Maharashtra Politics: क्या होंगे एनसीपी में दो दूनी चार, कहीं कांटों भरा तो नहीं सुप्रिया का ताज?
सुप्रिया सुले के सामने चुनौती से ज्यादा अवसर है. वे बीते 2006 से सांसद हैं. सुप्रिया में पार्टी के कार्यकर्ताओं को जोड़कर चलने की ताकत है. शरद पवार की बेटी के रूप में उनका आँकलन करना नादानी होगी. उनके पास राजनीतिक कौशल है.
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने भले ही पार्टी में दो नए कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल की नियुक्ति कर दी है लेकिन जिम्मेदारी के हिसाब से सुप्रिया के पास चुनौतियां भी हैं और अवसर भी. देखना रोचक होगा कि लोकसभा चुनाव, विधान सभा चुनाव से लेकर महाराष्ट्र और राष्ट्रीय गठबंधन के साथ सुप्रिया कैसे तालमेल बैठाती हैं? चर्चा करने वालों के लिए यह भले ही आसान लगे लेकिन एक राजनीतिक दल को मुखिया के रूप में संभालना आसान नहीं होता.
सुप्रिया सुले के सामने शरद पवार के रूप में पहाड़ जैसा व्यक्तित्व है. रोल मॉडल है. सब लोग जानते हैं कि शरद पवार का स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा है. उम्र 82 की हो चली है. नई भूमिका में जब भी लोग सुप्रिया को देखेंगे, शरद पवार से तुलना करेंगे. ऐसे में किसी भी युवा के सामने बड़ी चुनौती होती है. वह पिता के सामने कुछ भी हो, हरदम छोटा ही रहता है. सुप्रिया तो उनकी अपनी बेटी हैं. अब पिता की ओर से स्थापित पार्टी एनसीपी की कार्यकारी अध्यक्ष भी.
प्रफुल्ल पटेल जैसा सधा हुआ भरोसेमंद साथी सुप्रिया को मिला
शरद पवार बेहद मझे हुए राजनीतिज्ञ हैं. 27 वर्ष के थे जब वे पहली बार विधानसभा के सदस्य चुने गए. दो वर्ष बाद सुप्रिया सुले का जन्म हुआ. जब से होश संभाला राजनीति ही देख रही हैं. माता-पिता की अकेली संतान सुप्रिया को राजनीति विरासत में मिली है. लंबे समय से वे खुद दिल्ली की राजनीति में सांसद के रूप में सक्रिय हैं. और हा, जिस किसी को ऐसा लग रहा है कि यह फैसला रातों-रात हुआ है, उन्हें या तो राजनीति की समझ बिल्कुल नहीं है या फिर वे समझना ही नहीं चाहते. सुप्रिया को ऐसे समय में जिम्मेदारी मिली है जब लोकसभा चुनाव में एक साल से कम समय बचा है. अगले साल ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हैं. प्रफुल्ल पटेल जैसा सधा हुआ भरोसेमंद साथी शरद ने सुप्रिया को दिया है.
स्थापना दिवस पर इतने बड़े फैसले लेने वाले शरद पवार ने महाराष्ट्र विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार के बारे में कुछ नहीं कहा तो लोग यह मान ले रहे हैं कि अब वे कोई नया गुल खिलाएंगे. जानना सभी के लिए जरूरी है कि राजनीति में जब भी कोई अपनी जड़ से हटा ज्यादातर समय शून्य ही रहा. अजित नेता विरोधी दल हैं. कैबिनेट मंत्री का दर्जा है. महाराष्ट्र की राजनीति में उनके पास बहुत स्कोप नहीं है. सुप्रिया सुले के साथ उनकी बॉन्डिंग अलग तरह की है. वे जिस हक से यहां कुछ कर पाएंगे, कहीं और संभावनाएं सीमित हैं. मान लिया जाए कि अजित एनसीपी छोड़ दें तो सबसे जरूरी सवाल जाएंगे कहां?
सीएम की कुर्सी पर विराजे शिंदे का भी इम्तहान होना है
एनसीपी में वे सम्मानजनक स्थिति में हैं. शिवसेना उद्धव में जाकर उन्हें कुछ मिलने वाला नहीं है. उद्धव अपनी पार्टी तक गंवा चुके हैं. शिंदे वाली शिवसेना के खिलाफ अभी वे नेता विपक्षी दल हैं, वहां जाने का कोई स्कोप इसलिए नहीं है क्योंकि इस पार्टी का भविष्य भी इसी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पता चल जाएगा. भारतीय जनता पार्टी की मदद से सीएम की कुर्सी पर विराजे शिंदे का भी इम्तहान होना है. भाजपा बड़े भाई के रूप में इन्हें लोकसभा में कितनी सीटें देती और विधान सभा में कितनी, यह देखना रोचक होगा. ऐसे में अजीत के पास भाजपा एक मात्र विकल्प है जहां वे जा सकते हैं. पर, यह उन्हें भी पता है कि भाजपा में नेताओं की इतनी भीड़ है कि जाकर खो जाना है. ऐसे में अजीत पवार के लिए सबसे सुरक्षित जगह उनकी अपनी पाली-पोसी एनसीपी ही है.
सुप्रिया सुले के सामने चुनौती से ज्यादा अवसर है. वे बीते 2006 से सांसद हैं. सुप्रिया में पार्टी के कार्यकर्ताओं को जोड़कर चलने की ताकत है. शरद पवार की बेटी के रूप में उनका आंकलन करना नादानी होगी. उनके पास राजनीतिक कौशल है. शरद पवार ने बेटी के लिए जो ताना-बाना तैयार किया है, उसमें अनुभवी टीम सुप्रिया के पीछे है. उनका मर्गदर्शन भी साथ में है. एनसीपी के सामने तुरंत दो चुनौतियां जरूर हैं. महाविकास अघाड़ी गठबंधन और लोकसभा चुनाव के लिए बनने वाला संभावित गठबंधन. दोनों में सीटों के बंटवारे को लेकर सख्त रुख की जरूरत पड़ेगी. चुनावी कमान भी सुप्रिया के पास है, ऐसे में यह उनके लिए अवसर भी है. वे शरद पवार की देखरेख में 2024 के अंत तक निखरी हुई सुप्रिया सुले के रूप में दिखेंगी. इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए.
अजित को महराष्ट्र की राजनीति की ठीक समझ
महाराष्ट्र की राजनीति में गहरी रुचि रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार द्वय योगेंद्र चतुर्वेदी एवं विजय सिंह कहते हैं कि सुप्रिया सुले के अंदर चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता है. वे सुलझी हुई राजनीतिज्ञ हैं. भाई अजित से उनके रिश्ते ठीक हैं. वे महत्वाकांक्षी हैं, इसमें दो राय नहीं है लेकिन उन्हें जितना सम्मान एनसीपी में मिल रहा है और आगे मिलने वाला है, वह कहीं और नहीं नसीब होगा. ऐसे में राजनीति के कढ़े हुए खिलाड़ी अजित बहन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे, ऐसी पूरी संभावना है क्योंकि अभी मौसम उनके अनुकूल नहीं है. और अजीत को महराष्ट्र की राजनीति की ठीक समझ है. वे यह भी मानते हैं कि महाविकास अघाड़ी मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो एनसीपी से ही सीएम होगा. विजय कहते हैं कि अजित का एक ही सपना है, सीएम की शपथ. छह बार डिप्टी सीएम रह चुके हैं. विधान सभा चुनाव तक वे कहीं नहीं जाएंगे.