18 फरवरी को महाशिवरात्रि, हमेशा शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है?

18 फरवरी को महाशिवरात्रि, हमेशा शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है?

भगवान शिव को गंगाजल, फूल, बेर, बेलपत्र और भांग-धतूरे से प्रसन्न किया जा सकता है. शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाने के बाद शिवलिंग की परिक्रमा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है.

वैसे तो शिवभक्त भगवान शिव की आराधना, पूजा और मंत्रोचार प्रतिदिन करते हैं, लेकिन सावन के महीने में, मासिक शिवरात्रि पर और महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू धर्म में भगवान शिव को जल्द प्रसन्न होने वाला देवता माना गया है क्योंकि जो भक्त सच्चे मन से भगवान शिव को मात्र एक लोटा जल चढ़ाएं तो वे सभी मनोकामना को जल्दी पूरा कर देते हैं.

भगवान शिव को गंगाजल, फूल, बेर, बेलपत्र और भांग-धतूरे से प्रसन्न किया जा सकता है. शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाने के बाद शिवलिंग की परिक्रमा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं शिवलिंग की परिक्रमा पूरा करने के बजाय आधी क्यों की जाती है. आइए जानते हैं इससे जुड़े नियम जो हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं.

क्या है शिवलिंग की परिक्रमा के नियम

हिंदू धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा या दर्शन करने के बाद उनकी प्रतिमा की परिक्रमा अवश्य की जाती है लेकिन शिव मंदिरों में स्थापित शिवलिंग की परिक्रमा कभी भी पूरी नहीं की जाती है. शिवलिंग की पूजा के बाद हमेशा आधी परिक्रमा करनी चाहिए जबकि शिवजी मूर्तियों की परिक्रमा आप पूरी कर सकते हैं. जब भी शिवलिंग की परिक्रमा करें तो आधी परिक्रमा करने के बाद वापस आ जाना चाहिए. इसके अलावा शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं तरफ से शुरू करनी चाहिए. परिक्रमा जलहरी तक जाने के बाद वापस हो जाना चाहिए.

जलहरी को न लांघें

शिवजी की उपासना में भूलकर भी कभी शिवलिंग की जलहरी को लांघना नहीं चाहिए. जलहरी को लांघना अशुभ माना जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि शिवलिंग की जलहरी को ऊर्जा और शक्ति का केंद्र माना जाता है. ऐसे में अगर परिक्रमा करते हुए इस पार किया जाता है तो व्यक्ति के शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं. शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करने पर व्यक्ति के शरीर पर प्रतिकूल असर देखने को मिलता है. ऐसे में शिवलिंग की परिक्रमा अर्धचंद्राकार में करनी चाहिए.

क्यों की जाती परिक्रमा

जब भी किसी मंदिर या देवताओं की मूर्ति के दर्शन करते हैं फिर उसके बाद परिक्रमा करते हैं. परिक्रमा करने से वहां पर मौजूद सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव हमारे शरीर और मन के ऊपर होता है. परिक्रमा करने से मन शुद्ध होता है और सकारात्मक विचार आते हैं. इस वजह से देवी-देवताओं के दर्शन करने के बाद परिक्रमा जरूर करनी चाहिए. लेकिन इस बात का खास ध्यान रखें जब परिक्रमा करें तो बीच में कभी भी न रूके और परिक्रमा को पूरा जरूर करें. परिक्रमा करते हुए मन में मंत्रों का जाप लगातार करते रहना चाहिए.