GI टैग क्या है? जिसका अब लंगड़ा आम और बनारसी पान में भी होगा इस्तेमाल
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बनारसी पान और लंगड़ा आम इन दोनों को ही GI TAG यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिल गया है. लेकिन आखिर क्या है जीआई टैग और कैसे मिलता है? आइए आपको इन सवालों का जवाब देते हैं.
उत्तर प्रदेश के लंगड़ा आम और बनारसी पान अब इन दोनों को ही ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी GI Tag मिल गया है. अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर जीआई टैग होता क्या है? तो हम आज आपके ज़ेहन में उठ रहे इसी सवाल का जवाब लेकर आए हैं, हम आपको आसान भाषा में समझाएंगे कि आखिर क्या है GI TAG?
क्या है GI Tag?
WIPO यानी वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, GI TAG एक प्रकार का लेबल है जो किसी प्रोडक्ट को भौगोलिक पहचान के रूप में दिया जाता है. याद दिला दें कि रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 1999 में ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स को लागू कर दिया गया था.
इस टैग के तहत भारत के किसी भी राज्य में मिलने वाला कोई भी खास प्रोडक्ट का कानूनी रूप से अधिकार उसी राज्य को मिलता है. ये टैग किसी खास मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट या फिर किसी खास फसल या प्राकृतिक प्रोडक्ट को दिया जाता है.
आसान भाषा में समझें GI TAG का मतलब
आइए आपको उदाहरण की मदद से आसान भाषा में जीआई टैग का मतलब समझाते हैं. कोल्हापुर की चप्पल देशभर में पॉपुलर है, अब आप मान लें कि कोई वैसी ही किसी चप्पल को कोल्हापुरी कहकर मार्केट में बेचना शुरू कर दे तो? जीआई टैग को लाने के पीछे का मकसद इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकना है.
GI Tag में जीआई का मतलब है भौगोलिक संकेत यानी Geographical Indication. ये टैग एक प्रतीक है जो किसी प्रोडक्ट को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है.
कैसे मिलता है GI TAG?
बता दें कि किसी भी प्रोडक्ट के लिए जीआई टैग हासिल करने के लिए भारत सरकार के CGPDTM यानी Controller General of Patents, Designs and Trade Marks में अप्लाई करना होता है. आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि जीआई टैग एक बार मिल गया तो वह 10 सालों तक मान्य होता है, 10 साल बाद एक बार फिर से इस टैग को रिन्यू करवाना पड़ता है.