अखिलेश यादव आजमगढ़ से क्यों लड़ना चाहते हैं लोकसभा चुनाव?
अखिलेश इस बार कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. आजमगढ़ के उपचुनाव में हार को वो अब तक भूल नहीं पाए हैं. उन्होंने 2019 के आम चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी, लेकिन फिर तीन साल बाद हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी हार गई, जबकि आजमगढ़ को समाजवादी पार्टी की सबसे सेफ सीट समझा जाता है. जिस वजह से पार्टी हारी. अब वही वजह खत्म करने की योजना है.
समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए अब तक 31 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है. मुलायम परिवार से तीन सदस्य चुनावी मैदान में हैं. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव को बदायूं से टिकट मिला है. पहले धर्मेंद्र यादव को इस सीट से उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन उनका टिकट कट गया. धर्मेन्द्र यादव रिश्ते में अखिलेश के चचेरे भाई लगते हैं. अखिलेश के एक और चचेरे भाई अक्षय यादव फिर से फिरोजाबाद से चुनाव लड़ेंगे. अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव के बेटे हैं. अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव एक बार फिर मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगी. पहले मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए थे.
अखिलेश ने अपनी पत्नी, चाचा और चचेरे भाई की टिकट पक्की कर दी है. लेकिन वे खुद चुनाव लड़ेंगे या नहीं, अगर लड़ेंगे तो फिर किस सीट से, इस पर सस्पेंस बना हुआ है. अब तक न तो कन्नौज से और न ही आजमगढ़ से किसी को टिकट मिला है.
समाजवादी पार्टी में चर्चा
धर्मेंद्र यादव को दोनों लोकसभा सीटों का प्रभारी बना दिया गया है. समाजवादी पार्टी में परंपरा रही है कि प्रभारी को ही उस जगह से टिकट मिल जाता है. अखिलेश यादव भी दोनों जगहों आजमगढ़ और कन्नौज से सांसद रहे हैं. पर इस बार वे क्या करेंगे, समाजवादी पार्टी के अंदर और बाहर भी इस बात की बड़ी चर्चा है.
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अखिलेश यादव ने शुरू की तैयारी
अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ने को लेकर अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं. लेकिन परिवार के एक करीबी नेता ने बताया सब तय है. सूत्र बताते हैं कि चुनाव लड़ने को लेकर अखिलेश ने तैयारी शुरू कर दी है. विरोधियों को अपना बनाने का मिशन शुरू है. अखिलेश और जीत के रास्ते में जो भी कील कांटे हैं, सब दूर किए जा रहे हैं. वे चुनाव में उतरने से पहले अपनी जीत की गारंटी पक्की कर लेना चाहते हैं.
सपा की सबसे सेफ सीट
अखिलेश इस बार कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. वो एक कहावत है न दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. अखिलेश यादव भी ठीक वैसा ही कर रहे हैं. आजमगढ़ के उपचुनाव में जो हुआ उसे वे अब तक भूल नहीं पाए हैं. 2019 के आम चुनाव में यहां से जीते, लेकिन फिर तीन साल बाद हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी हार गई. जबकि आजमगढ़ को समाजवादी पार्टी का सबसे सेफ सीट समझा जाता है. जिस वजह से पार्टी हारी. अब वही वजह ख़त्म करने की योजना है.
आजमगढ़ उपचुनाव का आंकड़ा
आजमगढ़ के उप चुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेन्द्र यादव 8 हजार वोटों से हार गए थे. बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 3 लाख 12 हज़ार वोट मिले. धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हज़ार और बीएसपी के शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली को 2 लाख 66 हज़ार मत मिले. गुड्डू जमाली के कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो गया. फायदा बीजेपी को मिला. जमाली पहले विधायक भी रहे हैं. वे बड़े बिल्डर हैं. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक उनका काम है. चुनाव बाद वो समाजवादी पार्टी चले आए थे. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. तो वे फिर मायावती के साथ चले गए. एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में थे. अगर वे फिर चुनाव लड़ते तो मुस्लिम वोटर बंट जाते.
गुड्डू जमाली की घर वापसी का फैसला
न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी. तो अखिलेश यादव ने गुड्डू जमाली की घरवापसी का फैसला कर लिया है. इसी हफ्ते वे फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. अखिलेश से उनकी बात और मुलाकात हो चुकी हैं. गुड्डू जमाली सिर्फ समाजवादी पार्टी में ही नहीं आ रहे हैं. उन्हें एमएलसी बनाने का भी भरोसा दिया गया है. अगले महीने विधान परिषद के चुनाव हो रहे हैं. पार्टी को एक मुस्लिम को टिकट देना ही होगा. वरना राज्यसभा चुनाव की तरह PDA को लेकर विवाद बढ़ सकता है. तो एक पंथ, दो काज. गुड्डू जमाली एमएलसी हो जाएंगे और उनका समर्थन समाजवादी पार्टी को मिल जाएगा. ऐसे में चुनाव में पार्टी की जीत तय मानी जा सकती है. गुड्डू जमाली बुधवार को समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं.