पहले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रिकार्ड 33.5 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव (एमओयू) प्राप्त होने का ऐलान किया गया.
इतनी बड़ी निवेश राशि के करार पत्र (एमओयू) मिलने और इस निवेश के जरिए राज्य में 92 लाख लोगों को रोजगार दिलाने की उम्मीद इस समिट से जगाई गई हैं. अब इसी वादे की पूर्ति करना यानी राज्य में 33.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश जमीन पर उतारना अब योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. लोकसभा चुनावों के इस संबंध में सरकार रिजल्ट देना होगा, इस मामले में जरा सी भी सुस्ती सारे किए धरे पर पानी फेर देगी. उत्तर प्रदेश के उद्योग महकमे में कार्य कर रिटायर हो चुके तमाम आईएएस अफसरों का यह कहना है.
इमेज बिल्डिंग का जरिए बने इन्वेस्टर्स समिट
रिटायर आईएएस अफसरों के इस कथन में सच्चाई भी है. इसकी वजह है, उद्योगपतियों का सिर्फ अपने लिए लाभ की सोचना. अब कोई भी उद्योगपति या औद्योगिक घराना सरकार के लाभ के लिए राज्य में उद्योग लगाने की पहले नहीं करता. इसके चलते ही सरकार के दबाव में अमेठी, जगदीशपुर, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ सहित राज्य के तमाम जिलों में स्थापित हुए उद्यम बंद हो गए.
मायावती सरकार में उद्योग बंधु के प्रमुख रहे अनिल स्वरूप और रोहित नंदन जैसे तेज तर्रार आईएएस कहते हैं औद्योगिक निवेश के लिए उद्योगपति एमओयू तो कर लेते हैं लेकिन बाद में वह पहल नहीं करते. और अब तो जिस तरह से हर राज्य में इवेस्टर्स समिट में निवेशक बढ़चढ़ कर एमओयू कर रहे हैं, उसे देखकर आश्चर्य हो रहा है. भारत सरकार में सचिव रह चुके रोहित ननंद तो यह भी कहते हैं कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन तो अब सरकारों की इमेज बिल्डिंग का इवेंट बनाते जा रहे हैं.
वह कहते हैं कि आजादी के बाद से हर सरकार राज्य में उद्योगपतियों से बात कर सूबे में सीमेंट फैक्ट्री, स्कूटर और साइकिल फैक्ट्री, चीनी मिल, ग्लास और पैंट से लेकर तमाम तरह की फैक्ट्री लगवाने का प्रयास करती थी. ऐसे प्रयासों से राज्य में हजारों इंड्रस्टी लगाई, जिलों में औद्योगिक क्षेत्र बनाए गए. नोयडा और गाजियाबाद में बड़े बड़े उद्योग लगे. फिर दौर आया इन्वेस्टर्स समिट के जरिए उद्योगपतियों को राज्य में उद्योग लगाने के लिए आमंत्रित करने करने. ऐसे आयोजनों में बड़े उद्योगों को लगाने के साथ ही साबुन बनाने से लेकर चिप्स बनाने की फैक्ट्री लगाने के एमओयू साइन होने लगे. और सरकारें दावा करने लगी कि उनके शासन में सबसे ज्यादा एमओयू साइन हुए हैं.
इस मामले में रोचक बात यह है कि ऐसे समिट में सरकारें रिकार्ड औद्योगिक निवेश का दावा तो करती हैं लेकिन यह नहीं बताती कि पिछले इन्वेस्टर्स समिट में जो एमओयू साइन हुए थे उनमें से कितने उद्योगपतियों ने राज्य में अपना उद्यम स्थापित किया. यही नहीं कोई भी सरकार अब लिस्ट जारी कर यह नहीं बताती कि किस उद्योगपति ने राज्य के किस जिले में अपनी फैक्ट्री लगाई है. ऐसे में अब यूपी में उद्योग लगाने के लिए जिन निवेशकों ने एमओयू साइन किए हैं, उनसे राज्य में उद्यम स्थापित करवाना ही बड़ी चुनौती है.
