ईद पर सऊदी से लेकर पाकिस्तान तक महकती है बनारस की इन सेवइयों की खुशबू, क्यों है इतनी खास?

ईद पर सऊदी से लेकर पाकिस्तान तक महकती है बनारस की इन सेवइयों की खुशबू, क्यों है इतनी खास?

बनारस के भदौं चुंगी इलाके में ईद के त्योहार पर किमामी सेवइयों की भारी मांग होती है. तीन सौ से ज्यादा परिवार इस पुश्तैनी काम से जुड़े हैं, जो हाथ से और मशीनों से सेवइयां बनाते हैं. डबल जीरो (किमामी) सेवइयां मुस्लिम समुदाय में बेहद लोकप्रिय हैं, जबकि मोटी सेवइयां हिन्दू त्योहारों पर खाई जाती हैं. हाल के वर्षों में बिक्री पर आर्थिक प्रभाव और नकली सेवइयों की समस्या देखी गई है.

ईद-उल-फित्र यानी मीठी ईद का त्योहार बिना सेवइयों के अधूरा है. इसमें भी अगर बनारस की सेवई न हो तो ईद का मजा ही नहीं. बनारस के भदऊं चुंगी की गलियों में ईद की रौनक नजर आ रही है. यहां कारीगर सेवइयां तैयार करने में जुटे हैं और कारोबारी डिमांड पूरी करने में लगे हैं. बनारस की किमामी सेवई की डिमांड भारत में ही नहीं बल्कि खाड़ी के देशों में भी है. इन्हें सऊदी अरब और पाकिस्तान में भी खासा पसंद किया जाता है.

किमामी सेवई यानी कि डबल जीरो (00) सेवई के नाम से जानी जाती है. इसकी डिमांड पिछले पांच दशक से ज्यों की त्यों बनी हुई है. बनारस में पहले मदनपुरा, दालमंडी, अर्दली बाजार आदि मुस्लिम इलाकों में भी सेवईयां बनतीं थीं, लेकिन अब सेवइयां बनाने का काम सिर्फ भदऊं चुंगी इलाके तक सिमट कर रह गया है. यहां 30 ऐसे दुकानदार हैं, जिनका सेवई बनाने का पुश्तैनी काम है.इस काम के जरिये वहां रहने वाले तीन सौ परिवारों का घर चलता है.

मशीन से बन रही सेवई

पवन अग्रहरि का परिवार तीन पीढ़ी से सेवई बनाने का काम कर रहा है. वह बताते हैं कि करीब 100 साल पहले उनके दादा सूरत प्रसाद अग्रहरि ने हाथ से सेवई पारने का काम शुरू किया था. घर की महिलाएं भी इस काम में लगी हैं. अब मशीन आ गई है और मोटर से सेवई बनती है. छत पर लोहे के एंगल या बांस पर सेवई को सुखाया जाता है. उन्होंने बताया कि सिर्फ ईद के दौरान करीब 50 हजार क्विंटल तक सेवइयां बिक जाती हैं. ईद से चार महीने पहले से किमामी सेवई बनाने का सिलसिला शुरू हो होता है.

मुस्लिम और हिंदू सेवई

आपको ये जानकर बेहद हैरानी होगी कि सेवई में भी हिन्दू -मुसलमान का मसला है. डबल जीरो यानी कि किमामी सेवई को मुस्लिम बेहद पसंद करते हैं और उन्हीं की डिमांड पर ही ये तैयार किया जाता है, इसलिए इसको मुस्लिम सेवई के नाम से भी जानते हैं. इसमें भी दो वरायटी हैं, डबल जीरो किमामी और सिंगल जीरो किमामी या मीडियम साइज किमामी. बकरा ईद, मीठी ईद और शबे बारात पर इसकी मुस्लिम समाज में भारी डिमांड होती है.

हर सेवई के अलग-अलग दाम

दो नंबर और तीन नंबर सेवई हिन्दू सेवई के नाम से जाना जाता है. ये साइज में मोटी होती है और दशहरे, दिवाली, अनंत चतुर्दशी और रक्षाबंधन पर हिन्दू समाज में इसकी खास डिमांड होती है. कीमत की बात करें तो किमामी डबल जीरो के दाम 80 रुपये किलो थोक में जबकि 130 रुपये किलो फुटकर हैं. किमामी सिंगल जीरो साइज सेवई 70 रुपये थोक में जबकि 110 रुपये किलो फुटकर रेट पर बिक रही है. दो नंबर और तीन नंबर सेवई की कीमत 50 रुपये किलो थोक की कीमत पर बिक रही है.

बिक्री पर पड़ा असर

पवन केशरी बताते हैं कि पिछले तीन -चार सालों में इसकी बिक्री पर फर्क पड़ा है. लोगों के खरीदने की क्षमता पर असर पड़ा है. पहले लोग थोक के भाव से खरीदते थे बनवाते और बांटते भी थे. उसमें कमी आई है, जिसका असर बिक्री पर भी पड़ा है. डुप्लीकेसी यानी कि बनारसी किमामी के नाम पर दूसरे शहरों में भी ये सेवई बनाकर बेची जा रही है, उसका भी खासा नुकसान बनारस के इस कुटीर उद्योग को हुआ है.