बीमा कंपनियों ने की 30 हजार करोड़ की गड़बड़ी, टैक्स चोरी के आरोप
देश की कई बड़ी बीमा कंपनियां टैक्स चोरी को लेकर इनकम टैक्स की चल रही एक जांच के दायरे में आ गई हैं. इन बीमा कंपनियों पर हजारों करोड़ों की टैक्स चोरी की गड़बड़ी का आरोप है. गड़बड़ी की भनक लगने के बाद से ही इनकम टैक्स विभाग इन कंपनियों पर पैनी नजर बनाए हुए था. जिसका खुलासा अब उसने DGGI के साथ मिलकर किया है.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने बीमा कंपनियों की बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है. गड़बड़ी की भनक लगने के बाद से ही IT विभाग इन कंपनियों पर पैनी नजर बनाए हुए था. जिसके बाद से कई बीमा कंपनियां जांच के दायरे में थी. यह जांच देश की बड़ी बीमा कंपनियों और कई बीमा कारोबार के लिए की गई. इनकम टैक्स विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, बीमा कंपनियों और उनके इंटर मीडियरीज ने आय को दबाकर और फर्जी व्यय दिखाकर 1 जुलाई, 2017 से (जीएसटी की शुरुआत के बाद से) कथित तौर पर लगभग 30,000 करोड़ रुपये की आयकर चोरी की है.
मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि विभाग बकाया वसूलने के लिए इन यूनिट्स को टैक्स डिमांड नोटिस भेजने की तैयारी में है. जिसके बाद ब्याज और जुर्माना लगने के बाद ये अमाउंट बढ़ सकता है.
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जवाब देने के लिए मिलेगा इतना समय
ईटी में छपी एक खबर के मुताबिक, जिन बीमा कंपनियों को नोटिस भेजे गए हैं, उन्हें जवाब और पेनल्टी भरने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा. इन बिमा कंपनियों पर आरोप हैं कि इन्होने री-इंश्योरेंस प्रीमियम पर को-इंश्योरेंस कंपनियों से कमिशन वसूला, लेकिन टैक्स का भुगतान नहीं किया. हालांकि अधिकारी ने किसी कंपनी का नाम नहीं बताया, लेकिन उन्होंने बताया कि भेजे गए नोटिस करीब 30000 करोड़ रुपये के हैं. ब्याज और जुर्माना जोड़ने पर नोटिस की रकम बढ़ सकती है.
फर्जी लगाए इनवॉइस
पिछले साल, आयकर विभाग ने जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (डीजीजीआई) के साथ मिलकर एक जांच शुरू की थी. जिसमे यह पता चला कि कुछ बीमा कंपनियां कमीशन पर नियमों को दरकिनार कर रही थीं, एजेंटों और मध्यस्थों को अनुमति से अधिक भुगतान कर रही थीं. ऐसे भुगतान उन चालानों के आधार पर किए गए जिन्हें अधिकारियों ने फर्जी बताया. आयकर विभाग ने कथित तौर पर बढ़े हुए खर्च के कारण आयकर के नुकसान की जांच की.
एक अन्य अधिकारी ने ये भी कहा कि फर्जी सीएसआर व्यय के भी मामले थे, जिसमें ऐसी घटनाएं दिखाई गईं जो कभी हुईं ही नहीं और बढ़ा-चढ़ाकर विज्ञापन और इवेंट बिल दिए गए. जिसके लिए हमें सभी लेनदेन विवरण मिल गए हैं. प्रारंभिक जांच में 30 बीमा कंपनियां, 68 कर एजेंट और मध्यस्थ शामिल थे. बाद में जांच का दायरा बढ़ाकर इसमें कई बैंकों को भी शामिल कर लिया गया, जिन्होंने देश भर में बीमा मध्यस्थों के रूप में काम किया था.
इनपर भी लटकी तलवार
मध्यस्थ के रूप में काम करने वाले बैंकों के मामले में, जांच में पाया गया कि बीमा कंपनियों ने बैंकों की लागत का भुगतान किया, लेकिन उन भुगतान को कभी रिकॉर्ड में नहीं रखा गया. दूसरे अधिकारी ने कहा, यह गैर-प्रकटीकरण के बराबर है, जो आईटी कानूनों के तहत एक गंभीर उल्लंघन है. डीजीजीआई कथित तौर पर बिचौलियों द्वारा प्रदान किए गए नकली चालान का उपयोग करके, माल और सेवाओं की अंतर्निहित आपूर्ति के बिना इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने वाले बीमाकर्ताओं के मामलों की जांच कर रहा था. डीजीजीआई ने कहा कि इससे 3,500 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी हुई. DGGI ने बताया कि यह एक संयुक्त जांच थी और डेटा साझा करने का एक उदाहरण था जो हमने साथ किया था, जिसने डेटा और सबूतों के साथ जांच का समर्थन किया और इतनी बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गई.