एमओयू को धरातल पर उतारना चुनौतीपूर्ण कार्य
रोहित नंदन के अनुसार, उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट में 4.68 लाख करोड़ रुपए के एमओयू साइन होने का दावा सरकार ने किया था. तब कहा गया था कि पहली बार राज्य में भारी संख्या में विदेशी निवेशकों और प्रवासी भारतीयों ने औद्योगिक निवेश करने के लिए एमओयू साइन किए हैं. इस मामले में योगी सरकार ने दावा किया है कि वर्ष 2018 में निवेशकों ने जो एमओयू साइन किए थे, उनमें से 75 फीसदी से अधिक एमओयू धरातल पर उतारे जा चुके हैं, लेकिन इस दावे की कोई सूची अभी तक प्रदेश सरकार ने जारी नहीं की है. किसी को यह नहीं पता कि 4.68 लाख करोड़ रुपए के साइन हुए एमओयू के तहत राज्य सरकार ने कितने निवेशकों को किस जिले में कितनी जमीन उद्यम स्थापित करने के लिए आवंटित की और कितने निवेशकों ने उस जमीन पर अपना उद्यम स्थापित करने की पहल की.
अब सरकार के समक्ष 33.50 लाख करोड़ रुपए के एमओयू को धरातल पर उतारना है. इसके लिए किस किस जिले में निवेशकों को देने के लिए सरकार के पास जमीन है, यह भी अभी सरकार ने बताया नहीं है. इसमें निवेशकों को आवश्यकता के अनुसार भूमि उपलब्ध कराना, निवेशकों को निवेश स्थापित करने के लिए बैंकों से ऋण दिलाना, निवेशकों की आवश्यकता और अपेक्षा के अनुरूप भू उपयोग परिवर्तन कराना और घर बैठे सभी तरह के इंसेंटिव दिलाना किसी चुनौती से कम न होगा. यह सब चुनौतीपूर्ण कार्य है. लोकसभा चुनावों के पहले इसे करना ही होगा. इस मामले में दिखाई गई सुस्ती सरकार की छवि को प्रभावित करेगी.
इसलिए बड़ी चुनौती
जयनारायण पोस्ट ग्रेजुएट काले के प्रोफेसर ब्रजेश मिश्रा भी यह मानते है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में हुए रिकार्ड एमओयू को जमीन पर उतरना बड़ी चुनौती है. अब विपक्ष भी सरकार से लगातार यह सवाल पूछेगा कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में आए कितने निवेशकों ने राज्य में अपना उद्यम स्थापित करने की पहल की है. और कितने निवेशकों को सरकार ने किस जिले में और कितनी जमीन सरकार ने उद्यम स्थापित करने के लिए दी है. तो उसका जवाब सरकार देना ही होगा क्योंकि योगी सरकार रिकार्ड संख्या में हुए एमओयू को चुनावी मुद्दा जरूर बनाएगी. इसके संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ ने समिट में बोलते हुए दिये भी हैं.
पीएम मोदी ने समिट में अपने संबोधन में कहा भी था कि लोग कहते थे यूपी का विकास होना मुश्किल है, कानून व्यवस्था सुधारना नामुमकिन है. यूपी बीमारू राज्य कहलाता था, आए दिन करोड़ों के घोटाले होते थे. लेकिन सिर्फ छह साल में यूपी ने अपनी नई पहचान बनाई है. जबकि राजनाथ सिंह ने विपक्षी दलों पर हमला बोलते हुए कहा था कि पहले यूपी में निवेश को वेस्ट समझा जाता है अब बेस्ट समझा जाता है. छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उद्योगों को रोका जाता था. अब यूपी का परिदृश्य बदला है, राज्य में बड़ी संख्या में लोग अपनी फैक्ट्री लगाने के लिए आतुर है.
इन बड़े नेताओं के इस कथन का मतलब है, अब राज्य में रिकार्ड संख्या में हुए एमओयू के जरिये योगी सरकार जहां विपक्ष को घेरने की रणनीति पर कार्य करेगी, वहीं उद्यमियों, व्यापारियों और युवाओं को भी साधने का प्रयास करेगी. इसके लिए समिट की पहली ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी लोकसभा चुनाव के पहले आयोजित की जाएगी. इसमें करीब पांच लाख करोड़ से अधिक के निवेश को धरातल पर उतारकर और युवाओं को रोजगार दिलाने का दावा करते हुए योगी सरकार चुनाव मैदान में उतरेगी. वही विपक्ष इस मामले में सरकार को घेरने में जुटेगा. और इस मामले में जरा सी भी कमी मिलने पर वह सरकार को घेरेगा. इसलिए एक साल के भीतर ही निवेशकों को उद्यम स्थापित करने के लिए जमीन उपलब्ध कराना योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है.