बहुमत पर राज्यपाल पूछ सकते हैं सवाल… SC में उद्धव बोले- लेकिन अपनी मर्जी से नहीं
महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई. कोर्ट में उद्धव ठाकरे ने दलील दी कि राज्यपाल ने अपनी मर्जी से नई सरकार को शपथ दिलाई. सवाल इस बात का है कि विधायकों की संख्या में कमी के बार में सदन में कोई चर्चा भी नहीं हुई. कोर्ट ने इसका जवाब दिया है.
महाराष्ट्र राजनीतिक संकट को लेकर आज, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुवाई हुई. उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने और नई सरकार को शपथ दिलाने में राज्यपाल की भूमिका को लेकर मामला चल रहा है. मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यपाल यह कह सकते हैं कि आखिर बहुमत किसके पास है. आखिर राज्यपाल की भूमिका क्या है… वह आपसे पूछ सकते हैं कि आपके पास बहुमत है या नहीं. हां, यह तब हो सकता है जब आपने विधायकों की एक बड़ी संख्या गंवा दी हो, तो प्रथम दृष्टया ऐसा हो सकता है.
सीजेआई की बेंच के सामने दलील पेश करते हुए उद्धव ठाकरे की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पार्टी में दो फाड़ होने की स्थिति में सरकार बनाने को लेकर गवर्नर खुद से कदम आगे नहीं बढ़ा सकते. इस पर सीजीआई ने पूछा कि जब आपके पास बहुमत की स्थिति नहीं हो तब संवैधानिक पद पर बैठे गवर्नर क्या सरकार बनाने को लेकर कोई कदम नहीं बढ़ाएंगे. यह राज्यपाल का अधिकार है या नहीं? सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल का कदम संविधान के अनुरूप नहीं था.
बहुमत है या नहीं, पहले सदन में होती है चर्चा
सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल कह सकते हैं कि बहुमत किसके पास हैं, यह तब पूछा जा सकता है जब आपने विधायकों की बड़ी संख्या गंवा दी हो, तब प्रथम दृष्टया ऐसा हो सकता है. कोर्ट ने यह भी पूछा कि आखिर राज्यपाल की क्या भूमिका है? उद्धव के वकील सिब्बल ने कहा कि सदन में पहले बहुमत पर फैसला होता है… जब वहां नहीं होती तब राज्यपाल की भूमिका शुरू होती है. इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. राज्यपाल ने पहले ही शपथ दिला दी.
बहुमत पर राज्यपाल पूछ सकते हैं सवाल
सीजेआई ने कहा ऐसे में तो राज्यपाल निश्चित रूप से कह सकते हैं कि मुझे दिखाओ कि आपके पास सदन में 80 में से 40 विधायक हैं. कपिल सिब्बल ने कहा, लेकिन राज्यपाल अपनी मर्जी से यह काम नहीं कर सकते. इसपर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, लेकिन वह कह सकते हैं कि उन्होंने विपक्ष से संख्या में कमी के बारे में पता चला है. सीजेआई ने कहा कि ‘राज्यपाल अयोग्यता के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकते हैं और वह अयोग्यता का शिकार होने वालों की रक्षा नहीं कर सकते हैं, लेकिन इन सभी राजनीतिक तकरार में… जिसे मुख्यमंत्री बनाया जाता है वह लोगों और संसद के प्रति जवाबदेह होना चाहिए… क्योंकि दलबदल सरकार की स्थिरता को प्रभावित करता है.’